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स्वास्थावार्धक तीखुर की खेती और लाभ |
· तीखुर का उपयोग· तीखुर खाने के फायदे या औषधि गुण · तीखुर की खेती कैसे करे · तीखुर की प्रसंस्करण कैसे करे · बाजार से तीखुर खरीदते समय सावधानिया · |
वानस्पतिक नाम :- करकुमा एन्गस्टीफोलिया
कुल :- जिंजीबरेशी
Hindi- तीखुर, तवाखीर, अरारोट (Teekhur or Tikhur)
Sanskrit- तवक्षीर, पयक्षीर, यवज, तालक्षीर
English- Indian arrowroot (इण्डियन ऐरोरूट), बोम्बे ऐरोरूट (Bombay arrowroot), ईस्ट इण्डियन एरोरूट (East Indian arrowroot), कुरकुमा र्स्टाच (Curcuma starch), नैरो लीव्ड् टरमरिक (Narrow leaved turmeric)
Oriya- पलुवा (Paluva)
Kannada- कोवीहिट्टू (Koovehittu)
Gujarati- तेवखरा (Tavakhara)
Tamil- अरारूट्किलेन्गु (Ararutkilangu), कुआकिलंकू (Kuakilanku)
Telugu- अरारूट्-गाड्डालू (Ararut-gaddalu)
Bengali- टीक्कुर (Tikkur)
Nepali- बारखी सारो (Baarkhe sarro)
Marathi- तेवाखिरा (Tavakhira)
Malayalam- कूवा (Koova), कुवा (Kuva)
Arabic- तवक्षीर (Tavaksheer)
तीखुर के उपयोग :-
पहले लोग तीखुर की कंदो को खुदाई करके साफ करते थे फिर उसे पत्थर से गीस - गिस कर मांड बनाते थे जिसे बाद में सुखाकर रख लेते थे और जब जरुरत पड़ता था तो उसे पीस कर आसानी से उपयोग कर सकते हैं , वर्तमान में तीखुर की घिसाई वा सफाई मशीन से होता हैं , जिससे कम समय में अधिक मांड का निर्माण कर सकते हैं , जिसे खाने योग्य तीखुर में बदला जाता हैं , तीखुर का उपयोग कई प्रकार से किया जाता हैं जैसे की खाने में तीखुर की बर्फी बनाकर तीखुर की हलुवा बनाकर , जलेबी , लड्डू बनाकर, गर्मियों में शरबत बनाकर पीने के लिए उपयोग किया जाता हैं, इसके अलावा तीखुर का उपयोग कई प्रकार की त्वचा रोग के उपचार में भी किया जाता हैं खासतौर से चेहरे की चामक बढ़ाने में |
तीखुर के औषधि गुण और खाने के फायदे :-
तीखुर हल्दी के जैसा ही होता है, और हल्दी के फायदे की तरह ही तीखुर के सेवन से शरीर को बहुत लाभ होता है। आयुर्वेद के अनुसार, तीखुर एक जड़ी-बूटी है, और तीखुर के अनेक औषधीय गुण हैं। जैसे घाव, बुखार, खांसी, सांसों की बीमारी, अधिक प्यास लगने की समस्या में तीखुर के इस्तेमाल से फायदे मिलते हैं। इतना ही नहीं, एनीमिया, मूत्र रोग, डायबिटीज, पीलिया आदि रोगों में भी तीखुर के औषधीय गुण से लाभ मिलता है।
- तीखुर स्टार्च का, गर्मियों में शरबत बनाकर पीने से लू से बचाव होता हैं
- तीखुर स्टार्च के सेवन से अल्सर तथा पेट से जुड़े कई विकार दूर होते हैं
- तीखुर की कंदों को पीसकर सिर में लेप लगाने से सिर दर्द ठीक हो जाता हैं
- तीखुर स्टार्च पोषक तत्वों एवं औषधि गुणों से परिपूर्ण तथा सुपाच्य होने के कारण कमजोर व पोषित बच्चो को खिलाने हेतु अच्छा माना गया हैं
तीखुर की खेती :-
