Chemical Free Farming कैसे करे
लगातार खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशक के प्रयोग से , खेती पर अधिक खर्च होता हैं ,जबकि किसी फसल को उगाने में होने वाले कुल खर्च की तुलना में उस फसल से होने वाले शुद्ध आय बहुत ही कम होता हैं , जिससे किसान कृषि को सिर्फ अपने जीवन यापन करने का साधान ही मानता हैं | और अपने बच्चो को खेती ना करे इसलिए पढ़ा लिखाकर, नौकरी करने के लिए तैयार करते हैं जिससे परिवार की आय में वृद्धि हो और जीवन यापन का स्तर ऊपर उठ सके |
किसी भी व्यक्ति के लिए शिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य हैं , इसलिए भारत की सविधान में डॉ.भीम राव अम्बेडकर ने सभी को समानता का अधिकार दिलाया हैं , किन्तु शिक्षा का मतलब किताबी ज्ञान को रट कर नौकरी करना कदापि नही हैं , शिक्षा का मतलब हैं , किसी भी चीज को बारीकी से समझने में पारंगत होना , और उसका उपयोग अपने जीवन ,परिवार ,समाज को बेहतर बनाने में करना हैं | आज जो दुनिया भर में छोटे -बड़े उद्योग पति हैं क्या वह पढ़ लिखकर नौकरी कर रहे हैं ? नही बल्कि वो लोग पढ़ लिख कर लोगो की उस जरुरत को बारीकी से समझा जो उनके लिए लाभदायक तो हैं ही साथ में दुनिया भर के लोगो की जरुरत को पूरा कर सके |
ठीक ऐसे ही हमारे किसान भाई या युवा पीढ़ी हैं उन्हें भी भविष्य की जरुरत को समझ कर खेती करने के तरीके और खेती से उत्पादन होने वाले उत्पाद को बेचने के तरीके में बदलाव करना जरुरी हैं , ताकि खेती में लोगो को अधिक लाभ हो , और अधिक से अधिक लोगो को रोजगार मिल सके |
मेरे प्रिया किसान भाई, और युवा मित्रो किसानो की हाथ में वो ताकत हैं जिसके सामने बड़े से बड़े उद्योग भी कुछ नही हैं ! किसी भी जीव को स्वस्थ जीवित रहने के लिए स्वस्थ खाना की जरुरत होता हैं , बिना खाना के कोई भी स्वस्थ और ना ही जीवित रह सकता हैं , ऐसे में कृषि को एक बड़ा उद्योग में बदला जा सकता हैं , जो लोगो को खाने पीने की सामग्री उपलब्ध करा सकता हैं |
उदहारण के रूप में देखे तो आज बाजार में जितने भी खाद्य पदार्थ हैं , वो सभी किसानो के द्वारा पैदा किया हुवा उत्पाद का परिवर्तित रूप हैं , जिसे कोई किसान अपने हाथो से ना बनाकर , किसी व्यक्ति की कम्पनी दुवारा निर्मित होता हैं , जैसे की आलू किसान उगाता हैं , लेकिन चिप्स कम्पनी बनाता हैं , गेहू किसान उगाता हैं , लेकिन ,आटा ,नुडल्स , आदि कम्पनी बनाता हैं , किसान धान उगाता हैं , लेकिन उसके धान का चावल निकालकर कम्पनी कई ब्रांड बना देता हैं , किसान तिलहन फसल उगाता हैं लेकिन कम्पनी उस फसल से तेल निकलता हैं |
