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Organic Cumin Cultivation 

जीरा की आर्गेनिक खेती

जीरा एक  बहुउपयोगी फसल हैं जिसका उपयोग ना केवल मसालों में किया जाता हैं बल्कि इसका प्रयोग कई प्रकार की औषधि बनाने में भी किया जाता हैं इसलिए जीरा की Organic Cultivation करना आवश्यक हैं ताकि जीरा के औषधि गुण को और भी बेहतर बनाया जा सके |

  • जीरा के प्रकार 
  • जीरा के औषधि गुण 
  • बालकनी या छत पर जीरा को कैसे उगाये 
  • जीरा की उन्नत खेती कैसे करे 

जीरा मसाले के रूप में उपयोग होने वाले प्रमुख फसल हैं उसके बाद सबसे ज्यादा धनिया का होता हैं , जीरा का प्रयोग दाल सब्जी में तड़का लगाने के लिए वही जीरा का प्रयोग गरम मसाले बनाने में वा कई प्रकार के अन्य प्रोडक्ट बनाने में बहुत ज्यादा होता हैं | कुछ व्यंजन बनाने में जीरा की हरी पत्तियो का भी प्रयोग किया जाता हैं , 

जीरा का उपयोग हर घर में होता हैं और इसका मांग भी पुरे सालभर रहता हैं जिससे किसान जीरे की खेती करके अच्छा खासा पैसा कमा सकते हैं , यदि किसान भाई जीरा की खेती करके अच्छा खासा पैसा कमाना चाहते हैं तो उन्हें कुछ खास बातो का ध्यान रखना होगा जिसका चर्चा हम इस पोस्ट में विस्तार से करेंगे :-

  • जीरा के मुख्य प्रकार और मांग 

यदि किसान भाई जीरे की खेती करना चाहते हैं तो उनके लिए लिए जरुरी हैं की जीरा के भी अलग अलग प्रकार होता हैं और उसका मांग भी अलग-अलग होता हैं , और उनका बाजार मूल्य भी अलग होता हैं |

1. सफेद जीरा :- सफेद जीरा जो घरो में आमतौर पर मसाला  वा दाल सब्जियों में तड़का लगाने में प्रयोग किया जाता हैं , जिसका बाजार मूल्य 300 से 500 रूपए प्रति किलो होता हैं 

2. काला जीरा :- यह जीरा काले रंग का होता हैं जिसे जंगली जीरा भी कहा जाता हैं इसका प्रयोग उच्च किस्म के मसाला बनाने में किया जाता हैं तथा इस जीरे का प्रयोग उच्च कोटि के दवाई बनाने में किया जाता हैं इसका बाजार मूल्य लगभग 1500-2000 के तक प्रति किलो होता हैं |  काला जीरा की बोवाई अक्टूबर से नवम्बर के अंतिम सप्ताह तक किया जाता हैं 

जबकि काला जीरा की ताना से तेल निकालना होता हैं तो बोवाई सितम्बर के अंतिम सप्ताह तक किया जाता हैं , जिससे तेल निकालने की पूरी प्रक्रिया को ठण्ड के मौसम रहते ही पूरा कर लिया जाये , अधिक गर्मी होने की स्थिति में तेल की मात्र कम हो जाता हैं |


काला जीरा के फायदे के बारे में अधिक जानने के लिए क्लिक करे  Benefit Of Black Cumin
काला जीरा की खेती सामान्य जीरा की खेती जैसे ही करते हैं  काला जीरा में सिर्फ बीज बोने की समय को ही ध्यान रखना होता हैं बाकि सब सफेद जीरा के सामान ही होता हैं |


  • जीरा के सामान्य औषधि गुण :- 

जीरा में प्रति 100 ग्राम में पाए जाने वाले तत्व 


कैलोरी

375

वसा

22 g

कोलेस्ट्रोल

0 mg

सोडियम

168 mg

पोटेशियम

178 mg

कार्बोहाइड्रेट

44 g

रेशा

11 g

शुगर

2.3 g

प्रोटीन

18 g

विटामिन A

15 mg

विटामिन C

8.14 mg

विटामिन D

2.22 mg

विटामिन B-6

5 mg

कैलेसियम

130 g

आयरन

20 g

 

यदि जीरा की औषधि गुण के बारे में उलेख करे तो आपको जानकर हैरानी होगा की एक छोटे से दिखने वाले कितने कमाल के हैं :-

  1. अम्लीय और एसिडिटी में लाभ :- यदि  किसी को खट्टी  डाकार या एसिडिटी की समस्या हो तो   धनिया + जीरा + मिश्री  तीनो को बराबर भाग में मिला कर बारीक़ पीस ले और इसे सुबह शाम 2-2 चमाच ले इससे समस्या ठीक हो सकता हैं , इसके अलावा पेट की अन्य  समस्या भी ठीक हो जाता हैं ,यदि मिश्री नही हो तो नमक भी ले सकते हैं 
  1. वजन कम करने में :- यदि कोई अपना वजन कम करना चाहते हैं तो एक गिलास पानी में एक चम्मच जीरा को रात भर भिगो दे और सुबह खाली पेट पानी को जीरा के साथ अच्छे से चबा-चबा कर पीना चाहिए ऐसा लगातार 30 दिन करने से वजन कम होने लगते हैं |
  1. सर्दी-जुकाम, कफ में फायदेमंद :- सर्दी-जुकाम, कफ से बंद नाक के लिए काला जीरा इन्हेलर का काम भी करता है। ऐसी स्थिति में थोड़ा सा भुना जीरा रूमाल में बांध कर सूंघने से आराम मिलता है। अस्थमा, काली खांसी, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी से होने वाली सांस की बीमारियों में भी यह फायदेमंद है।
  1. सिरदर्द व दांत दर्द में दे राहत :- काले जीरे का तेल सिर और माथे पर लगाने से माइग्रेन जैसे दर्द में लाभ होता है। गर्म पानी में काले जीरे के तेल की कुछ बूंदें डाल कर कुल्ला करने से दांत दर्द में काफी राहत मिलती है।
  1. कैल्शियम और आयरन से भरपूर जीरा दूध पिलाने वाली माताओं के लिए बहुत लाभकारी होता है। इसके लिए जीरे को भून कर पाउडर बना लें और एक बड़ा चम्‍मच जीरा सुबह शाम गरम पानी या गरम दूध से लेने से फायदा होता है|

  • घर की बालकनी या छत में जीरा कैसे लगाये :-

जीरा का पौधा बहुत आकर्षक होता हैं इसलिए इसे  बालकनी या छत की सुन्दरता बढ़ाने के लिए भी उगा सकते हैं जिससे घर के लिए जीरा भी आसानी से मिल जायेगा , 

 बालकनी या छत पर जीरा उगाने के लिए अपने   आवश्यकता अनुसार गमलो का ही चुनाव करे क्योकि यह बालकनी या छत के लिए   बहुत अच्छा होता हैं , 

गमलो में सबसे पहले मिट्टी और खाद का मिश्रण भरे , आधा भाग मिट्टी और आधा   भाग  अच्छे से सड़े गोबर की खाद या कम्पोस्ट की खाद मिलाये इससे पौधे को बहुत अच्छा पोषक तत्व मिलता हैं , 

