Organic Cumin Cultivation
जीरा एक बहुउपयोगी फसल हैं जिसका उपयोग ना केवल मसालों में किया जाता हैं बल्कि इसका प्रयोग कई प्रकार की औषधि बनाने में भी किया जाता हैं इसलिए जीरा की Organic Cultivation करना आवश्यक हैं ताकि जीरा के औषधि गुण को और भी बेहतर बनाया जा सके |
- जीरा के प्रकार
- जीरा के औषधि गुण
- बालकनी या छत पर जीरा को कैसे उगाये
- जीरा की उन्नत खेती कैसे करे
जीरा मसाले के रूप में उपयोग होने वाले प्रमुख फसल हैं उसके बाद सबसे ज्यादा धनिया का होता हैं , जीरा का प्रयोग दाल सब्जी में तड़का लगाने के लिए वही जीरा का प्रयोग गरम मसाले बनाने में वा कई प्रकार के अन्य प्रोडक्ट बनाने में बहुत ज्यादा होता हैं | कुछ व्यंजन बनाने में जीरा की हरी पत्तियो का भी प्रयोग किया जाता हैं ,
जीरा का उपयोग हर घर में होता हैं और इसका मांग भी पुरे सालभर रहता हैं जिससे किसान जीरे की खेती करके अच्छा खासा पैसा कमा सकते हैं , यदि किसान भाई जीरा की खेती करके अच्छा खासा पैसा कमाना चाहते हैं तो उन्हें कुछ खास बातो का ध्यान रखना होगा जिसका चर्चा हम इस पोस्ट में विस्तार से करेंगे :-
- जीरा के मुख्य प्रकार और मांग
यदि किसान भाई जीरे की खेती करना चाहते हैं तो उनके लिए लिए जरुरी हैं की जीरा के भी अलग अलग प्रकार होता हैं और उसका मांग भी अलग-अलग होता हैं , और उनका बाजार मूल्य भी अलग होता हैं |
1. सफेद जीरा :- सफेद जीरा जो घरो में आमतौर पर मसाला वा दाल सब्जियों में तड़का लगाने में प्रयोग किया जाता हैं , जिसका बाजार मूल्य 300 से 500 रूपए प्रति किलो होता हैं
2. काला जीरा :- यह जीरा काले रंग का होता हैं जिसे जंगली जीरा भी कहा जाता हैं इसका प्रयोग उच्च किस्म के मसाला बनाने में किया जाता हैं तथा इस जीरे का प्रयोग उच्च कोटि के दवाई बनाने में किया जाता हैं इसका बाजार मूल्य लगभग 1500-2000 के तक प्रति किलो होता हैं | काला जीरा की बोवाई अक्टूबर से नवम्बर के अंतिम सप्ताह तक किया जाता हैं
जबकि काला जीरा की ताना से तेल निकालना होता हैं तो बोवाई सितम्बर के अंतिम सप्ताह तक किया जाता हैं , जिससे तेल निकालने की पूरी प्रक्रिया को ठण्ड के मौसम रहते ही पूरा कर लिया जाये , अधिक गर्मी होने की स्थिति में तेल की मात्र कम हो जाता हैं |
काला जीरा के फायदे के बारे में अधिक जानने के लिए क्लिक करे Benefit Of Black Cumin
काला जीरा की खेती सामान्य जीरा की खेती जैसे ही करते हैं काला जीरा में सिर्फ बीज बोने की समय को ही ध्यान रखना होता हैं बाकि सब सफेद जीरा के सामान ही होता हैं |
- जीरा के सामान्य औषधि गुण :-
जीरा में प्रति 100 ग्राम में पाए जाने वाले तत्व
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कैलोरी |
375 |
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वसा |
22 g |
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कोलेस्ट्रोल |
0 mg |
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सोडियम |
168 mg |
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पोटेशियम |
178 mg |
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कार्बोहाइड्रेट |
44 g |
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रेशा |
11 g |
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शुगर |
2.3 g |
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प्रोटीन |
18 g |
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विटामिन A |
15 mg |
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विटामिन C |
8.14 mg |
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विटामिन D |
2.22 mg |
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विटामिन B-6 |
