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 Cultivation Of Chickpea And Profit 


चने की खेती को अधिक लाभदायक बनाने के लिए Chickpea या gram की उन्नत Cultivation करना जरुरी हैं , साथ ही चने की विभिन्न प्रकार की बाजार मांग को भी ध्यान रखना होगा जिससे चने की खेती करने वाले किसानो gram की फसल से अधिकतम लाभ मिल सके। 

भारत के लगभग सभी राज्यों में चने की खेती अक्टूबर से लेकर नवंबर की अंतिम सप्ताह तक बोई जा सकती हैं। किसानो को एक बात का ध्यान रखना चाहिये जिस खेत में पिछले वर्ष चना की फसल लेने के दौरान बीमारी की समस्या हुई थी उस खेत में अगली फसल दलहनी की ना ले। इससे किट बीमारी की जीवन चक्र प्रभावित होता हैं और फसल बच जाता हैं। चने की खेती सिंचित वा असिचित दोनों की अवस्था में किया जा सकता हैं 

चने की उपयोगिता व लाभ :-

चने का उपयोग कई प्रकार से किया जाता हैं , जैसे की चने की हरी साग ,  हरे चने , हरे चने को भुजा हुवा, सब्जी , भुना हुवा चना , दाल , बेसन , आदि के रूप में किया जाता हैं , चना एक दलहनी फसल होने के करण यह खेतो की मिट्टी को लाभ तो पहुचाता ही हैं साथ में चना एक उच्च कोटि की प्रोटीन वा अमीनो अम्ल से परिपूर्ण होने की वजह से मानव वा पशु चारा के लिए उत्तम खाद्य फसल हैं। चने में अच्छी मत्रा में खनिज वा अन्य विटामिन काफी अच्छी मत्रा में पाया जाता हैं , जो सेहत के लिए लाभदायक हैं। चने वा गुड खाने से शारीर को मजबूती मिलती हैं जिससे कई प्रकार की बीमारी से शारीर बचा रहता हैं। 

उन्नत प्रकार से चने की खेती करने के लिए निम्न बातो को ध्यान में रखना चाहिये ;-

मिट्टी :- 

वैसे तो अच्छी सिचाई व्यवस्था होने से चने की फसल लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में लिया जा सकता हैं किन्तु अच्छी पैदावार के लिए भारी दोमट , कन्हार , मिट्टी सबसे अच्छा रहता हैं ,क्योकि इन मिट्टियो में ढेला अधिक बनता हैं जो चने की जड़ो के लिए अच्छा होता हैं। क्योकि चने के जड़ो में पाए जाने वाले राइजोबियम जीवाणु हवा से नत्रोजन को मिट्टी में फिक्स करने में सरलता होता हैं। साथ ही कम पानी में भी अच्छी पैदावार मिल जाता हैं . 

Chickpea  या Gram की उन्नत  किस्मो का चुनाव 

चना तीन प्रकार का होता हैं 1 काला चना 2 गुलाबी चना 3 काबुली या छोले चना 

काला चना की प्रमुख किस्म :-


गुलाबी चना की प्रमुख किस्मे :-


काबुली या छोले चने की प्रमुख किस्मे :-


चने की फसल में सिचाई :- दलहनी फसल में बहुत हल्की सिचाई करना चाहिये इसके लिए स्प्रिंकलर सिचाई सबसे अच्छा होता हैं .


Cultivation Of Green Pea
सब्जी वाली मटर की जैविक एवं उन्नत खेती से बने मालामाल 

Cultivation Of Green Pea 

मटर एक बहुउपयोगी फसल हैं जिसका प्रयोग हरी वा सुखी दोनों ही अवस्था में किया जाता हैं। , जबकि मटर की मांग बाजार में हमेसा बना रहता हैं , वर्तमान में हरी मटर की मांग सूखे मटर की अपेक्षा कंही अधिक हैं , ऐसे में किसान सब्जी वाली हरी  मटर की जैविक एवं उन्नत खेती से मालामाल हो सकते हैं। भारत के लगभग सभी प्रदेशो के किसान मटर की खेती अक्टूबर से लेकर दिसम्बर के माध्य तक आसानी से किया जा सकता हैं , इस समय हरी मटर का उत्पादन भी अधिक होता। 


मिश्रित खेती और मिश्रित फसल से लाभ 

किसानो की सालाना आय को बढ़ाने के लिए मिश्रित खेती वा मिश्रित फसल का महतवपूर्ण योगदान होता हैं . साथ ही इस प्रकार के खेती या फसल उगाने से किसानो की संशाधनो का भरपूर उपयोग होता हैं , जिससे किसानो को नुकसान होने का खतरा बहुत कम होता हैं , खासकर यह छोटे वा माध्यम वर्ग के किसानो की लिए एक अच्छा माध्यम हो सकता हैं जिससे अपने छोटे से जमीन में कई प्रकार की फसलो को उगाकर या फसल उगाने के साथ ही अन्य पालन भी कर सकता हैं , जो कई प्रकार से लाभ दे सकता हैं |

वास्तव मे मिश्रित खेती वा मिश्रित फसल लगाना किसानो के लिए हमेसा फायदेमंद होता हैं , क्योकि जब एक चीज मौसम या अन्य प्रभाव से प्रभावित होता हैं तो उसका पूर्ति दूसरा खेती या फसल कर देता हैं , एक उदहारण के रूप में समझे तो एक टमाटर या आलू की खेती करने वाला यदि अपने खेत में फसल के साथ  मधुमक्खी पालन+ मछली पालन करता हैं और यदि अधिक खराब मौसम या ठीक से बाजार भाव ना मिलने से टमाटर और आलू से नुकसान हो सकता हैं , लेकिन इस नुकसान की भरपाई मधुमक्खी पालन और मछली पालन से हो जायेगा | इस प्रकार से किसान अपने नुकसान को कम कर सकता हैं |

मिश्रित खेती क्या हैं ?