जब गमलो में खाद और मिट्टी का मिश्रण भर ले उसके बाद यदि छोटा गमला हो तो प्रतेक गमलो में   4-5 बीज  डाले  और हल्की पानी का छिडकाव कर दे, ध्यान  रहे अधिक नमी ना हो इसके लिए प्रतेक गमलो के  नीचे छेद कर दे इससे अधिक पानी बहार निथर जायेगा |

  • जीरा की उन्नत खेती करने के लिए सामन्य जानकारी :-

जीरा की अच्छी उपज के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातो को ध्यान में रखना होगा जो इस प्रकार से हैं :-

जलवायु :- जीरा की खेती के लिए शुष्क और ठंडी जलवायु अच्छा माना जाता हैं जीरा की बोवाई के लिए 20-25 डिग्री तापमान अच्छा होता जबकि फसल पकते समय 28-30 डिग्री तापमान अच्छा माना जाता हैं |

मिट्टी :- जीरा की खेती वैसे तो अच्छी व्यवस्था करने से लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में आसानी से किया जा सकता हैं किन्तु अच्छे उत्पादन के  लिए अच्छी जीवांश युक्त तथा अच्छे जल निकास की सुविधा वाले  दोमट मिट्टी अच्छा होता |

 खेत की तैयारी  एवं खाद :- जीरा की खेती के लिए मिट्टी को भुरभुरा बनाना बहुत जरुरी हैं इससे बीज को उगने में कोई दिक्कत नही होता हैं , खेत को  अच्छी तरह से तैयार करने के लिए , एक बार गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2-3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करना चाहिए यदि खेत में अधिक ढेले हो तो उसे तोड़ने के लिए रोटावेटर से जुताई करना चाहिये , जुताई करते समय नमी को बनाये रखने के लिए प्रतेक जुताई के बाद  पाटा भी लगाना चाहिये, खेत में 1से 2 ट्रेक्टर अच्छी सड़ी गोबर की खाद या फिर कम्पोस्ट खाद , या फिर 100 किलोग्राम केचुए की खाद प्रति एकड़ खेत की दूसरी जुताई करते समय डालना चाहिए , यदि जैविक खाद ना हो तो 50 किलो ग्राम यूरिया 40 किलो ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट , और 40 किलोग्राम  म्यूरेट ऑफ़ पोटाश का  उपयोग कर सकते हैं , यूरिया की आधी मात्रा , और   सिंगल सुपर फास्फेट  वा पोटाश की पूरी मात्रा को खेत की अंतिम जुताई करते समय मिट्टी में सामान रूप से मिला देना चाहिए , जबकि आधी बची हुई यूरिया की मात्रा को दो बराबर भाग में बाट करके एक भाग को बोवाई के 30-35 दिन बाद और दुसरे भाग को 60-65 दिन में छिडकाव के माध्यम से देना चाहिए |


 बीज की मात्र एवं उन्नत किस्मे :- जीरा की बोवाई के लिए 3-4 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता पड़ती हैं बीज को बोने से पहले कैप्टन या ट्राइकोडर्मा 1 ग्राम दवा को एक किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज उपचार करना चाहिये इससे भूमि जनित बीमारी नही होता हैं |

जीरा की उन्नत किस्मे :-

आर एस-1- राजस्थान के लिए उपयुक्त, बड़े एवं रोयेदार बीज वाली यह किस्म 80 से 90 दिनों में परिपक्व हो जाती है| इसकी पैदावार 6 से 8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है| यह किस्म उखठा रोग के प्रति प्रतिरोधी पायी गयी है|

एम सी- 43- गुजरात राज्य के लिए उपयुक्त इस किस्म का विकास मसाला अनुसंधान केन्द्र, जगुदान (गुजरात) द्वारा किया गया है| यह किस्म 90 से 105 दिनों में परिपक्व हो जाती है| इसकी उपज 7 से 8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक है|

आर जेड-19- यह किस्म राजस्थान के सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है| इसका तना सीधा होता है व इस पर गुलाबी रंग के फूल व रोमिल दाने आते हैं| यह किस्म 120 से 140 दिन में पक कर तैयार होती है तथा इस किस्म की पैदावार 8 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर दर्ज की गयी है|

आर जेड- 209- उखठा रोग के प्रति सहनशील इस किस्म का विकास राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के श्री करण नरेन्द्र कृषि महाविद्यालय, जोबनेर द्वारा किया गया है| यह किस्म राजस्थान के लिए उपयुक्त है तथा लगभग 140 से 150 दिनों में पक जाती है| जिसकी पैदावार लगभग 6 से 7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है|

जी सी- 1- यह किस्म उखठा रोग के प्रति सहनशील एवं गुजरात के लिए उपयुक्त है| इस किस्म के पौधे सीधे, गुलाबी फूलों वाले व भूरे मोटे बीज वाले होते हैं| यह किस्म 105 से 110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है| इसकी औसत पैदावार 7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पायी गयी है|

जी सी- 2- गुजरात के लिए उपयुक्त इस किस्म का विकास मसाला अनुसंधान केन्द्र जगदान (गुजरात) द्वारा किया गया है| यह किस्म लगभग 100 दिनों मे पक कर तैयार हो जाती है जो लगभग 7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की पैदावार देती है|

जी सी- 3- उखठा रोग सहने की क्षमता वाली इस किस्म का विकास मसाला अनुसंधान केन्द्र, जगुदान (गुजरात) द्वारा किया गया है| लगभग 7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की उपज देने वाली यह किस्म 100 दिन में पक कर तैयार हो जाती है|

जी सी- 4- उखठा रोग के लिए प्रतिरोधी इस किस्म का विकास मसाला अनुसंधान केन्द्र, जगुदान (गुजरात) ने गुजरात जीरा- 3 (जी सी- 3) की पंक्ति चयन द्वारा किया गया है| यह किस्म 115 से 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है| जिसकी पैदावार लगभग 12 क्विंटल प्रति हैक्टेयर दर्ज की गयी है|

बोवाई का समय और विधि :- जीरा का बोवाई अक्टूबर से नवम्बर तक कर लेना चाहिए क्योकि इस समय पर बोने से पौधों का विकास अच्छा होता हैं और फुल आते समय पर्याप्त गर्मी भी मिल जाता हैं जिससे उपज अच्छा होता हैं | जीरा की बोवाई क्यारियो में करना चाहिए इसके लिए 5  फिट चौडा वा 10 फिट लंबा आकार में क्यारी बना ले फिर इसमें बीजो को 1-2 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए यदि कतार बोनी कर रहे हैं तो कतार से कतार की दुरी 25 सेंटीमीटर वा पौधे से पौधे की दुरी 10 सेंटीमीटर रखे |

 सिचाई :- जीरा की फसल को 5-6 सिचाई की जरुरत होता हैं , यदि बोवाई करते समय उचित नमी ना हो तो बोवाई करने के तुरंत बाद हल्की सिचाई करना चाहिये , इसके बाद नमी की कमी महसूस होने पर 15-20 दिन बाद सिचाई करते रहना चाहिये हल्की भूमि में 8-10 दिन के अंतर पर सिचाई करते रहे |

