Cultivation Of Green Pea
सब्जी वाली मटर की जैविक एवं उन्नत खेती से बने मालामाल 

Cultivation Of Green Pea 

मटर एक बहुउपयोगी फसल हैं जिसका प्रयोग हरी वा सुखी दोनों ही अवस्था में किया जाता हैं। , जबकि मटर की मांग बाजार में हमेसा बना रहता हैं , वर्तमान में हरी मटर की मांग सूखे मटर की अपेक्षा कंही अधिक हैं , ऐसे में किसान सब्जी वाली हरी  मटर की जैविक एवं उन्नत खेती से मालामाल हो सकते हैं। भारत के लगभग सभी प्रदेशो के किसान मटर की खेती अक्टूबर से लेकर दिसम्बर के माध्य तक आसानी से किया जा सकता हैं , इस समय हरी मटर का उत्पादन भी अधिक होता। 


मटर के प्रमुख उपयोग :- 

  • वैसे तो मटर का प्रयोग कई प्रकार से किया जाता हैं जिसमे सब्जी वा दाल का स्थान प्रमुख हैं , सब्जी के लिए हरी फली के दाने वा सूखे दानो का भी प्रयोग किया जाता हैं किन्तु सूखे दानो के मुकाबले हरे दाने अधिक स्वादिस्ट वा पोष्टिक होते हैं। इसलिए हरी मटर का प्रयोग मटर पनीर , आदि जैसी  शाही सब्जिया बनाने में किया जाता हैं जबकि सूखे दानो को भीगा कर आलू आदि के साथ मिलाकर टेस्टी मसालेदार सब्जी बनाया जाता हैं , इसके अलावा सूखे मटर से दाल बनाया जाता हैं जिसका प्रयोग खाने वा  बेसन तथा बेसन से कई प्रकार के नमकीन आदि के लिए उपयोग होता हैं।  वैसे लौकी की सब्जी मटर दाल के साथ बनाने से बहुत ही टेस्टी सब्जी बनता हैं।  खासकर यह छत्तीसगढ़ की अधिकांश गाव वालो की पसंदिता सब्जी भी हैं , इसके अलावा मटर में आयरन ,जिंक , मैगनीज , कॉपर , ,प्रोटीन , विटामिन , लवण , आदि पर्याप्त मात्र में पाया जाता हैं , जो शारीर के लिए बहुत लाभदायक हैं , मटर का सेवन से शारीर की मोटापा भी  नियंत्रित कर सकते हैं क्योकि मटर में मोटापा खत्म करने की गुण होता हैं इसके अलावा मटर की बेसन का लेप त्वचा पर लगाने से त्वचा में चामक बढ़ जाता हैं।  मटर की अधिक फायदे की जानकारी के लिए क्लिक करे मटर के फायेदे 