पहले लोग सिर्फ जंगलो में बारिश के मौसम में उगने वाले तीखुर को ही एकत्र करते थे और उपयोग में लाते थे किन्तु वर्तमान में तीखुर की मांग सिर्फ भारतीय बाजारों में ही नही विदेशो में भी मांग होने से इसकी खेती की आवश्यकता को महसूस किया गया हैं , किसान तीखुर की खेती करके अपनी आमदनी में अच्छा वृद्धि कर सकते हैं साथ ही बाजार मांग को काफी हद तक पूरा करने में मदत कर सकता हैं , तीखुर पर अभी कोई खास कृषि अनुसन्धान नही हुवा हैं जिसके कारण तीखुर का कृषि क्षेत्र बहुत कम हैं, वा उत्पादन भी सिमित हैं , नीचे दिए जा रहे जानकारी का उपयोग करके किसान तीखुर की खेती कर सकता हैं :
जलवायु :-
किसी भी फसल को उगाने के लिए जलवायु का बड़ा ही महत्व होता हैं , जिससे फसल का उत्पादन में बहुत फर्क पड़ता हैं , तीखुर की पौधा प्रयः छायादार स्थान में उगता हैं जिसका उत्पादन अच्छा होता हैं किन्तु , ऐसा देखा गया हैं की खुले स्थान पर तीखुर की खेती करने से छाया वाले स्थान के मुकाबले अधिक उत्पादन होता हैं , तीखुर का उत्पादन साल में केवल खरीफ के मौसम में ही किया जाता हैं , ऐसे स्थान जहा की वार्षिक वर्षा 800-1200 मिलीमीटर हो आसानी से किया जा सकता हैं ,
भूमि या मिट्टी :-
किसी भी प्रकार की फसल के लिए सबसे पहली जरुरत होता हैं उपयुक्त मिट्टी जिसमे जल धारण क्षमता अच्छा हो तथा पानी की उचित निकासी के साथ-साथ अच्छी मात्र में जीवांश भी होना चाहिये , और यह सब गुण बालुई दोमट या दोमट मिट्टी में बहुत अच्छे से पाई जाती हैं , किन्तु इस प्रकार की मिट्टी सभी जगह पर नही पाई जाती , फिर भी अच्छी जल ब्यवस्था और जल निकासी तथा जैविक खाद का प्रयोग करके किसी भी मिट्टी में किसी भी फसल को आसानी से उगाया जा सकता हैं , ठीक ऐसे ही तीखुर की खेती को लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में किया जा सकता हैं, जिसका पी.एच. मान 6.5-7.5 तक हो , अच्छा माना जाता हैं |
चुकी तीखुर कंद वाली फसल हैं इसलिए मिट्टी का भुभुरा होना बहुत जरुरी हैं | इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करना चाहिये , उसके बाद 3-4 ट्रेक्टर अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति एकड़ पहले जुताई के बाद वा दूसरी जुताई के पहले खेत में फैला देना चाहिये और खेत को कम से कम 1 सप्ताह तक ऐसे ही छोड़ दे जिससे हानिकारक किट पतंगे नस्ट हो जाये व मिट्टी अच्छे से सुख जाये, इसके अलवा नीम की खली 20-30 किलो ग्राम प्रति एकड़ डाल सकते हैं , इसके बाद दो बार कल्टीवेटर या हेरो से जुताई करना चाहिये | उसके बाद खेत को समतल करके खेत की ढाल के अनुसार मेड बनाये जिससे बरसात का पानी ना भरे वा आसानी से खेत से निकल जाये , मेड से मेड की दुरी 50-60 सेंटीमीटर रखे |
जैसे की हमने ऊपर ही लिखा हैं की 2020 के अंत तक तीखुर की खेती पर कोई विशेष कृषि अनुसन्धान नही हुआ हैं जिससे किसी उन्नत शील किस्मो का विकास नही हो पाया हैं तीखुर के खेती के लिए किसानो के आसपास के जंगलो में उगने वाले तीखुर के प्रकंदो का इतेमाल नई फसल को उगाने के लिए कर सकते हैं , एक एकड़ के लिए 6-8 कुंटल कंदों की जरुरत होता हैं जिनका वजन लगभग 30-50 ग्राम होता हैं , कंदों को लगाने के पहले किसी भी फफूंद नाशक दवा ( कार्बेन्डाजिम ,या Bvestin ) 2-2.5 ग्राम दवा प्रति किलो कंद से बीज उपचार कर लेना चाहिये , इससे प्रकंदो का सडन नही होता हैं |