 एक ऐसी खेती करने का तरीका जिसमे फसल उगाने के साथ साथ पशुपालन ,मछली पालन ,मधुमक्खी पालन , मुर्गी पालन , बतख पालन, आदि पालन एक साथ कर सकते हैं मिश्रित खेती कहलाता हैं , इस प्रकार की खेती वास्तव में अधिक लाभ देता हैं ,और किसान यही उम्मीद से इस प्रकार की खेती करना चाहता हैं |

सामान्य रूप से मिश्रित खेती करने का तरीका :-

अक्सर जो किसान मिश्रित खेती करते हैं उसमे सामन्य फसल उगाने के साथ , कुछ पशु को पाला जाता हैं , या मछली पालन किया जाता हैं , या फिर फसल के साथ मछली पालन ,मुर्गी पालन की किया जाता हैं , जिसका स्तेमाल दूध ,मास ,अंडा उत्पादन कर स्थानीय बाजारों में बेचने के लिए किया जाता हैं , जिससे किसानो को फसल के अलावा एक्स्ट्रा लाभ मिलता हैं , हमारे देश में इस प्रकार की बहुत सारे किसान हैं  जो मिश्रित खेती कर रहे , लेकिन अभी भी बहुत किसानो में अधिकतम लाभ कमाने के लिए जागरूकता नही आई हैं | जिससे किसानो की आय में कोई खास प्रभाव नही देखा गया हैं ,

उन्नत मिश्रित खेती :-

इस प्रकार की खेती में कुछ ही किसान कर पा रहे हैं जिनके पास थोड़ी बहुत जानकारी हैं , और अच्छा लाभ कमा पा रहे हैं , ये किसान अधिकतर जैविक खेती को फोकस करते हैं , जिससे मिश्रित खेती करना आसन वा सरल हो जता हैं , साथ ही इस प्रकार की खेती में लागत भी कम आता हैं , और संसाधनों का अच्छा इस्तेमाल होता हैं , जिससे किसानो को अधिक लाभ होता हैं | इस प्रकार की खेती में प्रमुख रूप से फसल उत्पादन के साथ दुग्ध व्यवसाय , मछली पालन ,मुर्गी पालन को किया जाता हैं 

तकनिकी और उन्नत मिश्रित खेती :-

इस प्रकार की खेती में थोडा शुरुवाती लगात अधिक होता हैं किन्तु लाभ भी बहुत होता हैं  जो लबे समय तक बिना को समस्या के मिल सकता हैं , इसमें किसानो की अपने संसाधनों को देखते हुए प्लानिंग करना होता हैं , हम एक अति उन्नत मिश्रित खेती की बात करे तो यदि किसान के पास कम से कम एक एकड़ भी जमीन हैं तो , उसमे किसान 50 डिसमिल में एक तालाब का निर्माण कर सकता हैं और 50 डिसमिल में सब्जियो वाली फसल को उगा सकते हैं जिससे अधिक लाभ होगा | , 50 डिसमिल में तालाब बनाने के बाद तालाब के अन्दर में ही सुविधा के अनुसार  कलाम खड़ा करके या लोहे की खम्भे को गाड़ कर एक मुर्गीपालन के लिए जालीदार सेड का निर्माण करे  मुर्गी के साथ बतख पालन के लिए अलग से सेड बनाये , इसके अलावा तालाब के मेड में मधुमक्खी का मधु शाला लगाये , अब तालाब में रोहू ,कतला मृगल तीनो का बीज एक साथ डाले क्योकि ये तीनो मछली पानी की क्रमंश उपरी, मध्य और निचली सतह में रहते हैं जिसे एक साथ पालने में आसानी होता हैं और भोजन के लिए कोई competition नही होता हैं और आसानी से एक साल के अन्दर 2 से 3 किलो तक बढ़ जाता हैं , जिससे 50 डिसमिल में ही 10-12  कुंटल तक मछली उत्पादन कर सकते हैं , तालाब के अन्दर बनाये सेड में मुर्गी वा बतख का  पालन करे इससे मुर्गी से निकले अपशिस्ट नीचे पानी में गिर जायेगा जिसे बतख अपने पैरो से हल चल करके पुरे तालाब में फैला देगा , साथ में यह मछली के लिए भी बहुत अच्छा होता हैं एक तो मछली को कोई अलग से चारा देना नही पड़ता जबकि बतख के पानी को हल चल करने से पानी में आक्सीजन का बलेंस बना रहता हैं वा मछली में हल चल भी अच्छे से होता हैं जिससे मच्छली का विकास तेजी से  होता हैं , इसके अलावा तालाब के मेड में बने  मधु शाले में मधुमक्खी पालन करे जिससे फसलो में अच्छा परागड़ होगा साथ में शहद भी प्राप्त होगा | इसके अलावा पुरे तालाब के मेड में फूलो की खेती करे जिसे बाजार में बेचकर अच्छा लाभ कामा सकते हैं |  यदि तालाब में हमेसा पानी बनांए रखने के लिए बोर आदि की व्यवस्था हो जाये तो बहुत अच्छा होता हैं .

इस प्रकार के मिश्रित खेती से प्रति वर्ष 10 कुंटल मछली 10 कुंटल मुर्गी , वा  अच्छी नस्ल की 5 बतख से  3000  अंडे सालाना प्राप्त कर सकते हैं तथा 10-15 किलो शाहद सालाना प्राप्त होता हैं , इन सभी से लगभग 1,97000 रूपए की इनकम होता हैं इसके अलावा तालाब की मेड़ो पर लगे फुल से सालाना 15000 तक कमा सकते हैं वही 50 डिसमिल में लगे उन्नत  सब्जियों के खेती से सालाना 100000 तक का इनकम हो सकता हैं इस प्रकार से देखे तो 1 एकड़ में सालाना की इनकम लगभग 3 लाख से ऊपर की कमाई होता हैं जबकि शुद्ध कमाई 2-2.5 लाख से भी अधिक हो सकता हैं क्योकि यह सिर्फ एक अकड़े के अनुसार एक माध्यम  अनुमान ही हैं  |


मिश्रित फसल क्या हैं ?

 दो या दो से अधिक फसलो को एक साथ एक ही खेत में उगाने की प्रक्रिया को मिश्रित फसल कहते हैं , जैसे सरसों के साथ चना, आलू की फसल के साथ टमाटर ,मिर्च , बैगन आदि ,  इस प्रकार की फसल उगाने से कई लाभ होते हैं जैसे की किट बीमारी का नियंत्रण होता हैं वही कई फसल को एक साथ उगाने से सभी फसलो के अलग अलग भाव मिलने या किसी एक दो  फसल के नुकसान होने से दुसरे फसल से अच्छा खासा पैसे बन जाता हैं | इस प्रकार की फसल इंटर क्रोपिंग के रूप में भी लिया जाता हैं |

इंटर क्रोपिंग क्या हैं ?