5 mg |
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कैलेसियम |
130 g |
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आयरन |
20 g |
- अम्लीय और एसिडिटी में लाभ :- यदि किसी को खट्टी डाकार या एसिडिटी की समस्या हो तो धनिया + जीरा + मिश्री तीनो को बराबर भाग में मिला कर बारीक़ पीस ले और इसे सुबह शाम 2-2 चमाच ले इससे समस्या ठीक हो सकता हैं , इसके अलावा पेट की अन्य समस्या भी ठीक हो जाता हैं ,यदि मिश्री नही हो तो नमक भी ले सकते हैं
- वजन कम करने में :- यदि कोई अपना वजन कम करना चाहते हैं तो एक गिलास पानी में एक चम्मच जीरा को रात भर भिगो दे और सुबह खाली पेट पानी को जीरा के साथ अच्छे से चबा-चबा कर पीना चाहिए ऐसा लगातार 30 दिन करने से वजन कम होने लगते हैं |
- सर्दी-जुकाम, कफ में फायदेमंद :- सर्दी-जुकाम, कफ से बंद नाक के लिए काला जीरा इन्हेलर का काम भी करता है। ऐसी स्थिति में थोड़ा सा भुना जीरा रूमाल में बांध कर सूंघने से आराम मिलता है। अस्थमा, काली खांसी, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी से होने वाली सांस की बीमारियों में भी यह फायदेमंद है।
- सिरदर्द व दांत दर्द में दे राहत :- काले जीरे का तेल सिर और माथे पर लगाने से माइग्रेन जैसे दर्द में लाभ होता है। गर्म पानी में काले जीरे के तेल की कुछ बूंदें डाल कर कुल्ला करने से दांत दर्द में काफी राहत मिलती है।
- कैल्शियम और आयरन से भरपूर जीरा दूध पिलाने वाली माताओं के लिए बहुत लाभकारी होता है। इसके लिए जीरे को भून कर पाउडर बना लें और एक बड़ा चम्मच जीरा सुबह शाम गरम पानी या गरम दूध से लेने से फायदा होता है|
- घर की बालकनी या छत में जीरा कैसे लगाये :-
जीरा का पौधा बहुत आकर्षक होता हैं इसलिए इसे बालकनी या छत की सुन्दरता बढ़ाने के लिए भी उगा सकते हैं जिससे घर के लिए जीरा भी आसानी से मिल जायेगा ,
बालकनी या छत पर जीरा उगाने के लिए अपने आवश्यकता अनुसार गमलो का ही चुनाव करे क्योकि यह बालकनी या छत के लिए बहुत अच्छा होता हैं ,
गमलो में सबसे पहले मिट्टी और खाद का मिश्रण भरे , आधा भाग मिट्टी और आधा भाग अच्छे से सड़े गोबर की खाद या कम्पोस्ट की खाद मिलाये इससे पौधे को बहुत अच्छा पोषक तत्व मिलता हैं ,
जब गमलो में खाद और मिट्टी का मिश्रण भर ले उसके बाद यदि छोटा गमला हो तो प्रतेक गमलो में 4-5 बीज डाले और हल्की पानी का छिडकाव कर दे, ध्यान रहे अधिक नमी ना हो इसके लिए प्रतेक गमलो के नीचे छेद कर दे इससे अधिक पानी बहार निथर जायेगा |
- जीरा की उन्नत खेती करने के लिए सामन्य जानकारी :-
जीरा की अच्छी उपज के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातो को ध्यान में रखना होगा जो इस प्रकार से हैं :-
जीरा की उन्नत किस्मे :-
आर एस-1- राजस्थान के लिए उपयुक्त, बड़े एवं रोयेदार बीज वाली यह किस्म 80 से 90 दिनों में परिपक्व हो जाती है| इसकी पैदावार 6 से 8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है| यह किस्म उखठा रोग के प्रति प्रतिरोधी पायी गयी है|
एम सी- 43- गुजरात राज्य के लिए उपयुक्त इस किस्म का विकास मसाला अनुसंधान केन्द्र, जगुदान (गुजरात) द्वारा किया गया है| यह किस्म 90 से 105 दिनों में परिपक्व हो जाती है| इसकी उपज 7 से 8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक है|
आर जेड-19- यह किस्म राजस्थान के सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है| इसका तना सीधा होता है व इस पर गुलाबी रंग के फूल व रोमिल दाने आते हैं| यह किस्म 120 से 140 दिन में पक कर तैयार होती है तथा इस किस्म की पैदावार 8 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर दर्ज की गयी है|
