Production Of Traykodarma virdi

ट्राईकोडार्मा विरिडी का कृषि में प्रयोग 

  • Traykodarma virdi कृषि में  उपयोग 
  • Production Of Traykodarma virdi ?
  • Traykodarma virdi का खेतो में उपयोग करने से लाभ 

किसानो के लिए फसल उत्पादन को बढ़ाने वा ,फसल उत्पादन में लगने वाले  खर्च को कम करने के लिए  Traykodarma virdi का महत्वपूर्ण स्थान हैं , यह एक  जीवाणु हैं जो पौधों में लगने वाले ,सूत्रकृमि  व फफूंद जनित रोगों से पौधों को सुरक्षा  प्रदान करता हैं जो जैविक खेती के लिए अति उत्तम  हैं। 
फसलो को सूत्रकृमि  , व फफूंद  बड़ा ही नुकसान पहुचाता हैं , जिसकी रोकथाम समय पर ना किया जाये तो पूरा फसल ही बर्बाद हो जाता हैं , किसान भाई सूत्रकृमि वा फफूंद जनित रोगो से फसलों को बचाने के लिए , महंगे से महंगे रासायनिक दवाई का प्रयोग करता हैं जो किसानो की आर्थिक स्थिति पर भारी असर डालता हैं साथ में भूमि ,पानी।  वायु वा अन्य जीवो पर बुरा असर छोड़ता हैं वो अलग ही हैं जिससे आज पूरा किसान वर्ग परेशान हैं, इस लिए किसान अब रसायन मुक्त खेती करने की ओर अग्रसर हो रहे हैं । 
ट्राईकोडार्मा विरिडी एक जीवाणु हैं जो फसलों की कई प्रकार की बीमारी को ठीक करने में बहुत असरकारी पाया गया हैं जैसे की धान में ब्लास्ट की समस्या , टमाटर ,चना अदि फसल में जड़ ,तना , गलने की समस्या , तथा , मुंग उड़द कद्दू वर्गी आदि फसलों के चूर्णी फफूंदी रोग को ठीक करने में असरकारी सिद्ध हुआ हैं। 

Traykodarma virdi कृषि में  उपयोग :-

ट्राईकोडार्मा विरिडी का मुख्य रूप से बीज उपचार , मृदा उपचार वा खाड़ी फसल में छिडकाव , कृषि कचरों को सड़ाने आदि  में किया जा सकता हैं , बीज उपचार के लिए  किसी प्लास्टिक की डिब्बा या मिट्टी के मटके या बीज उपचार करने वाली मशीन में एक किलो ग्राम बीज प्रति 10 ग्राम ट्राईकोडार्मा विरिडी को मिलाये वा 10 से 15 ml पानी मिलाकर अच्छे से मिक्स करे और फिर बीज को हवा में 30 मीनट से एक घंटे के लिए फैला कर सुखा ले इसके बाद खेतो में बोवाई कर दे इससे मृदाजनित रोग किसी भी प्रकार का नही होता हैं , वही मृदा उपचार के लिए , 4-6 किलोग्राम ट्राईकोडार्मा विरिडी को 40 किलो  सूखे गोबर की खाद में मिलाकर प्रति एकड़ आखरी  जुताई करते समय छिड़क दे, इससे मिट्टी की फफूंद वा सूत्र कृमि तो मरते ही हैं साथ में खेतो में पड़े फसलो व खरपतवार के सूखे अवशेष सड़कर मिट्टी में मिल जाते हैं जो जीवांश खाद का काम करता हैं , खाड़ी फसलो में छिड़कने के लिए 10  ग्राम ट्राईकोडार्मा विरिडी को एक लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करे इससे धान के ब्लास्ट , मुंग ,उड़द , कद्दू वर्गी आदि की भभूतिया रोग ठीक हो जाता हैं। इसके अलावा जैविक खाद बनाने के दौरान खाद को अच्छे से कम समय में सड़ाने वा उच्च क्वालिटी के खाद बनाने के लिए ट्राईकोडार्मा विरिडी  की पावडर को छिड़क दे  ,जो जैविक अपशिष्ट को मात्र 30 दिन के अन्दर अच्छे से सडा कर अच्छे खाद में परिवर्तित कर देता हैं। 