 लबी उम्र वाली मुख्य फसलो के बीच में कम उम्र के फसलो को लगाना इंटर क्रोपिंग कहलाता हैं जैसे नारियल के मुख्य फसल के साथ अन्नास , या काली मिर्च , या फिर गन्ने की दो लाइन के बीच आलू की एक लाइन लगाना , इंटर क्रोपिंग के अंतर्गत आता हैं ,  इससे खाली पड़े जमीन का इस्तेमाल अच्छे से हो जाता हैं , तथा अच्छा उत्पादन भी प्राप्त होता हैं |

मिश्रित फसल उगाने के तरीके 

आमतौर पर किसान दो या दो से अधिक फसलो के बीज को एक साथ मिलाकर छिड़कर बो  देते हैं , जैसे की गेहू के साथ सरसों , या फिर सरसों के साथ चना आदि | इस प्रकार से बोई गई फसल कटाई के समय दिक्कत होता हैं क्योकि इसमें बीज मिलजाता हैं , जिसका बाजार मूल्य भी कम होता हैं |

उन्नत तरीके से मिश्रित फसल उगाने के लिए अलग-अलग फसलो को अलग-अलग लाइनों में बोना सबसे अच्छा हैं , जैसे की दो लाइन सरसों की उसके बाद एक या दो लाइन चने की और दो लाइन गेहू की , इस तरह से फसल  लगाने से एक ही क्षेत्र में तीन प्रकार की फसल अच्छे से प्राप्त होता हैं ,

इसी प्रकार से सब्जी वाली फसल में आलू ,टमाटर , मिर्च ,बैगन के साथ मुली गोभी वर्गी सभी लगाना चाहिये , मक्का के साथ भेंडी , ग्वार सेमी  उपयुक्त होता हैं , इसे एक -एक लाइन के अंतर में अलग -अलग फसल को लगा सकते हैं या फिर क्यारी बनाकर भी लगा सकते हैं जैसे की एक क्यारी में पूरा आलू उसके दुसरे क्यारी में गोभी , या भाजी वर्गी सब्जी को भी लगा सकते हैं ,

मिश्रित फसल में ध्यान देने वाली बात :-
मिश्रित फसल उगाते समय कुछ बातो को जरुर ध्यान रखना चाहिये जिससे कोई नुकसान ना हो जैसे की :-

अधिक पानी चाहने वाली फसल के साथ कम पानी की मंग वाली फसल को ना लगाये |

बेल वाली फसल जैसे की करेला ,बरबट्टी के साथ अन्य फसल को ना लगाये हा इसे अलग-अलग क्यारी बनाकर जरुर लगा सकते हैं 

अदलहनी फसल के साथ दाल दलहनी फसल को लगाये जैसे पालक , आलू ,टमाटर गोभी आदि के साथ मेथी फसल जरुर ले , इसी प्रकार से गेहू ,सरसों के साथ चना की फसल जरुर ले इससे मिट्टी की पोषक तत्वा अच्छा होता हैं ,

मिश्रित खेती वा मिश्रित फसल से लाभ :-

यदि ठीक तरीके से किया जाये तो मिश्रित खेती और मिश्रित फसल से  सामान्य खेती या फसल से 20-50 % अधिक लाभ मिलता हैं , वही उपलब्ध संसाधनों का बहुत अच्छे से उपयोग होता हैं , बाजार की अधिकतम मांग को पूरा करके अच्छे भाव का लाभ उठा सकते हैं , मिश्रित खेती और मिश्रित फसल से  किसानो को नुकसान होने के बहुत कम खतरा होता हैं , 

                                                     

टमाटर की जैविक उन्नत खेती || तीखुर की खेती से कमाए लाखो रूपए प्रति एकड़ || जीरा की जैविक खेती || मेथी की जैविक खेती || धनिया की जैविक खेती || जैविक खेती कैसे करे || रसायन मुक्त खेती कैसे करे || Bio Nutrient || जैविक कीटनाशक  || किसान क्रेडिट कार्ड कैसे बनाये || किसान सम्मान का लाभ किसान कैसे ले  


Cultivation Of Tomato 


 टमाटर की जैविक उन्नत खेती ,टमाटर उष्णकटिबंधीय जलवायु की फसल है, इसके पौधे सर्दी और गर्मी दोनों मौसम में आसानी से विकास कर लेते हैं. लेकिन सर्दियों में पड़ने वाले पाले से , पौधे शीघ्र नष्ट हो जाते है. टमाटर की खेती में लगातार इस्तेमाल किये जाने वाले रासायनिक कीटनाशक और उर्वरक की वजह से इसके फलों की गुणवत्ता कमी हुई हैं , जिसके कारण टमाटर  के अधिक प्रयोग को रोग उत्पन्न करने वाले कारक  के रूप में देखा जा रहा हैं , जैसे की पत्थरी , 

·         टमाटर के प्रमुख उपयोग

·         टमाटर खाने के फायदे

·         टमाटर के प्रमुख प्रकार और किस्मे

·         घरेलु उपयोग के लिए टमाटर उगाने के उन्नत तरीके

·         वाव्सयिक खेती करने के लिए उन्नत तकनिकी जानकारी

·         टमाटर की उन्नत खेती और लाभ

·         टमाटर की खेती से अधिकतम लाभ कमाने के लिए सुझाव  

 

 

टमाटर की जैविक खेती आज के समय की आवश्यकता है, क्योंकि टमाटर खपत और उत्पादन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण सब्जी की फसल है। जिसका सीधा सम्बन्ध मानव स्वस्था से  है,  टमाटर की  खेती लगभग पुरे देश में की जाती है, जबकि आंध्रप्रदेश  सबसे अधिक टमाटर उत्पादन करने वाला राज्य हैं , टमाटर की मांग साल भर रहती है। और खेती भी पुरे साल भर किया जा सकता हैं। 