तीखुर की रोपाई जून-जुलाई में करते हैं , तथा रोपाई मेड़ो में करना अच्छा होता हैं , इसमें कतार से कतार की दुरी 50-60 सेंटीमीटर वा पौधे से पौधे की दुरी 20 सेंटीमीटर होना चाहिये ,
फसलो को खरपतवारो से मुक्त रखने के लिए रोपाई के 30-40 दिन में निदाई गुड़ाई वा मिट्टी चढ़ाई का काम कर देना चाहिये , इसके बाद 70-80 दिन बाद दूसरी बार मिट्टी चढाई का काम कर देना चाहिये , और फिर अंतिम मिट्टी चढ़ाई का काम 130-135 में कर लेना चाहिये , पानी ना गिरने की स्थिति में हल्की सिचाई जरुरी हैं मिट्टी में अत्यधिक नमी ना रखे |
फसल सुरक्षा :-
तीखुर की फसल पर कोई खास रोग या किट का प्रकोप नही देखा गया हैं फिर भी यदि फसल में कोई रोग का लक्षण दिखे तो प्रभावित पौधे को उखाड़कर नष्ट कर दे | और वही कीड़ो का प्रकोप दिखे तो कीड़े मारने वाले हल्की दवाई का प्रयोग करे |
तीखुर की फसल अवधि 6-7 महीने की होती हैं ,तथा पत्तियो के सूखने के बाद कंदों की खुदाई करना चाहिये और फिर इसे छायादार स्थान में फैला कर सुखना चाहिये , इसके बाद प्रसंस्करण की प्रक्रिया करना चाहिये
प्रसंस्करण की विधि :-
तीखुर की खुदाई के बाद उसे स्टार्च में बदलना होता हैं जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार से किया जाता हैं , तीखुर को स्टार्च में बदलने के लिए देशी और मशीनी विधि का प्रयोग किया जाता हैं |
देशी विधि :- इसमें तीखुर के प्रकंदो को साफ धोकर फिर इसे खुरदुरे पत्थरों में टिन की चलनी के पीछे घिसते हैं जिससे एक तरल पदार्थ बनता हैं जिसे माड या स्टार्च कहते हैं जिसमे दो गुने पानी मिलाकर सूती कपडे की मदत से मिट्टी के मटके में छाना ले , और फिर रात भर के लिए या 10-12 घंटे के लिए छोड़ दे इससे स्टार्च निचे बैठ जाता हैं 10-12 घंटे बाद मटके के उपरी पानी को निकाल दे और फिर से ताजा पानी डाल दे और फिर 10-12 घंटे के लिए रख दे यही प्रक्रिया 3-4 दिन करे उसके बाद मटके में जमे स्टार्च को चमच की सहयता से निकालकर 4-6 दिन तक अच्छे से धुप में सुखा कर उपयोग में या बेचने के लिए कर सकते हैं |
मशीनी विधि :- इसमें ग्राइडिंग मशीन का उपयोग किया जाता हैं जो बिजली से चलता हैं मशीन में घिसने के बजाय पीसकर स्टार्च निकाला जाता हैं , इसमें तीखुर की प्रकंदो को छोटे छोटे टुकडो में काट कर मशीन में डाल देते हैं जिसकी अच्छे से पिसाई हो जाता हैं , फिर जो माड या स्टार्च प्राप्त होता हैं उसमे दो गुने पानी मिलाकर सूती कपडे की मदत से छाना जाता हैं , और 10-12 घंटे के लिए छोड़ दे इससे स्टार्च निचे बैठ जाता हैं 10-12 घंटे बाद उपरी पानी को निकाल दे और फिर से ताजा पानी डाल दे और फिर 10-12 घंटे के लिए रख दे यही प्रक्रिया 3-4 दिन करे उसके बाद बर्तन के नीचे में जमे स्टार्च को चमच की सहयता से निकालकर सुखा ले, मशीन से सुखाने के लिए एक दिन ही काफी होता हैं , सूखने के बाद अच्छे से पैकिंग करके रख ले | मशीन से स्टार्च प्रतिदिन 3-4 कुंटल कंदों से निकला जा सकता हैं जबकि देशी विधि में एक व्यक्ति एक दिन में 20-25 किलोग्राम कंदों से ही स्टार्च निकाल सकता हैं , एक किलोग्राम स्टार्च बनाने के लिए लगभग 8-10 किलोग्राम प्रकंदो की जरुरत पड़ता हैं |