ऐसे हजारो लाखो प्रोडक्ट हैं जो किसानो दुवारा उगाये गए फसल से तैयार होते हैं , यदि किसान फसल उगाने के बाद सीधे उस उत्पाद को ना बेच कर उसे अन्य उत्पाद में बदलकर बेचे तो ज्यादा लाभ कमा सकता हैं जैसे की यदि किसान धान उगाता हैं तो उसका चावल बनाये जिससे चावल का भाव अधिक मिलेगा , भूसा से तेल निकाले जिसका प्राइस अलग से मिलेगा , उसके बाद बचे भूसे को अपने खेत में खाद के रूप में प्रयोग करे , अब इसमें किसान को 3 फायदा हुवा एक चावल मिला यदि चाहे तो चावल का आटा , वा अन्य उत्पाद बनाकर बेच सकते हैं दूसरा तेल मिला और तीसरा खाद मिला | लेकिन यह पर एक किसान के लिए बहुत बड़ी समस्या हैं की इन सब को करने के लिए मशीनों की जरुरत होता हैं और उसके लिए पूजी की जरुरत होता हैं , साथ में यह से निकलने वाले उत्पाद को बेचने की व्यवस्था करना , यदि इस काम को एक गाव की सभी किसान या फिर आसपास गाव के जीतने भी किसान हैं वो सब मिलकर एक राइस मिल प्लांट लगाये और इस काम को सही तरीके से करे तो यह 100 % संभव हैं |
कृषि को लाभप्रद बनाने का दूसरा सबसे बड़ा माध्यम हैं की कृषि उत्पाद को नियत्रित करे , जिससे किसी भी उत्पाद का हर समय अधिकतम मांग बना रहे , जिससे किसानो को अधिक मूल्य प्राप्त होगा , इसी बात को हर छोटी -बड़ी कम्पनी ध्यान रखता हैं जब कम्पनी द्वारा उत्पादित किसी वास्तु का लोगो में अधिक मांग होता हैं तो उस मांग के बराबर या उस मांग से थोडा सा अधिक वास्तु का उत्पादन करता हैं और जब लोगो में मांग कम होता हैं तो अपने वास्तु का निर्माण भी कम कर देता हैं ,जिससे उस वास्तु को बनाने में होने वाले कुल खर्च में अधिक लाभ सके हैं |
लेकिन कृषि एक ऐसा क्षेत्र हैं जहा से उत्पादित होने वाले कृषि उत्पाद के बिना किसी का गुजारा भी नही हो सकता, ऐसे में किसान अपने उत्पादन को नियत्रित करके अच्छे गुणवत्ता वाली फसल को उगाये वा खुद से अपने उत्पाद को अन्य उत्पाद में बदलकर मार्केटिंग करे |
लगातार खेती कार्य में रासायनिक खाद वा कीटनाशक के प्रयोग से फसल उत्पाद की गुणवत्ता में बहुत ही कमी आई हैं ऐसे में किसानो को नियंत्रित फसल उत्पादन में रसायन मुक्त खेती बहुत ज्यादा लाभदायक हैं - इससे रासायनिक फसल उत्पादन में होने वाले कुल खर्च में 30-40%की कमी आता हैं , जबकि फसल की गुणवता अच्छी होने के कारण शुद्ध लाभ में 70% तक की वृद्धि होता हैं |
फसलो में रासायनिक खाद और कीटनाशक का प्रयोग करने से मिट्टी ,पानी तो दूषित होता ही हैं साथ में खाद और कीटनाशक को बनाने में प्रयोग होने वाले पदार्थ के अवशेष को पौधे जड़ वा पत्ती द्वारा अवशोषित कर लेता हैं , जो खाने के माध्यम से मानव वा पशु के शारीर में पहुच जाता हैं और धीरे-धीरे मांसपेशियों में जहरीले पदार्थ जमा होते रहने के कारण खतरनाक बीमारी उत्पन्न होता हैं , कैंसर , अल्सर, हार्ट अटेक , लोकवा , आदि बीमारी रासायनिक खेती के परिणाम हैं |
सोसायटी फॉर पेस्टिसाइड , साइंसेस ने ठीक ही कहा हैं , "न केवल हम अपने आप को जहर खिला रहे हैं , बल्कि आने वाले पीढ़ी का भविष्य भी खतरे में डाल रहे हैं | "