 निराई गुड़ाई :- अन्य फसलो की तरह ही जीरा की फसल में भी निराई गुड़ाई की जरुरत होता हैं , वैसे भी जीरा की प्रारंभिक वृद्धि धीमी होता हैं ऐसे में बोवाई के 30-35 दिन बाद पहली निराई गुड़ाई करनी चाहिए उसके बाद 60-65 दिन बाद दूसरी निराई गुड़ाई करनी चाहिये |

 किट एवं बीमारी और रोकथाम  

उखठा रोग (विल्ट)

फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम नामक कवक द्वारा फैलने वाला यह मृदा जनित रोग पौधे की किसी भी अवस्था में हो सकता है| परन्तु प्रायः जब फसल एक महीने की हो जाती है, तो इस रोग का प्रकोप होता है| पौधे की उम्र के साथ रोग का प्रकोप बढता जाता है| रोग पौधे की जड़ में लगता है| इसके प्रारम्भिक लक्षण के रूप में पत्तियाँ पीली पड़ जाती है और धीरे-धीरे पौधा मुरझा कर सूखने लगता है|

संक्रमित पौधे को जमीन से निकालने पर आसानी से निकल जाता है एवं जड़ों मे गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हैं| जिन खेतों में फसल चक्र नहीं अपनाया जाता है, वहाँ रोग का प्रभाव अधिक होता है| अगर रोग का संक्रमण पुष्प आने के समय होता है, तो उसमें बीज नहीं बनते है|

रोकथाम

इस रोग की रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिये इसके अलावा जैविक दवाई  ट्राइकोडर्मा 1 ग्राम दावा को प्रति किलो बीज की दर से या रासायनिक रुप से बीज को बाविस्टीन या कैप्टान द्वारा 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करना चाहिए| शुद्ध स्वस्थ व रोगरहित या उखठा रोगरोधक किस्म जैसे- जी सी- 4 के बीजों की बुवाई करनी चाहिए|

जीरे में सूत्रकमि का प्रकोप देखा गया है, जिसके अन्तर्गत सत्रकमि इन फसलों की जडों पर घाव कर देता है| सूत्रकृमि के प्रकोप से जीरे में फ्युजेरियम विल्ट का प्रकोप बढ़ जाता है| इसके नियन्त्रण के लिए बुवाई से पूर्व अरण्डी की खली को भूमि में मिलाना चाहिए तथा गर्मी के मौसम में मृदा सौर्यकरण एवं उचित फसल चक्र अपनाना चाहिए|

झुलसा रोग (ब्लाइट)

झुलसा रोग से एक या दो दिन में ही पूरी फसल नष्ट हो जाती है| फसल में पुष्पन शुरू होने के बाद अगर आकाश में बादल छाये हो तथा नमी बढ जाये तो इस रोग की संभावना काफी बढ़ जाती है| इस रोग में पौधों की पत्तियों व तनों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं तथा पौधे के सिरे झुके से नजर आने लगते हैं| रोग के उग्र अवस्था में रोगी पत्तियाँ झुलसी हुई दिखाई देती है|

रोग ग्रसित पौधों में या तो बीज नहीं बनते है और बनते है तो भी छोटे एवं सिकडे हुए होते है| इस रोग के अधिक प्रकोप की स्थिति में पूरे खेत की फसल काली पड़ जाती है तथा ज्यादातर पौधे धीरे-धीरे सूखकर मर जाते हैं| अनुकूल वातावरण होने पर यह रोग इतनी तेजी से फैलता है कि, फसल को बचाना लगभग मुश्किल हो जाता है|

रोकथाम

मौसम के बदलाव आते ही बीमारी के आने की संभावना होने पर दवा का छिड़काव करके फसल को बचाया जा सकता है| जैविक दवाई विजया 666 या josB-5  को  2 मिलीलीटर दावा को एक लीटर पानी के हिसाब से  घोलकर छिडकाव करे या फिर फफूंदनाशी डाइथेन एम- 45  या बावेस्टिन 2.5 ग्राम दवा को एक लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिडकाव करे .

छाछया रोग (पाउडरी मिल्डयू)

फसल में अतिशीघ्र फैलने वाले इस हवा जनित रोग में बीमारी की प्रारम्भिक अवस्था में पौधों की पत्तियों व टहनियों पर सफेद चूर्ण दृष्टिगोचर होता है| जो उग्र अवस्था में पूरे पौधे को चूर्ण से ढक देता है| इस रोग के लक्षण एक से दो पौधों में दिखते ही नियंत्रण करना चाहिए अन्यथा फसल को बचाना असम्भव हो जाता है| रोगग्रस्त पौधे पर या तो बीज बनता ही नहीं, और अगर बनता है, तो छोटे आकार का तथा बहुत ही कम मात्रा में रोग के देर से आने पर उपज पर तो ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन दानों का रंग व चमक खराब हो जाती है|

रोकथाम

एक किलोग्राम घुलनशील गंधक या 500 मिलीलीटर कैराथेन या 700 ग्राम कैलेक्सिन का 2.5 मिलीलीटर दावा को पानी में घोल बनाकर  छिडकाव करने से इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है| आवश्यकता पड़ने पर 10 से 15 दिनों बाद छिड़काव को दोहराया जाना चाहिए|

कीट एवं रोकथाम

माहू (एफिड)

माहू कीट पुष्पन के समय फसल पर आक्रमण करता है एवं फसल के कोमल भागों से रस चूस लेता है| उग्र अवस्था में पौधे पीले होकर सूख जाते हैं व फसल की बढ़तवार प्रभावित होती है| इन कीटों की ज्यादा उपस्थिति उत्पादन व गुणवत्ता को प्रभावित करती है|

रोकथाम

इस किट की रोकथाम के लिए जैविक दवाई विजया 666 का 2 मिलीलीटर दावा को एक लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करे 

जीरे का पाले से बचाव

जीरे की फसल पाले से आसानी से प्रभावित होने वाली फसलों में से एक है| इस फसल को पाले से बचाने के लिए पाला पड़ने की संभावना होने पर फसल की सिंचाई करनी चाहिए| अस्थाई प्लास्टिक की दीवारों जिनकी ऊंचाई 2.0 मीटर तक हो सकती है का उपयोग पाला नियन्त्रण में काफी सार्थक रहता है|



 मेथी की जैविक खेती से लाभ


मेथी एक ऐसे पौधा हैं जिसका इस्तेमाल हरी सब्जी बनाने वा विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने में मसाले के रूप में किया जाता हैं,इसलिए मेथी की जैविक  खेती (Fenugreek organic farming) करना आवश्यक हैं,हरी पत्तीदार सब्जियो में पालक के बाद मेथी का स्थान आता हैं,यह ठंडी जलवायु की फसल हैं जिसके लिए ना तो अधिक तापमान,ना अधिक वर्षा की जरुरत होता हैं और ना ही यह पौधा अधिक ठण्ड को सहन कर सकता हैं इसलिए भारत में बर्फीले क्षेत्र को छोड़ कर सभी भागो में अक्टूबर -नवम्बर में मेथी की  बोवाई की जाती हैं और मार्च-अप्रैल में फसल की कटाई कर ली जाती  हैं |     

