चने की खेती को अधिक लाभदायक बनाने के लिए Chickpea या gram की उन्नत Cultivation करना जरुरी हैं , साथ ही चने की विभिन्न प्रकार की बाजार मांग को भी ध्यान रखना होगा जिससे चने की खेती करने वाले किसानो gram की फसल से अधिकतम लाभ मिल सके।
भारत के लगभग सभी राज्यों में चने की खेती अक्टूबर से लेकर नवंबर की अंतिम सप्ताह तक बोई जा सकती हैं। किसानो को एक बात का ध्यान रखना चाहिये जिस खेत में पिछले वर्ष चना की फसल लेने के दौरान बीमारी की समस्या हुई थी उस खेत में अगली फसल दलहनी की ना ले। इससे किट बीमारी की जीवन चक्र प्रभावित होता हैं और फसल बच जाता हैं। चने की खेती सिंचित वा असिचित दोनों की अवस्था में किया जा सकता हैं
चने का उपयोग कई प्रकार से किया जाता हैं , जैसे की चने की हरी साग , हरे चने , हरे चने को भुजा हुवा, सब्जी , भुना हुवा चना , दाल , बेसन , आदि के रूप में किया जाता हैं , चना एक दलहनी फसल होने के करण यह खेतो की मिट्टी को लाभ तो पहुचाता ही हैं साथ में चना एक उच्च कोटि की प्रोटीन वा अमीनो अम्ल से परिपूर्ण होने की वजह से मानव वा पशु चारा के लिए उत्तम खाद्य फसल हैं। चने में अच्छी मत्रा में खनिज वा अन्य विटामिन काफी अच्छी मत्रा में पाया जाता हैं , जो सेहत के लिए लाभदायक हैं। चने वा गुड खाने से शारीर को मजबूती मिलती हैं जिससे कई प्रकार की बीमारी से शारीर बचा रहता हैं।
उन्नत प्रकार से चने की खेती करने के लिए निम्न बातो को ध्यान में रखना चाहिये ;-
वैसे तो अच्छी सिचाई व्यवस्था होने से चने की फसल लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में लिया जा सकता हैं किन्तु अच्छी पैदावार के लिए भारी दोमट , कन्हार , मिट्टी सबसे अच्छा रहता हैं ,क्योकि इन मिट्टियो में ढेला अधिक बनता हैं जो चने की जड़ो के लिए अच्छा होता हैं। क्योकि चने के जड़ो में पाए जाने वाले राइजोबियम जीवाणु हवा से नत्रोजन को मिट्टी में फिक्स करने में सरलता होता हैं। साथ ही कम पानी में भी अच्छी पैदावार मिल जाता हैं .
चना तीन प्रकार का होता हैं 1 काला चना 2 गुलाबी चना 3 काबुली या छोले चना
काला चना की प्रमुख किस्म :-
गुलाबी चना की प्रमुख किस्मे :-
काबुली या छोले चने की प्रमुख किस्मे :-
चने की फसल में सिचाई :- दलहनी फसल में बहुत हल्की सिचाई करना चाहिये इसके लिए स्प्रिंकलर सिचाई सबसे अच्छा होता हैं .