मटर की प्रमुख उन्नतशील किस्मे :-

  • खेती के आधार पर मटर प्रमुख रूप से 2 प्रकार की होती  1 फिल्ड मटर , 2 गार्डन मटर 
  • फिल्ड मटर मुख्या रूप से सूखे दानो वा हरे चारे के लिए उगाया जाता के लिए उगाया जाता हैं इसप्रकार की मटर की प्रमुख उन्नतशील किस्मे हैं 
  1.  रचना :- यह किस्म की पौधे लबे होते हैं तथा सफेद चूर्णी भभूतिया रोग के प्रति सहनशील हैं।  इस किस्म की फसल अवधी 130-135 दिन हैं तथा 8-10 कुंटल प्रति एकड़ सूखे दाने की प्राप्ति हो जाता हैं 
  2. इंद्रा :- इस किस्म की पौधे बौने होते हैं तथा दाना सफेद  गोल होता  यह किस्म भी सफेद चूर्णी भभूतिया रोग के प्रति सहनशील हैं।  इस किस्म की फसल अवधी 125-130 दिन हैं तथा 10-12 कुंटल प्रति एकड़ सूखे दानो का उत्पादन होता है। 
  3. के.एफ.पी.डी -103 :- इस किस्म की पौधे लंबे होते हैं , तथा दाना सफेद गोल होते हैं , इस किस्म की फसल अवधी 129-130 दिन की होती हैं जबकि 10-12 कुंटल सुखा दाना प्रति एकड़ प्राप्त होता हैं। 
  4. पन्त मटर 5 :- इस किस्म की पौधे लंबे हल्के हरे रंग के होते हैं। तथा सफेद चूर्णी भभूतिया रोग के प्रति सहनशील हैं। तथा इस फसल की अवधि 130-135 दिन की होता हैं। जबकि सूखे दानो का उत्पादन 8-10 कुंटल प्रति एकड़ होता हैं। 
  5. आई पी.एफ99-15 :- इस किस्म के पौधे लंबे होते हैं तथा दाना सफेद होता हैं। तथा सफेद चूर्णी भभूतिया रोग के प्रति सहनशील हैं, फसल अवधी 130-135 दिन तथा सूखे दानो का उत्पादन प्रति एकड़ 10-13 कुंटल प्रति एकड़ होता हैं। 
  6. के.पी.एम। आर :- इस किस्म की पौधे बौनी होती हैं तथा पौधे हल्के सफेद होता हैं तथा सफेद चूर्णी भभूतिया रोग के प्रति सहनशील हैं, फसल अवधी 125-130 दिन ,12-15 कुंटल प्रति एकड़ सुखा दाना की प्राप्ति होता हैं।  
  • जबकि गार्डन मटर हरी फली या दाने के लिए उगाया जाता हैं साथ ही लोग इसे अपने घरो के बगीचों में वा गमलो में  भी उगा सकते हैं , क्योकि इसकी उपज फिल्ड मटर की अपेक्षा अधिक होता हैं और इस प्रकार की मटर केवल हरी फली प्राप्त करने के लिए ही उगाया जाता हैं। इस प्रकार की मटर की प्रमुख किस्मे हैं :-

अगेती किस्मे (जल्दी तैयार होने वाली)

आर्केल :- यह यूरोपियन अगेती किस्म है इसके दाने मीठे होते है इसमें बुवाई के 55-65 दिन बाद फलियाँ तोड़ने योग्य हो जाती है इसकी फलियाँ 8-10 से.मी. लम्बी एक समान होती है प्रत्येक फली में 5-6 दाने होते है हरी फलियों की 32-35 क्विंटल प्रति एकड़ उपज मिल जाती है इसकी फलियाँ तीन बार तोड़ी जा सकती है इसका बीज झुर्री दार होता है |

बोनविले  :- यह जाति अमेरिका से लाई गई है इसका बीज झुर्री दार होता है यह मध्यम उचाई की सीधे उगने वाली जाति है यह मध्यम समय में तैयार होने वाली जाति है इसकी फलियाँ बोवाई के 80-85दिन बाद तोड़ने योग्य हो जाती है फूल की शाखा पर दो फलियाँ लगती है इसकी फलियों की औसत पैदावार 55-60 क्विंटल प्रति एकड़  मिल जाता हैं |

अर्ली बैजर :- यह किस्म संयुक्त राज्य अमेरिका से लाई गई है यह अगेती किस्म है बुवाई के 60-70 दिन बाद इसकी फलियाँ तोड़ने केलिए तैयार हो जाती है फलियाँ हलके हरे रंग की लगभग 7 से.मी. लम्बी तथा मोटी होती है दाने आकार में बड़े ,  मीठे व झुर्रीदार होते है हरी फलियों की औसत उपज 30-35 क्विंटल प्रति एकड़  होती है |

अर्ली दिसंबर :- टा. 19 व अर्ली बैजर के संस्करण से तैयार की गई है यह अगेती किस्म है 55-60 में तोड़ने के लिए तैयार हो जाती है फलियों की लम्बाई 6-7 से.मी. व रंग गहरा हरा होता है हरी फलियों की औसत उपज 30-35 क्विंटल प्रति एकड़ हो जाती है |