मेथी के 100 ग्राम में पोषक तत्व      


कैलोरी

323

वसा

10 mg

कोलेस्ट्राल

0 mg

सोडियम

0 mg

पोटेशियम

770mg

कुल कार्बोहाइड्रेट

58 g

रेशा

25 g

प्रोटीन

23 g

विटामिन A

15 mg

विटामिन C

8.6 mg

विटामिन D

17.66mg

विटामिन B-6

5 mg

आयरन

36 mg

 

इस पोस्ट में हम नीचे उल्लेख किये गए विषय पर विस्तार पूर्वक चर्च करेंगे जिसे लोग अक्सर खोजते हैं 

  • आर्गेनिक मेथी या कसूरी मेथी कैसे उगाये 
  • गमलो में कसूरी मेथी कैसे उगाये जाते हैं 
  • मेथी के प्रमुख किस्मे 
  • कसूरी मेथी कैसे बनाये 
  • मेथी की फसल से कैसे लाखो रूपए  कमाए 
  • मेथी के फायदे 
  • आर्गेनिक खेती में मेथी कैसे लाभकारी बन सकता हैं 

मेथी की खेती छोटे किसानो के लिए बहुत लाभकारी हो सकता हैं यदि इसकी खेती को सही तरीके से करे तो क्योकि इसकी मांग साल भर होता हैं , मेथी की खेती करने के लिए कुछ बातो को ध्यान में रखना जरुरी जिससे उत्पादन अच्छा हो। 

मेथी का वैज्ञानिक नाम     :- Trigonella foenum-graecum
कुल                           :- दलहनी 

मेथी की खेती के लिए जलवायु :-

मेथी की खेती अद्रजलवायु के लिए उपयुक्त होता हैं यानि की न अधिक वर्षा ,ना अधिक ठण्ड और ना ही अधिक गर्मी , बीज बोने  वा उगते समय मौसम साफ होना चाहिए जबकि दाना पकते समय थोड़ा लबे समय तक गर्मी की जरुरत होता हैं भारत में  इसकी खेती के लिए अक्टूबर से नवम्बर तक बोवाई अच्छा होता हैं वैसे इसे जनवरी के प्रथम सप्तह तक भी बो सकते हैं लेकिन इनकी उपज बहुत कम होता हैं यु कहे तो  पत्तियों के 1-2 कटाई बाद फसल समाम्प्त हो जाता हैं और मार्च से अधिक गर्मी होने के करण बीज नही बनता हैं यदि बन भी जाये तो दाना बहुत छोटा होता हैं |

मेथी के लिए उपयुक्त मिट्टी:- 

मेथी के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी बालुई दोमट होता हैं जिनकी जलधारण क्षमता वा जीवांश पदार्थो बहुत अच्छा होता हैं वैसे आर्गेनिक खेती के लिए ऐसे ही मिट्टी की जरुरत , वैसे उचित पोषक प्रबधन से सभी प्रकार की मिट्टी में मेथी की खेती की जा सकती हैं  जिसकी PH मान 6-7 हो 

खेत की तैयारी और खाद / उर्वरक :-

जमीन में ओल ( जुताई के लिए उपयुक्त नमी ) आने पर मिट्टी पलटने वाले हल से एक बार गहरी जुताई करने के बाद  दो बार  कल्टीवेटर या देशी हल से जुताई करना चाहिए  यदि मिट्टी पलटने वाले हल नही हैं तो देशी हल से ही 3-4 जुताई कर सकते हैं इससे मुट्टी अच्छी तरह से भुरभुरी हो जाता हैं , ध्यान रहे देशी हल से प्रय्तेक जुताई के बाद पाटा लगा दे इससे मिट्टी में नमी बनी रहती हैं,  1-2 ट्रेक्टर गोबर की सड़ी हुई खाद या फीर 1 टेक्टर कम्पोस्ट खाद या फिर 100 किलो ग्राम केचुए की खाद प्रति एकड़ खेत की प्रथम जुताई  के बाद खेत में अच्छी तरह से फैला दे जिससे अंतिम जुताई तक खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाए , इसके अलावा खेत से पत्थर , प्लास्टिक आदि हो तो उसे हटा दे | यदि अच्छे मात्र में जैविक खाद उपलध ना हो तो 50 किलो ग्राम  सिंगल सुपर फास्फेट 30 किलो ग्राम मयूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति एकड़  खेत की अंतिम जुताई करते समय खेत  में डाल दे चुकी मेथी एक दलहनी फसल हैं इसलिए इसे नत्रजन की कम मात्र लगता हैं इसलिए बोवाई के 20-25 दिन बाद 10 किलो ग्राम और 60-70 दिन बाद 7 किलो ग्राम यूरिया प्रति एकड़ डाले इससे अच्छी उपज होता हैं |

बीज की मात्र , उपचार व मेथी की प्रमुख  किस्मे :-

बोवाई के लिए बीज 8-10 किलो ग्राम प्रति एकड़  बीज की आवश्यकता पड़ता हैं यदि लाइन में बोवाई किया जाये तो 6-8 किलो बीज एक एकड़ के लिए प्रयाप्त होता हैं , बीज को बोने से पहले जैविक उपचार ट्राइकोडर्मा 1 ग्राम एक किलो बीज की दर से उपचार करना चाहिए इसके बाद 2 ग्राम राइजोबियम कल्चर से  प्रति किलो बीज को उपचार करना चाहिये , बीज उपचार के लिए एक बंद डिब्बा ले उसमे 1 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को और एक किलोग्राम बीज में मिला ले इसमें थोडा पानी डाले और ढक्कन लगाकर अच्छी तरह से हिला दे , इसके बाद बीज को छाया में फैला दे , राजोबियम कल्चर से उपचार करने के लिए गुड की पतला चासनी बनाये फिर चासनी को ठंडा होने दे 10 ग्राम चासनी में 2 ग्राम राजोबिय्म कल्चर को मिलाये फिर इसे ट्राइकोडर्मा उपचार की तरह ही डिब्बे में बंद करके अच्छे से हिलाए अब डिब्बे से निकलकर बोवाई कर  सकते हैं   इससे भूमि जनित बीमारी नही होता हैं   साथ ही   जैविक उपचार से अच्छी गुणवत्ता के फसल तैयार होता हैं  यदि  ट्राइकोडर्मा उपलब्ध नही हैं तो बवेस्टिन 1 ग्राम दावा को एक किलोग्राम बीज की मात्र के हिसाब से उपचार करना चाहिए | इससे भूमि जनित बीमारी नही होता हैं 

मेथी की उन्नतशील किस्मे :

कसूरी मेथी : 

यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली द्वारा विकसित की गई है. इस की पत्तियां छोटी और हंसिए के आकार की होती हैं. इस में 2-3 बार कटाई की जा सकती है. इस किस्म की यह खूबी है कि इस में फूल देर से आते हैं और पीले रंग के होते हैं, जिन में खास किस्म की महक भी होती है. बोआई से ले कर बीज बनने तक यह किस्म लगभग 5 महीने लेती है. इस की औसत पैदावार 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.