टमाटर के प्रमुख उपयोग :-

टमाटर ही शायद एक ऐसी फल या सब्जी है, जिसे विश्वव्यापी मान्यता प्राप्त है।  लाल-लाल टमाटर देखने में सुंदर और खाने में तो स्वादिष्ट होता  हैं, साथ ही इनमें बहुतायत में पौष्टिक गुण भी पाए जाते हैं।टमाटर का प्रयोग  सलाद व सब्जी के लिए सबसे ज्यादा होता हैं ,आज लोग घर या रेस्टोरेंट या कंही भी खाने की स्वाद को बढ़ाने के लिए टमाटर का उपयोग करते ही  हैं , खाने में टमाटर का उपयोग स्वाद को बढ़ता ही हैं साथ में , टमाटर में भरपूर मात्रा में कैल्शियम, फास्फोरस व विटामिन सी व ए पाये जाते हैं जो हड्डी दांत व आँखों के लिये बहुत लाभकारी है। एसिडिटी की शिकायत होने पर टमाटरों की खुराक बढ़ाने से यह शिकायत दूर हो जाती है। हालाँकि टमाटर का स्वाद अम्लीय (खट्टा) होता है, लेकिन यह शरीर में क्षारीय (खारी) प्रतिक्रियाओं को जन्म देता है।  टमाटर की  खट्टे स्वाद का कारण साइट्रिक एसिड और मैलिक एसिड  है जिसके कारण यह प्रत्यम्ल (एंटासिड) के रूप में काम करता है। टमाटर का उपयोग सब्जी के स्वाद  को बेहतर बनाने के अलावा  टमाटर की सूप बनाने में  चटनी बनाने में , सलाद बनाने में  सॉस बनाने में ,  कैचअप बनाने में  , अचार बनाने में तथा जूस के लिए के , इसके अलावा नमकीन बनाने में  भी  बड़ी मात्रा में उपयोग किया जाता है, जिसका उपयोग लम्बे समय तक रखने व  पुरे साल भर कई प्रकार की पकवान के साथ किया जा सकता  हैं। इसके अलावा सौंदर्य प्रसाधन के सामग्री बनाने में भी टमाटर रस का प्रयोग होता हैं। 


टमाटर खाने के फायदे 

शरीर के लिए टमाटर बहुत ही लाभकारी होता है। इससे कई प्रकार की रोगों का निदान होता है। टमाटर शरीर से विशेषकर गुर्दे से रोग के जीवाणुओं को निकालता है। यह पेशाब में चीनी के प्रतिशत पर नियन्त्रण पाने के लिए प्रभावशाली होने के कारण यह मधुमेह के रोगियों के लिए भी उपयोगी होता है। कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होने के कारण इसे एक उत्तम भोजन माना जाता है। टमाटर से पाचन शक्ति बढ़ती है। इसके लगातार सेवन से जिगर बेहतर ढँग से काम करता है और गैस की शिकायत भी दूर होती है। जो लोग अपना वजन कम करने के इच्छुक हैं, तो उनके लिए टमाटर बहुत उपयोगी है। एक मध्यम आकार के टमाटर में केवल 12 कैलोरीज होती है, इसलिए इसे पतला होने के भोजन के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसके साथ साथ यह पूरे शरीर के छोटे-मोटे विकारों को भी दूर करता है। टमाटर के नियमित सेवन से श्वास नली का शोथ कम होता है। प्राकृतिक चिकित्सकों का कहना है कि टमाटर खाने से अतिसंकुचन भी दूर होता है और खाँसी तथा बलगम से भी राहत मिलती है।  अधिक पके लाल टमाटर खाने वालों को कैन्सर रोग नहीं होता। खाली पेट प्रतिदिन एक गिलास टमाटर का रस पीने से त्वचा का रंग गोरा होने लगता हैं खासकर चेहरे पर चमक बढ़ जाता हैं। इसके आलावा एक चमच हल्दी दो चमच बेसन, आधा चमच नीबू रस तथा एक से दो टमाटर का रस को पेस्ट बना ले और फिर इसे चेहरे पर लगाए इससे चेहरे की दाग , कील मुँहासे दूर हो जाते हैं  , लेकिन ध्यान रहे यदि टमाटर जैविक खाद ,कीटनाशक का उपयोग करके उगाया गया हैं तो यह जूस या रस पीने के लिए अति उत्तम होता है। 

टमाटर के प्रमुख प्रकार और किस्मे :-

टमाटर मुख्य रूप से दो प्रकार का होता हैं पहला चेरी टमाटर और दूसरा सामान्य टमाटर जो आमतौर पर सबसे ज्यादा उपयोग किये जाते हैं। 

चेरी टमाटर की उत्पादन सामान्य टमाटर से कई गुना अधिक होता हैं तथा इसका पोषक गुण भी सामान्य टमाटर से अधिक होता हैं ,चेरी टमाटर की मीठास सामान्य टमाटर की तुलना में ज्यादा होती है. इसमें 9.4 टीएसएस है, जबकि सामान्य टमाटर में टीएसएस 3.5 तक होता है. चेरी टमाटर में बीज और रस की मात्रा काफी कम होती है, इसमें विटामिन ए व लाइकोपीन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है. यह टमाटर लाल, गुलाबी और पीले रंग में होता है, चेरी टमाटर की खेती इन दिनों किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हो रही है चेरी टमाटर का प्रयोग ज्यादातर फाइव स्टार होटलों में सलाद के तौर पर किया जाता है. लेकिन अब इसमें ऐसी किस्मों का विकास हो रहा है जिसको आम लोगों की थाली तक भी पहुंचाया जा सकता है।  हांलाकि इसकी खेती के बारे में बात करें तो  इसे पॉलीहाउस में उगाया जाता है।  जिससे एक बार रोपाई करने के बाद पुरे साल भर फल लिया जा सकता हैं , हलकी चेरी टमाटर को घर की जरुरत को पूरा करने के लिए  गमलो में लगया जा सकता हैं , चेरी टमाटर की पौधे की लाबाई बहुत अधिक होता हैं यह 10-15 मीटर तक होता हैं , और फल लम्बे गुच्छो में लगते हैं। 

चेरी टमाटर के लिए प्रमुख किस्म हैं :