असौजी :- यह एक अगेती बौनी किस्म है इसकी फलियाँ बोवाई के 55-65 दिन बाद तोड़ने योग्य हो जाती है इसकी फलियाँ गहरे हरे रंग की 5-6 से. मी. लम्बी व दोनों सिरे से नुकीली , लम्बी होती है प्रत्येक फली में 5-6 दाने होते है हरी फलियों की औसत उपज 30-35 क्विंटल प्रति एकड़  होती है |

पन्त उपहार :- इसकी बुवाई 25  अक्टूम्बर से 15  नवम्बर तक की जाती है और इसकी फलियाँ बुवाई से 65-70 दिन बाद तोड़ने योग्य हो जाती है |

जवाहर मटर :-  इसकी फलियाँ बुवाई से 65-75 दिन बाद तोड़ने योग्य हो जाती है यह मध्यम किस्म है फलियों की औसत लम्बाई7-8  से. मी. होती है और प्रत्येक फली में 5-8 बीज होते है फलियों में दाने ठोस रूप में भरे होते है हरी फलियों की औसत पैदावार 55-60 क्विंटल प्रति एकड़  होती है |

मध्यम किस्मे

T9:- यह भी मध्यम किस्म है इसकी फलियाँ 75 दिन में तोड़ने लायक हो जाती है फसल अवधि 120  दिन है पौधों का रंग गहरा हरा फूल सफ़ेद व बीज झुर्रीदार व हल्का हरापन लिए हुए सफ़ेद होते है फलियों की पैदावार 30-35 क्विंटल प्रति एकड़ होता है |

T56:- यह भी मध्यम अवधि की किस्म है पौधे हलके हरे , सफ़ेद बीज झुर्रेदार होते है हरी फलियाँ 75  दिन में तोड़ने लायक हो जाती है प्रति एकड़  30-35 क्विंटल हरी फलियाँ प्राप्त हो जाती है |

NP29 :-  यह भी अगेती किस्म है फलियाँ 75-85 दिन में तोड़ने लायक हो जाती है इसकी फसल अवधि 100-110 दिन है बीज झुर्रीदार होते है हरी फलियों की औसत पैदावार 35-40  क्विंटल प्रति एकड़  है |

पछेती किस्मे (देरी से तैयार होने वाली)

ये किस्मे बोने के लगभग 100-110 दिनो बाद पहली तुड़ाई करने योग्य हो जाती है जैसे- आजाद मटर-2, जवाहर मटर-2 आदि।  

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मटर की खेत में खाद प्रबंधन :-
यदि किसान मटर की जैविक खेती करना चाहते हैं तो 2 ट्रेक्टर अच्छे से सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट की खाद प्रति एकड़ खेत में 2-3 जुताई करके अच्छे से मिला दे।  साथ ही बीज को बोने से पहले ट्राईकोडार्मा 10 ग्राम दावा को एक किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचार करने के बाद राइजोबियम कल्चर 10 ग्राम को 1 किलो ग्राम बीज के हिसाब से बीज उपचार करना चाहिये , इससे पौधे में गलने की बीमारी नही होती हैं साथ में पौधे को अच्छे पोषक तत्व भी प्राप्त होता हैं। 

यदि किसी किसान के पास उचित मत्रा में गोबर की खाद नही हैं तो , किसान के पास जो जैविक खाद उपलब्ध हैं उसके साथ 15 किलोग्राम यूरिया 30 किलोग्राम पोटाश वा 150 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट प्रयोग करना चाहिये चुकी मटर एक दलहनी फसल हैं इसलिए इसे सुरुवाती दौर में ही नत्रजन की आवश्यकता होता हैं ,इसलिए खेत की अंतिम जुताई के समय सभी रासायनिक खाद को मिट्टी में मिला दे। 
मटर में किट वा बीमारी एवं उनका प्रबंधन :-
मटर की प्रमुख किट फली खाने वाले किट वा माहू किट का आक्रमण होता हैं कभी-कभी इसमें कटुवा किट का भी प्रकोप देखा जाता हैं , जो मटर के पौधों को बीच-बीच से काट देता हैं , इस प्रकार की किटो की रोकथाम के लिए जैविक दवाई :-