Traykodarma virdi का खेतो में उपयोग करने से लाभ :-

यह एक जैविक  जीवाणु हैं जो पौधों में होने वाले मृदाजनित बीमारी को नियंत्रित करता हैं तथा मिटटी की भौतिक , जैविक दशा में सुधार करके फसलों की विकास के लिए एक अच्छा माध्यम तैयार करता हैं। जिससे फसलों की गुणवत्ता व उपज में 10-20 प्रतिशत तक की वृद्धि होता हैं। ट्राईकोडार्मा विरिडी की इस्तेमाल से रासायनिक दवाई से मिट्टी, पानी वायु वा अन्य जीव को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता हैं वा फसल उत्पादन की लागात को कम किया जा सकता हैं। इसके अलावा किसान ट्राईकोडार्मा विरिडी का घरेलु सामग्री से उत्पादन कर सकता हैं जिसे खुद अपने फसल में उपयोग कर सकता हैं व अन्य किसानो को भी  बेच सकते हैं जो किसानो के लिए एक आय का स्त्रोत भी बन सकता हैं। 

Production Of Traykodarma virdi ?:-

ट्राईकोडार्मा विरिडी का उत्पादन करना बहुत आसान वा सरल हैं ,जिसे किसान अपने घरेलु काम में आने वाले सामग्री का उपयोग करके  कर सकता हैं। ट्राईकोडार्मा विरिडी की उत्पादन में चावल की छोटे-छोटे टुकड़े जिसे कनकी कहा जाता हैं , का प्रयोग होता हैं , जो किसानो के घर में आसानी से मिल जाता हैं। एक किलो ग्राम कनकी से बने ट्राईकोडार्मा विरिडी  10 किलोग्राम सूखे गोबर की खाद में मिलाने के लिए पर्याप्त होता हैं ,जिसे एक हेक्टेयर की खेत में प्रयोग कर सकते हैं। 

ट्राईकोडार्मा जैव फफूंदनाशी का वृहद्उ त्पादन करने के लिए :-

सबसे पहले साफ एक किलो ग्राम चावल की कनकी ले | 

अब चावल की कनकी को खौलते पानी में डालकर 1-2 मिनट के लिए पकाए और शीघ्र स्टील की छन्नी से जो स्प्रिट से साफ किया गया हो छान ले और हल्का गुनगुना होने तक ठंडा होने दे। 

छोटे -छोटे चौकोन  प्लास्टिक का डिब्बा ले जिसे स्प्रिट से अच्छे से साफ कर ले , गुनगुना किये गए कनकी में 2 ट्राइकोकैप केप्सूल या  ट्राईकोडार्मा कल्चर का एक चमच पावडर को अच्छी से मिला दे , अब इसे प्लास्टिक के डिब्बे में एक सेंटीमीटर ऊपर तक भरे और दबाकर ढकन बंद कर दे। 

इन भरे हुए डिब्बो को एक साफ सुथरा बंद कमरे में अलग अलग एक लाइन से लकड़ी या पत्थर की अलमारी या कबाड़ में रखे ध्यान रहे कमरे का तपमान 25-30 डिग्री से अधिक वा कम ना हो यदि तापमान कम हो तो साफ बोर से डिब्बो को ढक दे और यदि तापमान अधिक हो तो डिब्बो को गीली रेत पर रख दे। 

डिब्बे भरने के तीसरे दिन से ट्राईकोडार्मा फफूंद उगना शुरू हो जायेगा , जो पहले सफ़ेद होगा और बाद में हरा हो जायेगा ,जिसे 7-8 दिन बाद उपयोग करने लायक हो जायेगा। 

अब तैयार ट्राईकोडार्मा को डिब्बे से निकालकर खलबट्टा या मिक्सी की सहायता से बारीक़ पीस कर पावडर बना ले  तथा इसे 100 ग्राम  प्रति एक किलो सड़ी हुई सूखे गोबर की खाद या कंडे की साफ राख में मिलाकर , अपने इच्छा अनुसार थैली में भरकर सील करके छायादार जगहों में भंडार कर ले। 

 अब इसे किसान अपने खेतो में वा अन्य किसानो को बेचने के लिए प्रयोग कर सकते हैं।  बेचने के लिए  बिना राख या खाद में मिलाय ही बेच सकते हैं , लेकिन मृदा उपचार के लिए वा लबे समय तक भंडारित करने के लिए गोबर की खाद में मिलाना जरुरी हैं।  बाकि के लिए किसी भी प्रकार राख या खाद में मिलाने की जरुरत नहीं हैं। 

Traykodarma virdi का उत्पादन करने के लिए बाज़ारो में मिलने वाले Traykodarma virdi  पावडर का भी  ट्राइकोकैप  केप्सूल के स्थान में प्रयोग कर सकते हैं |




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