Red Cherry :- यह किस्म पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार की गई है। इस किस्म को खास सलाद के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका रंग गहरा लाल होता है और भविष्य में यह पीले, संतरी और गुलाबी रंग में भी उपलब्ध होगी। इसकी बिजाई अगस्त या सितंबर में की जाती है और फरवरी में यह कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह जुलाई तक पैदावार देती है। इसकी अगेती पैदावार 150 क्विंटल प्रति एकड़ और कुल औसतन पैदावार 430-440 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

Sona Cherry:- यह किस्म 2016 में जारी की गई है। इसकी औसतन उपज 425 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फल पीले रंग के और गुच्छों में निकलते हैं। फल का औसतन भार लगभग 11 ग्राम होता है। इसमें सुक्रॉस की मात्रा 7.5 प्रतिशत होती है।

Kesari Cherry: यह किस्म 2016 में जारी की गई है। इसकी औसतन उपज 405 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इस किस्म के फल का औसतन भार लगभग 11 ग्राम होता है। इसमें सुक्रॉस की मात्रा 7.6 प्रतिशत होती है।


                    

सामान्य टमाटर :-
सामान्य टमाटर की खेती देश भर में बड़ी मात्रा में किया जाता हैं , तथा पुरे दुनिया में  टमाटर उत्पादन के लिए चीन के बाद भारत का नंबर आता हैं  जिसमे सबसे ज्यादा उत्पादन देने वाला राज्य आंध्रप्रदेश हैं जबकि मध्यप्रदेश तीसरे सबसे अधिक टमाटर उत्पादन करने वाला राज्य हैं, भारत से विदेशो को भेजे जाने वाला टमाटर में सामान्य टमाटर का बड़ा योगदान हैं  जिससे करोडो रूपए की विदेशी मुद्रा प्राप्त होता हैं। सामान्य टमाटर की दो प्रजाति है पहला देशी और दूसरा हाइब्रिड या संकर इनकी प्रमुख किस्म की बात करे तो 
देशी में - 
पूसा सदाबहार :- इस किस्म की  औसत उपज लगभग  300 क्विंटल प्रति हैक्टेयर  से लेकर  150 -200 क्विंटल प्रति एकड़ तक हो सकता  हैं |  पौधा फुल देने बाद पौधों में बढाव नही होता हैं पौधा-बौना फल-गोल,छोटा चिकना आकर्षण लिये हुये, ठंडा और गर्म, वातावरण के लिये उपयुक्त हैं  इस किस्म की रोपाई के  55 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए शुरू हो जाता हैं। 

स्वर्ण लालिमा :- फल गहरे लाल, गोल (120-125 ग्राम) एवं कुल घुलनशील ठोस पदार्थ 4-5% जीवाणु जनित  मुरझा रोग के प्रति  प्रतिरोधी  तथा सिमित बढ़वार वाली किस्म हैं इसकी  रोपाई के 55-60 दिन बाद फल प्रथम तुड़ाई के लिए तैयार हो जाता हैं।    250-300  कुंटल  प्रति एकड़ होता हैं 

स्वर्ण नवीन:-  फल गहरे लाल रंग के अंडाकार (60-70 ग्राम) एवं कुल घुलनशील पदार्थ 5% जीवाणु झुलसा  रोग के प्रति प्रतिरोधी  तथा असिमित बढ़वार वाली किस्म हैं  इस किस्म की  रोपाई के 60-65 दिन बाद फल प्रथम तुड़ाई के लिए तैयार हो जाता हैं तथा उत्पादन  250-300  कुंटल  प्रति एकड़ होता हैं 
पूसा रूबी :- यह अगेती किस्म हैं , जिसके फल रोपाई के 60-65 दिनों बाद पक जाते हैं | फल हल्की धरियो वाले चपटे और सामान रूप से लाल होते हैं | इसकी उपज प्रति एकड़ 400-500 कुंटल होता हैं |

इसके अलावा भी अन्य किस्मे है जो अलग -अलग राज्य के लिए उपयुक्त हैं और उसका उत्पादन भी उसी राज्य में ज्यादा होता हैं , उन्नत  किस्म में - पूसा-120,पूसा शीतल,पूसा गौरव,अर्का सौरभ, अर्का विकास, सोनाली भी हैं जो पुरे भारत के लिए उपयुक्त हैं और इससे अधिकतम उपज प्राप्त होता हैं ,

संकर या हाइब्रिड :- इस प्रकार की किस्म में देशी किस्म के मुकाबले अधिक उत्पादन होता हैं संकर प्रकार के प्रमुख किस्म हैं। 
स्वर्ण वैभव :- फल गहरे लाल रंग के गोल (140-150 ग्राम) ठोस एवं कुल घुलनशील पदार्थ 5% दूरवर्ती बाजार और प्रसंस्करण के लिए उपयुक्त, एवं सिमित बढ़वार  वाली किस्म हैं  तथा रोपाई के 55-60 दिन बाद  प्रथम तुड़ाई के लिए तैयार हो जाता हैं इस किस्म की उपज उपज 360 -400 कुंतल प्रति एकड़ होता हैं। 
स्वर्ण समृद्धि:- फल लाल, ठोस (70-80 ग्राम) एवं कुल घुलनशील पदार्थ 5-6% जीवाणु जनित झुलसा रोग और अगेती अंगमारी रोगों के लिए प्रतिरोधी  एवं सिमित बढ़वार वाली किस्म हैं  रोपाई के 55-60 दिन बाद फल प्रथम तुड़ाई के लिए तैयार हो जाता हैं  उपज 400 -500 प्रति एकड़ तक होता हैं। 

इसके अलावा पूसा हाइब्रिड -2, पूसा हाइब्रिड-4, अविनाश-2, रश्मि तथा निजी क्षेत्र से शक्तिमान, रेड गोल्ड, 501, 2535उत्सव, अविनाश, चमत्कार, यू.एस.440 हैं जो बहुत अच्छी संकर किस्म हैं। 