लाम सिलेक्शन : 

दक्षिणी राज्यों में इस किस्म को बीज लेने के मकसद से उगाया जाता है. इस का पौधा औसत ऊंचाई वाला, लेकिन झाड़ीदार होता है. इस में शाखाएं ज्यादा निकलती हैं.


पूसा अर्ली बंचिंग : 

मेथी की इस जल्द पकने वाली किस्म को भी आईसीएआर द्वारा विकसित किया गया है. इस के फूल गुच्छों में आते हैं. इस में 2-3 बार कटाई की जा सकती है. इस की फलियां 6-8 सेंटीमीटर लंबी होती हैं. इस किस्म का बीज 4 महीने में तैयार हो जाता है.


यूएम 112 : 

यह मेथी की उन गिनीचुनी किस्मों में से एक है, जो सीधी बढ़ती है. इस के पौधे औसत से लंबे होते हैं. भाजी और बीज दोनों के लिहाज से यह किस्म उम्दा होती है.


कश्मीरी : 

मेथी की कश्मीरी किस्म की ज्यादातर खूबियां हालांकि पूसा अर्ली बंचिंग किस्म से मिलतीजुलती हैं, लेकिन यह 15 दिन देर से पकने वाली किस्म है, जो ठंड ज्यादा बरदाश्त कर लेती है. इस के फूल सफेद रंग के होते हैं और फलियों की लंबाई 6-8 सेंटीमीटर होती है. पहाड़ी इलाकों के लिए यह एक अच्छी किस्म है.


हिसार सुवर्णा : 

चौधरी चरणसिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार द्वारा विकसित की गई यह किस्म पत्तियों और दानों दोनों के लिए अच्छी होती है. इस की औसत उपज 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. सर्कोस्पोरा पर्र्ण धब्बा रोग इस में नहीं लगता है. हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के लिए यह एक बेहतर किस्म है. इन किस्मों के अलावा मेथी की उन्नतशील किस्में आरएमटी 1, आरएमटी 143 और 365, हिसार माधवी, हिसार सोनाली और प्रभा भी अच्छी उपज देती हैं.

गमलो में मेथी कैसे उगाये :-

अपने घरो की दैनिक जरुरत को पूरा करने के लिए लोग अपने बालकनी या छात में गमलो के सहारे मेथी उगा सकते हैं  इससे बालकनी या छात की सुन्दरता बढ़ जाता और जरुरत के समय ताजी मेथी ले सकते हैं , बालकनी या अपने घर के छतो में मेथी उगाने के लिए गमलो की जरुरत पड़ेगा , तो सबसे पहले अपने जरुरत और जगह के हिसाब से गमला ले , फिर उसे आधा भाग जैविक खाद और आधा भाग अच्छी मिट्टी जिसमे पत्थर आदि ना को को मिलाकर सभी गमलो को भर में , मानलो 5-5 किलो मिट्टी भरने वाले 5 गमला हैं तो 10-12 किलोग्राम जैविक खाद और बाकी मिट्टी की मात्र को अच्छे से अपास में मिला कर 25 किलोग्राम का माध्यम तैयार कर ले फिर इसे गमलो में भर दे ध्यान रहे गमले के ऊपर से 1 इंच निचे होना चाहिये तथा गमलो के निचे भाग में छेद होना चाहिये जिससे अधिक पानी होने पर निकल जाये , जब गमलो में मिट्टी वा खाद का मिक्स भर ले उसके बाद 5-5 सेंटीमीटर की दुरी पर एक-एक बीज डाल दे और हल्की मात्र में पानी का छिडकाव कर दे , यदि जैविक खाद ना मिले तो प्रति 1 किलो मिट्टी में 40 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट 20 ग्राम मयूरेट ऑफ़ पोटाश ,और 20 ग्राम यूरिया ले सकते हैं , लेकिन मैं लोगो को सजेसन दूंगा की वो अपने उपयोग के लिए ऑर्गनिक ही उगाये इससे शारीर में  कोई हानिकारक तत्व नही पहुचता हैं |

बोवाई वा निराई गुड़ाई 

मेथी की बोवाई अक्टूबर के दुसरे सप्ताह से नवम्बर के अंतिम सप्ताह तक कर लेना चाहिए इससे मेथी की पत्तियो कटाई 6-7 बार किया जा सकता हैं जिससे पत्तिया व बीज दोनों की उपज बढ़ जाता हैं , ध्यान रहे बोवाई करते समय मिट्टी में उपयुक्त नमी रहे ,मेथी में अच्छी उपज के लिए निराई गुड़ाई करना बहुत जरुरी हैं इसके लिए बोवाई के 25-35 दिन में पहली निराई गुड़ाई करना चाहिये उसके बाद 45-55 दिन में |

सिचाई 

यदि बोवाई  की शुरुआती अवस्था में नमी की कमी महसूस हो तो बोवाई के तुरन्त बाद एक हल्की सिंचाई की जा सकती है, वरना पहली सिंचाई 4-6 पत्तियाँ आने पर ही करें। सर्दी के दिनों में 2 सिंचाइयों का अंतर 15 से 25 दिन (मौसम व मिट्टी के मुताबिक) और गरमी के दिनों में 10 से 15 दिन का अंतर रखना चाहिए।

किट वा रोग प्रबंधन :-

मेथी की फसल फसल में उतने ज्यादा किट पतंगे नही लगते फिर भी कभी-कभी मौसम खराब होने से  पत्ती खाने वाले किट लग जाते हैं अतः इनकी रोकथाम के लिए जैविक दवाई विजया 666 या JosB-5  का 1 मिलीलीटर 1 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करे इससे किट पतंगों की रोकथाम तो होता ही हैं साथ में पौधों को  बीमारी से लड़ने के लिए रोगरोधक को भी बढ़ता हैं |

बीमारी :- मेथी में 2 प्रकार के  प्रमुख रोग लगते हैं  1 सफ़ेद चूर्णी असिरता :- इसमें पत्ती पर सफ़ेद दाग पड़ने लगते हैं बाद में पत्ती के सभी भाग में फ़ैल जाता हैं और पौधे कमजोर हो जाते हैं यह रोग फफूंद के कारण होता हैं इसकी उपचार शुरुवाती दौर में हो जाये तो इस बीमारी से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता हैं इसके लिए भी जैविक दवाई JOSB-5 को 1.5 मिलीलीटर  दवाई को 1 लीटर पानी में घोलकर  छिडकाव करे तो यह रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता हैं ,

   2 जड़ गलन :- यह रोग अधिक नमी के कारण होता हैं इसमें पौधे के ऊपर के भाग हरे रहते जबकि जड़ मर जाता हैं और पौधे गिरने लगते हैं इसके उपचार के लिए खेतो में पानी भारवो ना होने दे  जल निकास की वाव्य्स्था करनी चाहिए , बीज को हमेसा उपचार करके ही बोना चाहिए                                                                                                                                                                                       