आर जेड- 209- उखठा रोग के प्रति सहनशील इस किस्म का विकास राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के श्री करण नरेन्द्र कृषि महाविद्यालय, जोबनेर द्वारा किया गया है| यह किस्म राजस्थान के लिए उपयुक्त है तथा लगभग 140 से 150 दिनों में पक जाती है| जिसकी पैदावार लगभग 6 से 7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है|
जी सी- 1- यह किस्म उखठा रोग के प्रति सहनशील एवं गुजरात के लिए उपयुक्त है| इस किस्म के पौधे सीधे, गुलाबी फूलों वाले व भूरे मोटे बीज वाले होते हैं| यह किस्म 105 से 110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है| इसकी औसत पैदावार 7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पायी गयी है|
जी सी- 2- गुजरात के लिए उपयुक्त इस किस्म का विकास मसाला अनुसंधान केन्द्र जगदान (गुजरात) द्वारा किया गया है| यह किस्म लगभग 100 दिनों मे पक कर तैयार हो जाती है जो लगभग 7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की पैदावार देती है|
जी सी- 3- उखठा रोग सहने की क्षमता वाली इस किस्म का विकास मसाला अनुसंधान केन्द्र, जगुदान (गुजरात) द्वारा किया गया है| लगभग 7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की उपज देने वाली यह किस्म 100 दिन में पक कर तैयार हो जाती है|
जी सी- 4- उखठा रोग के लिए प्रतिरोधी इस किस्म का विकास मसाला अनुसंधान केन्द्र, जगुदान (गुजरात) ने गुजरात जीरा- 3 (जी सी- 3) की पंक्ति चयन द्वारा किया गया है| यह किस्म 115 से 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है| जिसकी पैदावार लगभग 12 क्विंटल प्रति हैक्टेयर दर्ज की गयी है|
बोवाई का समय और विधि :- जीरा का बोवाई अक्टूबर से नवम्बर तक कर लेना चाहिए क्योकि इस समय पर बोने से पौधों का विकास अच्छा होता हैं और फुल आते समय पर्याप्त गर्मी भी मिल जाता हैं जिससे उपज अच्छा होता हैं | जीरा की बोवाई क्यारियो में करना चाहिए इसके लिए 5 फिट चौडा वा 10 फिट लंबा आकार में क्यारी बना ले फिर इसमें बीजो को 1-2 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए यदि कतार बोनी कर रहे हैं तो कतार से कतार की दुरी 25 सेंटीमीटर वा पौधे से पौधे की दुरी 10 सेंटीमीटर रखे |
सिचाई :- जीरा की फसल को 5-6 सिचाई की जरुरत होता हैं , यदि बोवाई करते समय उचित नमी ना हो तो बोवाई करने के तुरंत बाद हल्की सिचाई करना चाहिये , इसके बाद नमी की कमी महसूस होने पर 15-20 दिन बाद सिचाई करते रहना चाहिये हल्की भूमि में 8-10 दिन के अंतर पर सिचाई करते रहे |
निराई गुड़ाई :- अन्य फसलो की तरह ही जीरा की फसल में भी निराई गुड़ाई की जरुरत होता हैं , वैसे भी जीरा की प्रारंभिक वृद्धि धीमी होता हैं ऐसे में बोवाई के 30-35 दिन बाद पहली निराई गुड़ाई करनी चाहिए उसके बाद 60-65 दिन बाद दूसरी निराई गुड़ाई करनी चाहिये |
किट एवं बीमारी और रोकथाम
उखठा रोग (विल्ट)
फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम नामक कवक द्वारा फैलने वाला यह मृदा जनित रोग पौधे की किसी भी अवस्था में हो सकता है| परन्तु प्रायः जब फसल एक महीने की हो जाती है, तो इस रोग का प्रकोप होता है| पौधे की उम्र के साथ रोग का प्रकोप बढता जाता है| रोग पौधे की जड़ में लगता है| इसके प्रारम्भिक लक्षण के रूप में पत्तियाँ पीली पड़ जाती है और धीरे-धीरे पौधा मुरझा कर सूखने लगता है|
संक्रमित पौधे को जमीन से निकालने पर आसानी से निकल जाता है एवं जड़ों मे गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हैं| जिन खेतों में फसल चक्र नहीं अपनाया जाता है, वहाँ रोग का प्रभाव अधिक होता है| अगर रोग का संक्रमण पुष्प आने के समय होता है, तो उसमें बीज नहीं बनते है|
रोकथाम