घरेलु उपयोग के लिए घर की बालकनी या छतो में टमाटर उगाने की तकनीक :-

टमाटर का उपयोग हर घर में होता हैं क्योकि टमाटर एक ऐसा फल हैं जो लगभग सभी प्रकार की खाने का स्वाद बढ़ा देता हैं और इसी कारण से लोग टमाटर को पसंद करते हैं। कुछ लोग अपने जरुरत के लिए टमाटर को अपने ही घरो में उगाना चाहते हैं इसके लिए हम उन्नत तरीके से बालकनी या छतो में टमाटर उगाने के बारे में चर्च करेंगे :
बालकनी या छतो पर टमाटर उगाने के लिए  सबसे पहले  कम से कम एक फिट चौड़ा वा एक फिट  गहरा वाला गमला ले यदि गमला ना हो तो घर में पड़ी बेकार की प्लास्टिक  डिब्बा , या प्लास्टिक की छोटी-छोटी बाल्टी का भी प्रयोग कर सकते हैं , इन गमलो या डिब्बों में सबसे पहले नीचे 3-4 छेद कर दे जीससे अधिक पानी भर निकल जाये इसके बाद गमलो में अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट की खाद  को एक भाग मिटटी और एक भाग खाद के हिसाब से मिलाकर प्रत्येक गमलो में भर दे ध्यान रहे गमलो को अच्छे से दबा दबाकर भरे यदि गोबर या कम्पोस्ट की खाद ना मिले तो  केचुए की खाद को एक तिहाई मिटटी में मिलाकर भरे , मन लीजिये एक गमला एक किलो मिटटी लेगा तो उसमे 3 पाव मिटटी और एक पाव केचुए की खाद मिलाये , इसके बाद इस गमलो को एक से दो दिन के लिए खुले धुप में अच्छे से सुखाये फिर , इसके बाद प्रति गमला 2-4 बीज  एक से दो सेंटीमीटर की गहराई में डाले और हल्का सिचाई कर दे सिचाई प्रत्येक 4-5 दिन में करते रहे और हल्का करे , इसके अलावा ध्यान रहे पौधे को कम से कम सुबह या शाम में 2-3 घंटा धुप पड़े इससे पौधे का विकास अच्छा होता हैं साथ ही में फूल फल अच्छा आता हैं , ध्यान रहे यदि पौधे का विकास ना हो या फिर पत्तियों में पीला पन आए तो हल्के मात्रा में यूरिया का छिड़काव कर सकते हैं। 


टमाटर की  उन्नत एवं व्यावसायिक खेती कैसे करे ?:-
टमाटर की उन्नत और व्यावसायिक खेती करने के लिए :- जलवायू , भूमि , उन्नत किस्मे , और बाजार मांग इन चारो बातो  को ध्यान में रखना जरुरी हैं , यदि इनमे से किसी भी एक की जानकारी  नहीं हैं तो टमाटर की खेती से अच्छी लाभ कामना मुश्किल हो जायेगा , टमाटर उन्नत खेती के लिए सामन्य जानकारी 

टमाटर की खेती के लिए जलवायु :-

 टमाटर की  खेती बरसात , ठण्ड और गर्मी तीनो ही मौसम में   किया जाता लेकिन टमाटर की अच्छी उपज  के लिए नवम्बर महीने के अंतिम सप्ताह से लेकर दिसम्बर के अंतिम सप्ताह तक रोपाई करने से उपज में कोई परेशानी नहीं होता हैं , टमाटर की फसल अधिक पानी वा गर्मी से वृद्धि नहीं कर पाता  जबकि  पाला को बिल्कुल ही सहन नहीं कर सकता हैं।  12-26 से. ग्रे. तापमान के बीच टमाटर की खेती बहुत अच्छे से किया जा  सकता हैं। 

टमाटर की खेती के लिए उपयुक्त भूमि :-

टमाटर की खेती जैविक पदार्थो से युक्त दोमट मिटटी सबसे अच्छा होता हैं लेकिन अगेती किस्मो के लिए बलुई तथा दोमट बलुई मिटटी बहुत अच्छा होता हैं , इसके अलावा यदि अच्छी खाद जल निकास वा सिचाई की अच्छी व्यवस्था हो तो लगभग सभी प्रकार की मिटटी में टमाटर की खेती आसानी से किया जा सकता हैं। 

टमाटर की पौध शाला की तैयारी :-

टमाटर की बीज को  सीधे खेत में  बोकर भी फसल लिया जा सकता हैं किन्तु यह विधि बहुत छोटे एरिया के लिए लाभकारी हैं , यदि बड़े क्षेत्र में टमाटर उगाना हैं तो सबसे पहले पौधा तैयार करना पड़ता हैं जिससे पुरे खेत में पौधों की संख्या सही हो , टमाटर की पौधे तैयार करने के लिए सबसे पहले चयनित स्थान को अच्छे से जुताई करके या गुड़ाई करके मिटटी  को भूभुरा बना ले , और  इसमें सड़ी हुई गोबर की खाद मिला दे और मिटटी को समतल कर ले  फिर इसे 15 सेंटीमीटर ऊंचा क्यारी बना ले , इसके बाद 15-15  से. मी. की दुरी पर सीधा लाइन खींचे और इस लाइन में ही बीजो को रेत में मिलाकर बोवाई करे और फिर सूखी तथा बारीक़ किये गए गोबर की खाद से  या केचुए की खाद से बीज को ढक दे यदि खाद ना हो तो मिटटी से ही ढक दे और हल्के पानी का छिड़काव कर दे ,और हर 4-5 दिन में छिड़काव करते रहे , यदि हो सके तो पॉलीथिन की शीट से नीचे से  3 फिट ऊपर तक छत जैसे ढक दे इससे पौधे का Groth  अच्छा होता हैं। और पौधा 20 -25 दिन में  रोपाई के लिए तैयार  हो जाता हैं। 