कटाई एवं उपज :-

 यदि हरी पत्तिया कटनी हैं तो जब पौधे 5-6 इंच के हो जाये तो  जमीन से 1-2 इंच छोड़कर कटाई कर ले इस प्रकार से    मेथी की  1 बार कटाई के बाद बीज लिया जाए, तो औसत पैदावार करीब 2-3 क्विंटल दाना प्रति एकड़  मिलती है जबकि हरी पत्ती 5-7 कुंटल तक मिलता हैं  जिसे सुखाने पर 1-1.5 कुंटल होता हैं वही  4-5 कटाई  की जाएं तो यही पैदावार घट कर करीब 40  किलो  दाना प्रति एकड़  रह जाती है. जबकि भाजी या फिर हरी पत्तियों की पैदावार करीब 20-25  क्विंटल प्रति एकड़  तक मिल जाता हैं . जबकि इसे  सुखाने पर लगभग 4-5 कुंटल होता हैं    |

कसूरी मेथी कैसे उगाये 

रअसल कसूरी कोई अलग प्रकार का मेथी नही होता बल्कि जो मेथी सामन्य तौर से उगाई जाती हैं वही मेथी ही कसूरी मेथी हैं , मेथी की हरी पत्ती को कट कर धुप में सुखाया जाता हैं जिसे कसूरी कहा जाता हैं, कसूरी राजस्थान में एक जगह का नाम हैं जह पर पहली बार मेथी की हरी पत्तियो को  सुखाकर  विभिन्न प्रकार की व्यंजनों में उपयोग किया गया और वही से ही इसका चलन बढ़ा, जिसे अब लोग मेथी के सूखे पत्ती को  कसूरी मेथी के नाम से जानते हैं , हल्की इसमें गोल आकार के पत्ती का सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता हैं क्योकि इसमें अलग ही तरह के खुशबू होता हैं , लेकिन ऐसा नही की लंबी पत्ती वाले को नही सुखाया जाता वह भी बहुत अच्छा होता हैं .

मेथी के उपयोग वा फायदे 

मेथी के बहुत सारे फायदे हैं , सबसे पहले तो इसे हरी साग के रूप में  पालाक के बाद सबसे ज्यादा खाया जाता हैं , सूखे वा हरी साग का उपयोग विभिन्न प्रकार की मसाला वाली व्यंजन बनाने में किया जाता हैं इसके अलावा मेथी के बीज से तेल निकला जाता हैं जिससे नई बाल उगाने दवाई वा कई प्रकार की सौदर्य सामग्री बनाने में किया जाता हैं , मेथी के बीज को खाली पेट में खाने से शुगर व ब्लड प्रेशर को कम करने में मदत करता हैं गर्भवती औरतें इसका सेवन करें, तो गर्भाशय ठीक रहता है और दूध ठीक ठाक बनता है, इसके अलावा मेथी के उपयोग से पेट समन्धि सभी पराक्र की रोग दूर हो जाते हैं ,मेथी में कई सरे विटामिन , आदि पाए जाते हैं जिसे हमने सबसे पहले ही चार्ट में बता दिया हैं , इसलिए डाक्टर लोग भी लोगो को मेथी खाने की सलह देते हैं |


मेथी की खेती से किसान कैसे लाखो कमा सकते हैं :-

यदि किसान भाई खासतौर से जो छोटे किसान हैं यदि वो लोग मेथी की संही तरीके से खेती करे तो इसकी फसल से लाखो रूपए कमा सकते हैं जैसे की हमने मेथी के उपज उपयोग वा लाभ को बता दिया हैं अगर उसको ध्यान में रखते हुए , मेथी उगाये और उसे बाजार में बेचे तो 1 एकड़ से 1-1.5 लाख तक कमा सकते हैं, क्योकि मेथी के हरी साग को हरी वा सुखी दोनों रूप में बेच सकते हैं हरी पत्ती से ज्यादा सुखी पत्ती का बाजार भाव होता हैं जो 100-300 रूपए प्रति किलोग्राम तक होता हैं जबकि इसके बीज की कीमत 70-150 रूपए तक होता हैं , वर्तमान में कसूरी मेथी वा दाना की मांग विदेशो में बढ़ रहा हैं जिससे भारत वेदेशो को बड़ी मात्र में हर साल कसूरी मेथी वा दाना निर्यात करता हैं , इससे आने वाले समय में किसानो के लिए मेथी बड़ी लाभकारी होगा | मेथी से कई सरी औषधि बनाने के कारण भी मेथी की मांग बढ़ रहा हैं |


मेथी आर्गेनिक खेती के लिए लाभकारी कैसे होता हैं ?:_

मेथी एक दलहनी फसल हैं जिसकी जड़ो में गठे होता हैं उसमे राइजोबियम जीवाणु होता जो वातावरण में मौजूद नाइट्रोजन गैस को नाइट्रेट के रूप में मिट्टी के अन्दर फिक्स करता हैं , जिसे बाद में पौधा नत्रजन के रूप में लेता हैं , इसके , इस लिए इसे अनाज या अन्य सब्जी वाली फसल के बाद इसे लगा सकते हैं जिससे मिट्टी की पोषक तत्व में सुधार होता हैं , इसके अलावा मेथी को हरी खाद के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं , जिसके लिए मेथी को फूलने के पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करके मिट्टी में दबा देना चाहिए , इससे 30-45 दिन में सड़कर अच्छी खाद बन जाता हैं , जिससे आने वाले फसल के लिए खाद की मात्र खेत में अलग से डालने की जरुरत नही पड़ता हैं | इसके अलवा मेथी को मिक्स फसल के लिए आलू + मेथी , ले सकते हैं


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 Cultivation Of Coriander 

धनिया की आर्गेनिक खेती


मसालों में हल्दी और मिर्ची के बाद धनिया (Coriander ) का तीसरा सबसे बड़ा उपयोग में होने वाला मसाला हैं जिसका उपयोग चटनी से लेकर ,सलाद , खाने की थाली सजाने तक होता हैं , धनिया एक ऐसे मसाला हैं जिसका उपयोग हरी वा सुखी दोनों में किया जा सकता हैं , इसके अलावा धनिया के बहुत सारे फायदे हैं जिनके बारे में हम आगे चर्च करेंगे , किन्तु जब तक हम अपने खाने पीने की चीजो को रसायन मुक्त नही उगायेंगे तब तक हम अपने भोजन को फायदेमंद नही पहुचा सकते हैं , इसलिए हम  धनिया उगाने की आर्गेनिक विधि को जानेगे :-

प्रति 100 धनिये की पत्ती से पोषक तत्व


  • धनिया की खेती  कैसे करे  ?
  • धनिया की खेती से लाभ  कैसे कमाए  ?
  • ठण्ड में धनिया की खेती कैसे करे ?
  • गर्मी में धनिया की खेती कैसे करे ?
  • बरसात  के मौसम में धनिया की खेती कैसे करे ?
  • गमलो में धनिया की खेती कैसे करे ?
  • धनिया की उन्नतशील किस्मे 
  • धनिया के प्रकार ?
  • हाइब्रिड धनिया की खेती 
  • धनिया का उपयोग और लाभ 