इस रोग की रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिये इसके अलावा जैविक दवाई ट्राइकोडर्मा 1 ग्राम दावा को प्रति किलो बीज की दर से या रासायनिक रुप से बीज को बाविस्टीन या कैप्टान द्वारा 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करना चाहिए| शुद्ध स्वस्थ व रोगरहित या उखठा रोगरोधक किस्म जैसे- जी सी- 4 के बीजों की बुवाई करनी चाहिए|
जीरे में सूत्रकमि का प्रकोप देखा गया है, जिसके अन्तर्गत सत्रकमि इन फसलों की जडों पर घाव कर देता है| सूत्रकृमि के प्रकोप से जीरे में फ्युजेरियम विल्ट का प्रकोप बढ़ जाता है| इसके नियन्त्रण के लिए बुवाई से पूर्व अरण्डी की खली को भूमि में मिलाना चाहिए तथा गर्मी के मौसम में मृदा सौर्यकरण एवं उचित फसल चक्र अपनाना चाहिए|
झुलसा रोग (ब्लाइट)
झुलसा रोग से एक या दो दिन में ही पूरी फसल नष्ट हो जाती है| फसल में पुष्पन शुरू होने के बाद अगर आकाश में बादल छाये हो तथा नमी बढ जाये तो इस रोग की संभावना काफी बढ़ जाती है| इस रोग में पौधों की पत्तियों व तनों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं तथा पौधे के सिरे झुके से नजर आने लगते हैं| रोग के उग्र अवस्था में रोगी पत्तियाँ झुलसी हुई दिखाई देती है|
रोग ग्रसित पौधों में या तो बीज नहीं बनते है और बनते है तो भी छोटे एवं सिकडे हुए होते है| इस रोग के अधिक प्रकोप की स्थिति में पूरे खेत की फसल काली पड़ जाती है तथा ज्यादातर पौधे धीरे-धीरे सूखकर मर जाते हैं| अनुकूल वातावरण होने पर यह रोग इतनी तेजी से फैलता है कि, फसल को बचाना लगभग मुश्किल हो जाता है|
रोकथाम
मौसम के बदलाव आते ही बीमारी के आने की संभावना होने पर दवा का छिड़काव करके फसल को बचाया जा सकता है| जैविक दवाई विजया 666 या josB-5 को 2 मिलीलीटर दावा को एक लीटर पानी के हिसाब से घोलकर छिडकाव करे या फिर फफूंदनाशी डाइथेन एम- 45 या बावेस्टिन 2.5 ग्राम दवा को एक लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिडकाव करे .
छाछया रोग (पाउडरी मिल्डयू)
फसल में अतिशीघ्र फैलने वाले इस हवा जनित रोग में बीमारी की प्रारम्भिक अवस्था में पौधों की पत्तियों व टहनियों पर सफेद चूर्ण दृष्टिगोचर होता है| जो उग्र अवस्था में पूरे पौधे को चूर्ण से ढक देता है| इस रोग के लक्षण एक से दो पौधों में दिखते ही नियंत्रण करना चाहिए अन्यथा फसल को बचाना असम्भव हो जाता है| रोगग्रस्त पौधे पर या तो बीज बनता ही नहीं, और अगर बनता है, तो छोटे आकार का तथा बहुत ही कम मात्रा में रोग के देर से आने पर उपज पर तो ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन दानों का रंग व चमक खराब हो जाती है|
रोकथाम
एक किलोग्राम घुलनशील गंधक या 500 मिलीलीटर कैराथेन या 700 ग्राम कैलेक्सिन का 2.5 मिलीलीटर दावा को पानी में घोल बनाकर छिडकाव करने से इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है| आवश्यकता पड़ने पर 10 से 15 दिनों बाद छिड़काव को दोहराया जाना चाहिए|
कीट एवं रोकथाम
माहू (एफिड)
माहू कीट पुष्पन के समय फसल पर आक्रमण करता है एवं फसल के कोमल भागों से रस चूस लेता है| उग्र अवस्था में पौधे पीले होकर सूख जाते हैं व फसल की बढ़तवार प्रभावित होती है| इन कीटों की ज्यादा उपस्थिति उत्पादन व गुणवत्ता को प्रभावित करती है|
रोकथाम
इस किट की रोकथाम के लिए जैविक दवाई विजया 666 का 2 मिलीलीटर दावा को एक लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करे
जीरे का पाले से बचाव
जीरे की फसल पाले से आसानी से प्रभावित होने वाली फसलों में से एक है| इस फसल को पाले से बचाने के लिए पाला पड़ने की संभावना होने पर फसल की सिंचाई करनी चाहिए| अस्थाई प्लास्टिक की दीवारों जिनकी ऊंचाई 2.0 मीटर तक हो सकती है का उपयोग पाला नियन्त्रण में काफी सार्थक रहता है|