एक समय था जब रासायनिक खाद कीटनाशक का प्रयोग नही होता था ,तब अनाज ,दाल , वा अन्य सभी फसलो में एक शानदार खुशबू के साथ लाजवाब स्वाद होता था , जिससे लोग काफी अच्छा जीवन जीते थे , किन्तु तेज गति से जनसंख्या बढ़ने के कारण हरित क्रांति की शुरुवात हुवा जिसका मुख्य लक्षा किसी भी तरह से बढती हुई जनसंख्या के लिए भोजन की पूर्ति हो | और इसमें रासायनिक पदार्थो के उपयोग ने अपनी बड़ी भूमिका निभाया , और किसानो ने अपनी खेती में जल्द ही बड़ी मात्र में रसायन का प्रयोग किये , जिससे शुरुवात में किसानो को अच्छा लाभ हवा ,किन्तु समय के साथ-साथ , मिट्टी की भौतिक , जैविक दशा खराब वा फसलो को नुकसान पहुचाने वाले कीटो में रासायनिक दवाओ के प्रति सहनशील उत्पन्न होने लगा हैं , जबकि इन कीटो को खाने वाले मित्रा जीव नस्ट हो गए , जिससे कृषि में अधिक लगत लगाने के बावजूद भी उत्पादन कम हो रहा हैं जो किसानो के लिए बड़ी मुश्किल का विषय रह गया हैं |
उपरोक्त समस्या को देखते हुए रसायन मुक्त , जैविक खेती को अपनाना जरुरी हो गया हैं , और यह तभी संभव हैं जब किसान अपने आसपास मित्र जीवो का सरंक्षण , वा खेती में जैविक खाद का प्रयोग करेंगे |
वे जीव जो फसलो में लगने वाले रोग वा कीट को खाकर नस्ट करते हैं जैसे की मेढक , केकड़ा ,साप , गिरगिट , चिडया आदि हैं, जो कीट पतंगों के अड़े, लार्वा, एडल्ट को खा कर नस्ट कर देते हैं , जबकि केचुवा सुत्रक्रिमी की अंडे लार्वा को खाकर नस्ट कर देता हैं |
ऐसा खाद जो जीवो के अवशेषो को सड़ाकर बनाया जाता हैं जैविक खाद कहलाता हैं , जैसे की गोबर की खाद , कम्पोस्ट की खाद, केचुए की खाद , वा हरी खाद प्रमुख हैं इसके अलावा आज जैविक पदार्थो को संश्लेषित करके जैव उर्वरक भी बनाया जा रहा हैं जो फसलो के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो रहा हैं |
वर्तमान में बहुत सारे किसान पशुपालन नही करते हैं जिससे उनके लिए जैविक खेती करना मुश्किल लग सकता हैं लेकिन इसका भी समाधान हैं , यदि किसानो के पास पशु नही हैं और वो जैविक खेती करना चाहते हैं तो वो लोग कम्पोस्ट खाद, केचुए की खाद , या फिर हरी खाद का इस्तेमाल कर सकते हैं .
* कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए किसान अपने फसल अवशेष वा खेत में उगे खरपतवार का उपयोग कर सकता हैं , इससे किसान को अपने घरो का कचरा या फसल अवशेष को बेहतर खाद के रूप में इस्तेमाल कर सकता हैं , खाद बनाने के लिए आवश्कता अनुसार लबाई चौड़ाई और गहराई कम से कम 1 मीटर और अधिकतम 2 मीटर खेत के एक कोने में गढ़ा खोद ले अब इसमें जितने भी फसल अवशेष वा खरपतवार हैं उसे डाल दे, यदि हो सके तो ट्राईकोडारमा पावडर का छिड़कर भी कर दे , और फिर पानी का छिडकाव करके मिट्टी से ढक दे , 60-90 दिन में खाद प्रयोग के लिए तैयार हो जाता हैं .