धनिया की मांग लोगो में हमेसा होता हैं चाहे वह हरी पत्ती के रूप में हो या सूखे बीज के  रूप में ,  अगर निजी  बाजार की मांग को देखे तो लोगो में हरी पतियों व हरी फल वाली धनिया की मांग ज्यादा होता हैं जबकि विदेशी बाजार में सूखे बीज का बड़ी मांग हैं  और हर साल भारत से बड़ी मात्र में धनिया विदेशो को निर्यात किया जाता हैं , वही फसल की बात करे तो जैविक खाद से उगाये गए फसलो में जबरजस्त  खुसबू  और गुणवत्ता के कारण लोग ज्यादा पसंद करते हैं और इससे अच्छा भाव मिलता हैं ,


धनिया के प्रमुख उत्पादक राज्य :-

 इसकी खेती पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, बिहार, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कनार्टक और उत्तर प्रदेश में अधिक की जाती है। किन्तु प्रमुख उत्पादक में राजस्थान का प्रथम स्थान हैं 


धनिया की खेती कैसे करे ?:-
 धनिया की खेती करने से पहले धनिया से जुड़े हुए कुछ वैज्ञानिक लेख को भी ध्यान देना होगा जो इस प्रकार से हैं :-
  1. धनिया का वैज्ञानिक नाम :-   कोरियनड्रम सटाइवम     
  2. हिंदी नाम :- धनिया , ये भी तीन प्रकार से हैं 1 हरा पत्ती धनिया , 2 हरा फल धनिया ,3 सुखा बीज धनिया      

  • मिट्टी :-

धनिया की खेती करने के लिए सबसे पहले मिट्टी की जरुरत होता हैं  और जिस मिट्टी में जैविक पदार्थ अच्छा हो वह धनिये की जैविक खेती के लिए अच्छी मानी जाती हैं इसके अलावा मिट्टी का PH मन 3.5-6 के बीच होना चाहिए, वैसे तो धानिये की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में किया जा सकता हैं , और इसके लिए जल निकास की अच्छी व्यवस्था होना चाहिए |


  • खेतो की जुताई और खाद :- 

यदि मिट्टी में ओल ( जुताई के लिए उपयुक्त नमी ) ना हो तो शाम के समय हल्का सिचाई करना चाहिये और फिर 2 बार गहरी जुताई करना चाहिए ,यदि मिट्टी पलटने वाला हल हो तो बहुत अच्छा हैं नही तो देशी हल या कल्टीवेटर से कर सकते हैं और फिर पाटा लगा कर मिट्टी को बराबर कर ले ,खेत में पहली जुताई के पहले ही गोबर खाद या कम्पोस्ट खाद या फिर हरी खाद या कोई भी जैविक खाद जो उपलब्ध हो डाल देना चाहिए , वैसे खाद को 1.5-2  ट्रेक्टर प्रति एकड़ के हिसाब से डालना चाहिए | यदि चाहे तो रासायनिक खाद का प्रयोग कर सकते हैं इसके लिए 32  किलो नत्रजन 20 किलो फस्फोराश 20 किलो पोटाश प्रति एकड़  डाल सकते हैं 
     इसके अलावा धनिया को पलेवा विधि , उटेरा विधि से भी बोया जा सकता हैं , पलेवा विधि में  पहले खेत को पानी भरके मचाई किया जाता हैं फीर ऊपर में धनिये के बीज को बो दिया जाता हैं इसमें सामन्य बोई जाने वाली फसल के मुकाबले अच्छी फसल होता हैं तथा रोग किट आदि लगने की संभवाना बहुत कम होता हैं , जबकि उटेरा फसल के लिए, पहली फसल की कटाई के 20-25 दिन पूर्व सीधे बीज को बो दिया जाता हैं इसमें फसल कम होता हैं सामान्यता इस विधि को असिचित ऐरिया में वा भारी भूमि में आसानी से किया जा सकता हैं 

  • ठण्ड के समय में धनिया की कैसे करे :- 

धनिया की खेती ठण्ड के समय करने में कोई परेशानी नही हैं , और इस समय बड़ी आसानी से धनिया की उत्पादन ले सकते हैं  इस समय में फसल की बोवाई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से लेकर नवम्बर की अंतिम सप्ताह तक कर सकते हैं .


  • गर्मियों में धनिया की खेती कैसे करे :- 
ठण्ड के मौसम में धनिया उगाना बहुत आसन हैं लेकिन गर्मी के मौसम में थोडा मुश्किल हैं लेकिन कुछ ऐसे किस्म हैं जिनको गर्मी में उगा सकते हैं जैसे की पंत धनिया -1, मोरोक्कन, सिम्पो एस 33, गुजरात धनिया -1, गुजरात धनिया -2, ग्वालियर न.-5365, जवाहर धनिया -1, सी. एस.-6, आर.सी.आर.-4, यु. डी.-20,436, पंत हरीतिमा, सिंधु आदि है। जिसे गर्मी में उगा सकते हैं , गर्मी की फसल की बोवाई फरवरी से मार्च के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती हैं उसके बाद की बोवाई से फसल की अनुकरण  व वृद्धि  प्रभावित होता हैं |

  • बरसात के मौसम में धनिया की खेती :- 

बरसात के मौसम में धनिया की खेती करना  भी थोडा मुश्किल हैं क्योकि इस समय बारिश होता हैं धनिया अधिक पानी को सहन नही कर सकता हैं फिर भी थोड़ी बहुत मात्र में बरसात के  मौसम में कर सकते हैं यदि ग्रीन हॉउस की  सुविधा  हो तो इसे बड़े पैमाने में आसानी से उगा सकते हैं , यदि घर उपयोग के लिए उगाये तो गमले में आसानी से उगा सकते हैं जिसे जरुरत पड़ने पर धुप वा छावो में आसानी से रख सकते हैं 



  •  गमलो में धनिया की खेती कैसे करे :-

इस प्रकार की खेती घरो की किचन गार्डन में या फीर घरो की जरुरत को पूरा करने के लिए  किया जाता हैं , सबसे पहले अपने इच्छा अनुसार गमला ले और सभी गमलो के निचे में छेद कर दे ताकि जरुरत से ज्यादा पानी निकल जाये फीर उसमे मिट्टी और खाद को अच्छे से मिक्स करके गमले में इतना भरे की गमले की उपर तरफ 1/2 इंच बच जाये इसके बाद गमलो में 5-5 सेंटीमीटर की दुरी पर 1-2 इंच निचे बीज डाल दे और बीज को ढककर पानी का छिडकाव कर दे , इसके बाद आवश्यकता अनुसार पानी का छिडकाव करते रहे 15-20 दिन में सभी बीज अच्छे से उग जायंगे , जल्दी अकुरण के लिए बीज को 12 घंटे के लिए भिगो कर रखे और फिर 1 घंटे हवा में सुखाकर बोये इससे अच्छा और  जल्दी अंकुरण होता हैं |