मांड / स्टार्च का उपज :-
तीखुर की प्रकंदो के प्रसंस्करण से स्टार्च निकला जाता हैं , जिसमे कंदों से केवल 12-22 प्रतिशत तक स्टार्च निकलता हैं जिसका बाजार मूल्य 150-300 रूपए प्रति किलो ग्राम होता हैं , यदि हम प्रकंदो की बात करे तो अच्छी देख रेख करने पर एक एकड़ में लगभग 7-8 टन यानि की 70- 80 कुंटल तक पैदावार होता हैं जिससे लगभग 700-800 किलोग्राम के बीच स्टार्च प्राप्त होता हैं |
बाजार से तीखुर खरीदते समय सावधानिया:-
बाजार से तीखुर खरीदते समय लोगो को सावधानी बरतने चाहिए क्योकि तीखुर के सामान ही दिखने वाले दुसरे चीज भी मौजूद हो सकता हैं क्योकि तीखुर का स्टार्च ह्ल्क सफ़ेद रंग का होता हैं , तथा यह कठोर होता हैं , लेकिन बाजार में हो सकता हैं इसका पिसा हुआ माल मिले, जिसमे मिलावट किया जा सकता हैं , इसलिए बाजार से तीखुर ठोस रूप में ही ख़रीदे जिसे बाद में मिक्सी या किसी अन्य उपकरण से जरुरत के हिसाब से पीस कर उपयोग किया जा सके |
तीखुर स्वस्था के लिए बहुत ही लाभकारी हैं , साथ ही किसानो के लिए भी बहुत लाभकारी हैं , इसलिए लोगो को तीखुर का सेवन करना चाहिये , और किसानो को अपने बेकार पड़े जमीनों में तीखुर की खेती करना चाहिये वो भी जैविक रूप से क्योकि आज कल किसानो के द्वारा अन्धाधुन रासायनिक खाद का प्रयोग कर रहे हैं जो लोगो की सेहत को बहुत ही बुरा प्रभाव डाला हैं , जिसकी वजह से केंसर हार्ट अटेक , लोकवा , जैसे परेशानी का सामना करना पड़ रहा हैं , अतः आप सब से निवेदन हैं जी जैविक अपनाये |
यदि तीखुर की खेती से किसानो को होने वाले आय :-
यदि तीखुर की खेती से किसानो की प्रति एकड़ आय की बात करे तो बहुत अच्छा हैं यदि किसान खुद से तीखुर की बीज की ब्यवस्था कर ले तो बहुत ही अच्छा आमदनी हो सकता हैं क्योकि कुल ब्याय का 50 प्रतिशत केवल बीज के लिए ही खर्च हो जाता हैं , जबकि तीखुर की फसल पर बहुत ही कम किट ,बीमारी का प्रकोप होता हैं या नही भी होता हैं जिससे कीटनाशक , दवाई का खर्च पूरा बच जाता हैं ,
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बीज की मात्र 700 किलोग्राम , प्रति किलो 40 रूपए 700 =28000
गोबर की खाद 4 ट्रेक्टर , प्रति ट्रिप, 2500रूपए*4=10000 |
खेत की जुताई 1000 प्रति घंटा 1000*3 =3000 रूपए
मेड बनाना, बीज रोपाई , निराई गुड़ाई, सिचाई के लिए मजदूरी 10000
स्टार्च बनाने में खर्च प्रति किलो 300 रूपए 700*30 =21000
अन्य खर्चो के लिए 2000
कुल खर्च 74000
आय 700 किलोग्राम स्टार्च , 200 रूपए प्रति किलो ग्राम , 700*150
=1,05000
1,05000-74000 =शुद्ध आय 31000 रूपए प्रति एकड़