टमाटर की फसल के लिए मुख्य खेत की तैयारी और खाद :-

टमाटर एक उथली जड़ वाली फसल हैं , अतः टमाटर की नर्सरी या पौध शाला में बीज बोन के बाद मुख्या खेत की तैयारी शुरू कर देना चाहिए जिससे खेत अच्छे से तैयार हो सके, इसके लिए खेत को एक बार मिटटी पलटने वाले हल से या फिर जो हल किसानो  के पास उपलब्ध हो उससे गहरी जुताई करना चाहिए उसके बाद खेत में प्रति एकड़ 3-4 ट्रैक्टर सड़ी हुई गोबर की खाद को पुरे खेत में अच्छे से फैला दे और 10-15 दिन तक ऐसे ही रहने दे इसके बाद दो जुताई करे और समतल कर ले यदि खेत में ढेले  हो तो ढेले तोड़ने के लिए रोटावेटर का प्रयोग कर सकते हैं इससे खेत की जुताई ,ढेले की तुड़ाई वा समतल एक साथ हो जाता हैं , इसके बाद खेत में 40 किलो ग्राम यूरिया , 160 किलोग्राम सिंगल सुपरफास्फेट , और 40 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश को एक एकड़ खेत के हिसाब से में सभी तरफ अच्छे से फैला दे  और एक हल्की जुताई कर दे अब खेत रोपाई के लिए तैयार हैं , ध्यान रहे जब रोपाई के 35-40 निराई गुड़ाई करे उसके बाद  40  किलो ग्राम  यूरिया का छिड़काव करे। 

टमाटर की ,बीज की मात्रा और रोपाई :-

एक एकड़ के लिए 120-150 ग्राम बीज  पर्याप्त होता हैं जबकि एक डिसमिल में 1-1.5 ग्राम बीज पर्याप्त होता हैं बीज को पौध शाला में बोन और वह से निकाल कर मुख्य खेत में लगाने  बाविस्टिन या थाइरम  दवा की 1 ग्राम मात्रा को 1 लीटर पानी में घोल बनाये वा उसमे पौधों की जड़ो को एक से दो मिनट के लिए डुबो दे और फिर मुख्य खेत में लगा दे इससे पौधे की गलने समस्या नहीं होता हैं। बरसात फसल के लिए जुलाई से अगस्त के दूसरे सप्ताह  तक , ठण्ड की फसल के लिए अक्टूबर से नवम्बर की अंतिम सप्ताह तक जबकि गर्मी की फसल के लिए फरवरी की पहली सप्ताह से मार्च की पहली सप्ताह तक टमाटर की रोपाई करे।  तथा पौधों की रोपाई लाइन  में करे और पौधों से पौधों की दुरी 20-30 सेंटीमीटर रखे तथा लाइन से लाइन की दूसरी 50-60 सेंटीमीटर रखे।  इसके अलावा यदि टमाटर में फूल लगते समय पौधों को सहारा दे दे तो उपज में 20 % तक वृद्धि होता हैं।  इसके लिए केन की रस्सी और बस का स्तेमाल कर सकते हैं। 

टमाटर में निराई गुड़ाई और सिचाई :- 

टमाटर की फसल को खरपतवार से बचाने और पौधों  की विकास के लिए दो निराई गुड़ाई की जरुरत होता हैं , पहला निराई गुड़ाई रोपाई के 30-35 दिन के बीच  लेना चाहिए  इसके ठीक 25-30 दिन में दूसरी निराई गुड़ाई कर लेना चाहिए , इसके आलावा पौधो की कटाई छटाई भी कर सकते हैं इससे पौधों में अच्छी वृद्धि के साथ अच्छी फल देने वाली शाखा भी निकलता हैं , जबकि सिंचाई  पौधे की रोपाई के बाद यदि मिटटी में पर्याप्त नमी ना हो तो तुरंत हल्की सिंचाई करना चाहिए  इसके बाद   बरसात के फसल में यदि वर्षा ना हो तो सिंचाई जरूर करे जबकि अक्टूबर से फरवरी तक की फसल को 7-12 दिन के अंतराल  वा गर्मी की फसल को 4-7 दिन के  अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए , वैसे मुख्या रूप से सिंचाई का अंतराल भूमि की किस्म पर निर्भर करता हैं ,यदि हल्की मिटटी हुई तो जल्दी -जल्दी सिंचाई की जरुरत होता हैं जबकि भारी मिटटी में कम सिंचाई की जरुरत होता हैं। 

टमाटर की फसल सुरक्षा :-

टमाटर की फसल को कई प्रकार की कीट वा बीमारी नुकसान पहुंचाता हैं जिसका रोकथाम समय पर नहीं किया गया तो उपज में 60 प्रतिशत तक कमी देखा गया हैं ,

टमाटर की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख कीट में :- जैसिड , सफ़ेद मक्खी और फल छेदक किट हैं :- 

जैसिड :- ये हरे रंग के छोटे -छोटे सफेद कीड़े होते हैं जो पौधे की कोशिका से रस चूस लेते हैं जिसके कारण पौधे की पत्तियाँ सूख जाती हैं , कीड़ो के अधिक संख्या होने से पत्तियाँ मुड़ कर गुछे जैसे हो जाते हैं और अंत में पीला पड़कर गिर जाता हैं ,
सफेद मक्खी :- ये सफेद रंग के छोटे-छोटे मक्खी के तरह दिखने वाले किट होते हैं जो पत्ती वा पौधे का रस चूसते हैं, इसके अलावा ये कीट पत्ती मुड़ने वाले बीमारी भी फैलाती हैं | इस कीट से प्रभावित पत्तियाँ मुरझाकर सुख जाता हैं |

फल छेदक कीट :- यह टमाटर का सबसे प्रमुख शत्रु कीट हैं , टमाटर की फल को खाकर बेकार कर देता हैं , इन कीड़ो का पहचान फलो की मोजूद छेदों से होती हैं इस कीट की इल्लिया हरे फलो में घुस जाता हैं और अन्दर ही अन्दर फलो को खाते हैं जिससे फल सड़ जाता हैं ,


उपरोक्त कीटो की रोकथाम समय पर करना बहुत जरुरी हैं नही तो उपज में भारी कमी होता हैं , फसल की बढ़वार की आरंभिक अवस्था में मक्खी वा जैसिड के रोकथाम के लिए यदि हो सके तो जैविक दवाई जैसे की विजया 666 , या जोस B5 , आदि , या फिर मेटासिटोक्स अथवा या डाईमेथड दावा का 2 ग्राम दावा को 1 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें तथा टमाटर के फल छेदक कीट का नियत्रण करने के लिए प्रभावित पौधों और फल को उखाड़ कर जला दे  यदि कीड़ो का गंभीर आक्रमण हुवा हैं तो जैविक दवाई विजया 666 या रासायनिक दवाई मेलाथियन अथवा कार्बोरिल का छिडकाव करे और 15 दिन बाद दुबारा छिडकाव करे ,इससे फल छेदक कीट का नियत्रण हो जाता हैं ,