  •  धनिया की कुछ उन्नतशील किस्मे :-
धनिये की उन्नतशील किस्मे


  • धनिया की प्रकार :- 

धनिया को प्रमुख रूप से उपयोग के आधार पर बाट सकते हैं और इसके मुख्य 2 प्रकार ही होते हैं 1 पत्ती वाली धनिया :- इसके केवल पत्ती का ही उपयोग करते हैं और इसमें फुल जल्दी नही आते हैं यदि इसकी बुवाई नवम्बर में करते हैं तो इससे अप्रेल के अंत तक अच्छी पत्तिया ले सकते हैं ध्यान रहे इसमें पत्तिया बनने के बाद पत्तियो की कटाई जरुर कर ले जिससे पौधों में फुल जल्दी नही आते हैं  2 फल वाली धनिया :- इसमें  दाना व पत्ती  दोनों का उपयोग होता , सामन्यतौर पर पत्तियो की  1-2 कटाई ही की जा सकती हैं उसके बाद फुल आ जाता हैं , इस धनिया की मांग पत्तियो वाली धनिया से अधिक होता हैं क्योकि इसमें पत्ती वाली धनिया  के मुकाबले खुशबू वा स्वाद अच्छा होता हैं , जिससे मसाला , आदि के रूप में इसका प्रयोग होता हैं 


  • हाइब्रिड धनिया की खेती :- 
वैसे इसमें करना कुछ विशेष नही होता हैं जो सामन्य धनिये की खेती होती हैं बस वैसे ही करना होता हैं , हाइब्रिड धनिये की खेती में सिचाई ,खाद आदि का अच्छा से प्रबंध करना जरुरी हैं ,

  • बीज दर  :- 

धनिया को बड़े पैमाने में उगाने के लिए 5-8 किलो प्रति एकड़ बीज की जरुरत होता हैं बीज को बोने से पहले दल ले इसके लिए हल्के  लाल इट या खपरैल का इस्तेमाल कर सकते हैं  इसके बाद अच्छे अंकुरण के लिए 12 घंटे के लिए भिगो दे और फिर  पानी को निथर कर छाया में फैला दे इसके बाद धनिया को बीमारी से बचाने के लिए ट्राईकोडार्म या बवेस्टिन 2 ग्राम प्रति किलो बीज  की दर से उपचार कर बोये 


  • बोने का समय और बीज की दुरी :- 

ठण्ड के मौसम में अक्टूबर -नवम्बर तक बोवाई कर लेना चाहिए जबकि गर्मी के फसल के लिए फरवरी से मार्च तक बोवाई कर लेना चाहिए ,बरसात के लिए जून-जुलाई तक बोवाई कर लेना चाहिए  खेत में पौधे - पौधे की दुरी 5-10 सेंटीमीटर  और कतार से कतार 20-25 सेंटीमीटर रखे इससे फसल अच्छा होता हैं | जबकि गमलो में बोवाई करने के लिए पौधे से पौधे की दुरी और लाइन से लाइन की दुरी 5-10 सेंटीमीटर रखे , ध्यान रहे बोवाई के समय  मिट्टी में  हल्क  नमी   होना चाहिए |


  • निराई गुड़ाई :-  

पौधे के अच्छे बढ़वार के लिए 30-35 दिन बाद एक निराई गुड़ाई करना चाहिए इससे पौधों के जड़ो का विकाश अच्छा होता हैं जिससे पत्ती वाली धनिया में पत्तिया ज्यदा बनता हैं | 


  • सिचाई :-  

यदि हल्की मिट्टी हो तो  ठण्ड के मौसम में 7-10 दिन में सिचाई करना चाहिए जबकि भारी मिट्टी में 15-20 दिन में सिचाई करना चाहिए , गर्मी की फसल में 4-6 दिन में या आवश्यकता पड़ने पर करते रहना चाहिए ,


  • किट प्रबंधन :- 

धनिया की फसल में महो किट का सबसे ज्यादा आक्रमण होता हैं जो काला , और हरा दोनों प्रकार से होता हैं , यह किट धनिये के फुल निकलते समय लगता हैं जिससे दाना कम बनता हैं  इसकी रोकधाम के लिए JOS B 5 या विजया 666 का छिडकाव करना चाहिए जो एक आर्गेनिक उत्पाद हैं जिससे सभी प्रकार के किट की रोकथाम तो होता ही हैं साथ में फुल की संख्या भी बढ़ता हैं 


  • रोग प्रबंधन :- 

धनिया की फसल में पटिका रोग ज्यदा होता हैं जो अधिक नमी के कारण होता हैं इसमें पूरा पौधा एक पट्टी बन जाता हैं जिससे उत्पादन बहुत कम हो जाता हैं इसकी रोकथाम के लिए बीज को उपचार करके बोना चाहिए साथ ही जल निकास की अच्छी व्यवथा करना चाहिए 


  • कटाई और उपज : 

पत्ती वाली धनिया को बोवाई के 40-45 दिन  बाद पत्तियों की कटाई किया जा सकता हैं तथा  पुरे फसल तक 7 से 8 कटाई किया जा सकता हैं जिससे प्रति एकड़ 8 कुंटल तक हरी पत्ती प्राप्त होता हैं ,वही फल धनिया की बात करे तो इस बोवाई के 45 दिन बाद पहली पत्तियो की  कटाई किया जा सकता हैं इसके बाद अगले 15-20 दिन में दूसरी कटाई किया जा इसके बाद इसे फूलने फलने के लिए छोड़ दे  फल वाली धनिय में हरी पत्ती 1-2 कुंटल तक वा सुखा बीज 4-5 कुंटल प्रति एकड़ मिल जाता हैं 


  • धनिया की मिश्रित खेती  :- 

धनिया को यदि बड़े पैमाने में उगा रहे हैं तो इसकी मिश्रित खेती भी किया जा सकता हैं जैसे की  चना+ धनिया , सरसों + धनिया , यदि कतार बोनी करते हैं तो दो लाइन चना या सरसों के बीच 1 लाइन धनिय की डाल सकते हैं |


  • धनिया का उपयोग और लाभ :- 

धनिया का उपयोग  मुख्य रूप से हरी पत्ती को चटनी ,सलाद , सब्जी ,या नास्ता को सजाने के लिए किया जाता हैं जबकि सूखे बीज का उपयोग धनिया पाउडर , या मिक्स मसालों के लिए किया जाता हैं इसके अलावा धनिया से तेल भी निकला जाता हैं जिसका इस्तेमाल औसधी बनाने में किया जाता हैं , धनिया एक सुगन्धित फसल होने के साथ ही साथ यह शारीर को गर्मी प्रदान करता ,खून को साफ करता हैं  व पेट समन्धि रोगों को दूर करता हैं |



  • धनिया की Organic Farming के लिए सुझाव:- 

धनिया एक ऐसी मसाला हैं जिसे हरी वा सुखी दोनों अवस्था में खाने के लिए उपयोग किया जाता हैं , जब लोग इसे उगाने के लिए रासायनिक खाद और कीटनाशी का प्रयोग करते हैं तो उन रसायन को बनाने में प्रयोग होने वाले तत्व फसल के अन्दर बहुत लबे समय तक रहते हैं और उनका अंश हरी पत्तियो या सूखे बीज के माध्यम से खाने वालो के शारीर में पहुचता रहता हैं जो लोगो की सेल्स को खत्म करते रहते हैं और यही बाद में गंभीर बीमारी को जन्म देते हैं , इन सभी गंभीर बीमारी को खत्म करने के लिए सिर्फ एक ही उपाय हैं वह हैं Coriander की  Organic Farming , इससे स्वादिस्ट और हेल्थ फुल फसल मिलता हैं | 


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