* केचुए की खाद बनाने के लिए किसान अपने फसल अवशेष के साथ गोबर का प्रयोग कर सकता हैं का प्रयोग कर सकता हैं , केचुए की खाद बनाने के लिए , टैंक का निर्माण किया जाता हैं जिसमे गोबर और अन्य जैविक पदार्थो को मिक्स करके भरा जाता हैं तथा इसमें आइसीनिया फेटिडा नामक केचुवा को छोड़ देते हैं जो टैंक में भरे सभी जैविक पदार्थो को खाकर खाद में बादल देता हैं , इसका व्यावसायिक उत्पादन भी किया जा सकता हैं जो मार्केट में 10-20 रूपए प्रति किलो बिकता हैं .
* हरी खाद इसमें किसान अपने खेत में ढेचा , ज्वार , बाजरा , मुंग ,उड़द, मक्का , सन जुट आदि की बीज को खेत में छिड़ककर बो दिया जाता हैं तथा पौधों में अच्छी मात्रा में पत्ती हो जाने के बाद खेत को जोत कर सभी फसल को मिट्टी में दबा दिया जाता हैं तथा पानी का छिडकाव कर दिया जाता हैं जिससे 30-45 दिन में खाद बनकर मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाता हैं , यह विधि उस स्थान पर करना चाहिये जहा पर पानी की अच्छी व्यवस्था होना चाहिए |
* इसके अलावा तिलहन फसलो के खली , वा हड्डी का चुरा भी खाद के रूप में प्रयोग किया जाता हैं, जिससे फसल को सभी प्रकार की पोषक तत्व आसानी से मिल जाता हैं , खली के प्रयोग से फसलो में कीट वा बीमारी का प्रकोप बहुत कम हो जाता हैं |
* धान की फसल के लिए एजोला , हरी काई , बहुत अच्छा खाद का काम करता हैं , खास करके उस स्थान में जंहा , लाइन में रोपाई या बोवाई की जाती हैं तथा धान की फसल में ब्याशी किया जाता हैं , पानी भरे खेत में खेत की एक चौथाई हिस्से में एजोला या हरी काई को छिडक दिया जाता हैं जो 15 दिनों में पुरे खेत में फ़ैल जाता हैं , इसके बाद इसे पैडी विडर या हल चला कर मिट्टी में दबा दे , इसमें बड़ी मात्रा में नाइट्रोजन , फास्फोरस , वा अन्य पोषक तत्वा पौधों को मिल जाता हैं ,
* सूखे खेत या दलहनी,तिलहनी फसल के लिए राइजोबियम , वा फास्फोरस घोलक जीवाणु का उपयोग किया जा सकता हैं राइजोबियम जीवाणु वायुमंडल की नत्रोजन को मिट्टी में मिक्स करता हैं जिससे पौधों का विकास अच्छा होता हैं जबकि फास्फोरस घोलक जीवाणु मिट्टी से दूर पड़े फास्फोरस को घोलकर पौधों को उपलब्ध कराता हैं .
* खाड़ी फसल में छिडकाव के लिए जैव अमृत का भी प्रयोग किया जाता हैं , जैव अमृत बनाने के लिए 10 लीटर गो मूत्र ,10 किलो ग्राम गोबर, 5 किलोग्राम बड़ी झाड़ के नीचे की मिट्टी , 2 किलोग्राम गुड ,2 किलोग्राम बेसन , इन सभी चीजो को एक मटके में मिक्स करके भर दे और मटके के मुह को पत्ते से ढक कर बांध दे , इसे 7 दिन तक सड़ने से , ध्यान रहे हर 1 दिन बाद सुबह शाम मिक्स को लकड़ी के डंडे से उल्टे व सीधे दिशे में मिक्स करते रहे , जब सात दिन पूरा हो जाये उसके बाद इस मिक्स को जाली से छान ले और 1 किलो ग्राम मात्रा को 10 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करे , इससे फसल का विकास बहुत अच्छे से होता हैं साथ में कीटो का प्रकोप को नियंत्रित करता हैं |
इस प्रकार से किसान भाई अपने खेतो में Chemical Free Farming कर सकते हैं और फिजूल की खर्च को बचाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं .
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