आदि का छिडकाव कर सकते हैं , इन दवाइयों के प्रयोग से मटर की लगभग सभी प्रकार की किटो का नियंत्रण हो जाता हैं।  यह  दवाई जैविक होने के कारण फसलो पर कोई हानिकारक प्रभाव नही छोड़ता जो मानव वा अन्य जीव के लिए बेहतर हैं। 

मटर के प्रमुख बीमारी :-
मटर में मुख्य रूप से सफेद चूर्णी वा जड़ तथा  तना गलन रोग ज्यादा देखा गया हैं , जड़ वा तना गलने की समस्या को उकठा रोग भी कहा जाता हैं जो अधिक नमी के कारण से भी होता हैं , जबकि चूर्णी रोग देर से बोई गई फसल में अधिक देखा गया हैं , ये दोनों ही बीमारी फफूंद के कारण होते हैं अतः इन  बीमारी के रोकथाम के लिए  फसलो की बोवाई समय पर करे वा अधिक सिचाई से बचे साथ ही बीज उपचार करना चाहिये। 
इसके लिए इन दवाओ का प्रयोग कर सकते हैं। 


मटर की फसल के लिए प्रति एकड़ बीज की मात्रा :-

हाइब्रिड बीजो की मात्रा प्रति एकड़ 25 किलोग्राम जबकि उन्नत बीजो की मात्रा प्रति एकड़  30-35 किलो ग्राम की जरुरत पड़ता हैं। 
मटर की बोवाई का सही समय :-

मटर की बोवाई का समय अक्टूबर के दुसरे सप्ताह से लेकर दिसम्बर के दुसरे सप्ताह तक किया जा सकता हैं , मटर की बोवाई करतो में करना चाहिये इससे खेतो में मटर की पौधों की संख्या अधिक वा पौधे से पौधे की निश्चित होने के कारण प्रति पौधा अधिक फली भी बनता हैं। 
 मटर की फली की तोड़ाई वा मार्केटिंग :-

मटर की किस्मो के अनुसार वा उपयोग के अनुसार मटर की तुड़ाई करना चाहिये , वैसे सब्जी वाली अगेती किस्म की मटर बोने के 55-65 दिन बाद तोड़ने योग्य हो जाती हैं जबकि माध्यम किस्म की मटर 75-85 दिन में वही पछेती किस्म की मटर 80-100 दिन बाद पहली तोड़ाई के लिए तैयार हो जाता हैं। जबकि दाने वाली मटर 120-140 दिन में पूर्ण रूप से पक कर तैयार हो जाती हैं। 
सब्जी वाली मटर की तोड़ाई पर विशेष ध्यान दे , दाना पूर्ण रूप से विकशित हो तथा दाना मुलायम हो तब ऐसे फली को चुन कर तोड़कर बाजार में बेच दे या फिर फली को छिलकर बर्फ डालकर फ्रिज कर दे इससे मटर के दानो को लबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता हैं। इसके अलावा भी हरे मटर को सुखाकर भी रखा जा सकता हैं ,इसके लिए सबसे पहले ताजे हरे मटर को छिल कर उबलते हुए पानी में 5 मिनट तक पकाए उसके बाद निकाल कर धुप में अच्छी तरह से सुखा ले , इस मटर को कभी भी उपयोग किया जा सकता हैं इसके लिए मटर को 4-5 घंटे  के लिए ठंडे पानी में भीगा दे उसके बाद यह ताजे मटर के दाने जैसे ही हो जाते हैं। अब इसे उपयोग में लाया जा सकता हैं या बेचा जा सकता हैं। 
इसप्रकार से सब्जी वाली मटर को उगाकर अधिकतम लाभ कमा सकते हैं। 


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