टमाटर की फसल को प्रमुख रूप से विगलन और सुत्रक्रिमी ज्यादा नुकसान पहुचता हैं :-

टमाटर में विगलन रोग सबसे ज्यादा होता हैं तथा टमाटर के पौधों पर बहुत ज्यादा बुरा प्रभाव डालता है इस रोग से फसल को क्यारी या पौध शाला में सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है खासतौर से बरसात के मौसम में इसका आक्रमण बहुत ही गंभीर होता है,यह रोग पौधों में जमीन की सतह से शुरू होकर तने की निचली सतह तक दिखाई देता है जिसमें  जड़ वा तना मर जाता है तथा पौधे की ऊपरी सतह हरी अवस्था में होता है लेकिन पौधे गिर जाने के करण  नष्ट हो जाते हैं क्या रोग बहुत ही तेजी से फैलने वाला होता हैं, इस बीमारी का लक्षण मुख्य खेतों में भी देखा जाता है कई बार अधिक वर्षा या अधिक सिंचाई के कारण मिट्टी में अधिक नमी हो जाता है जिसके कारण भी  यह रोग यह दिखाई देते हैं, 

 इस रोग की रोकथाम के लिए बीज उपचार करना बहुत जरूरी है क्योकि यह  रोग अधिक नमी होने के कारण  फफूंद द्वारा फैलता है,  जब बीजों का उपचार कर दिया जाता है तो अधिक नमी होने की स्थिति में भी फफूंद  जीवाणु का विकास नहीं हो पाता है जिसके कारण पौधे रोग मुक्त हो जाते हैं, बीज उपचार करने के लिए थोड़ी सी दवा कैप्टन या थैरम की थोड़ी सी मात्रा को बीज के  साथ मिलाकर अच्छे से मिला ले इससे दवाई का कड़ बीज पर आसानी से चिपक जाएगा और फिर से इसे कम से कम 15 मिनट के लिए छाया में सुखा दें उसके बाद बीजों की बुवाई कर दें,  इसी प्रकार से पौधों को क्यारी से निकालने के बाद मुख्य खेतो में लगाने से पहले कैप्टन या बाविस्टिन कि 1 ग्राम दवा को 1 लीटर पानी में घोल बना लें और उसमें पौधों की जड़ों को कम से कम 10 मिनट के लिए डुबो दे  उसके बाद पौधों की रोपाई करें इससे जड़ गलन  की समस्या लगभग समाप्त हो जाता है, इसके अलावा यदि खेत में इस बीमारी का कोई लक्षण  दिखाई दे तो  प्रभावित पौधों को उखाड़कर जला दे ,इसके अलावा फसल चक्र ,वा जल निकास की अच्छी व्यवस्था करना चाहिये वा उचित मात्रा में ही सिचाई करे .

इसके अलवा सूत्रकृमि भी टमाटर की पौधों को बहुत हानी पहुचाता हैं , सूत्रकृमि के कारण पौधों की जड़ो में  बड़ी बड़ी गठ बन जाता हैं , जिससे पौधों का विकास रुक जाता हैं,  प्रभावित पौधों की पत्तिया पीली पड़ जाता हैं , इसकी रोकथाम के लिए बीज उपचार करना चाहिये वा फसल चक्र के साथ खेत को कुछ समय के लिए खाली छोड़ दे इससे सूत्र कृमि की जीवन चक्र प्रभावित होता हैं , 


टमाटर की उपज प्रति एकड़ :

टमाटर की फसल को अच्छी देखभाल करने से वा अच्छी उपयुक्त किस्मो के चुनाव से एक एकड़ से सामन्य टमाटर से 150-200 कुंटल तक उपज आता हैं जबकि चेरी टमाटर से प्रति एकड़ 300-400 कुंटल तक उत्पादन होता हैं ,


टमाटर की उन्नत खेती और लाभ 

 

अच्छे क्वालिटी के बीज  160 ग्राम        1500 रूपए

पौध शाला निर्माण और पौधे तैयार करना    2000 रूपए

खेत की जुताई  व समतल करना          4000 रूपए

खाद सड़ी हुई गोबर या कम्पोस्ट की खाद    5500 रूपए

     सिंगल सुपर फास्फेट 2 बोरी         700 रूपए

     मियुरेट ऑफ़ पोटाश 30 किलो ग्राम    600 रूपए

     यूरिया 70 किलो ग्राम               600 रूपए

     खाद डालने के लिए मजदूरी          500 रूपए  

पौध रोपाई और निराई गुड़ाई के लिए      10000 रूपए

सिचाई और कीटनाशक के लिए            6000 रूपए

पौधों को सहारा देने के लिए             10000 रूपए

लकड़ी वा रस्सी को लगाने के लिए मजदूरी   1000 रूपए

अन्य खर्च                            2000 रूपए

 


एक एकड़ में कुल खर्च                 44,400 रूपए

 


 शुद्ध आय:-   

 एक एकड़ से अच्छे से देख भाल करने से 120 कुंटल टमाटर बड़े

 ही आराम से आ जाता हैं , यदि बाजार में एक एवरेज भाव

8 रूपए प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाये तो

 

120*100  =12000 किलोग्राम, 12000*8 = 96000 का कुल बिक्री

 

          कुल आय - कुल खर्च ,  96,000-44,400 = 51600

 

अतः एक एकड़ से 51600 रूपए शुद्ध कमा सकते हैं

 

 

टमाटर की खेती से अधिकतम लाभ कमाने के लिए navjiwankrishi.blogspot.com का सुझाव :-

टमाटर की खेती से लाभ कमाना तभी संभव हैं जब खेती की कुल उत्पादन लगत कम से कम हो और उत्पादन का मूल्य अच्छे से अच्छे मिले , किसान अक्सर एक गलती करता हैं की वह किसी भी फसल को एक सीज़न में बहुत अधिक उगाता हैं वो भी ऐसे समय में जब वह खेती करने वाले कई किसान उसी फसल को लगा रहे हैं , ऐसे में फसल का अधिक उत्पादन होने के बावजूद  किसान को कोई फायदा नही होता क्योकि अधिक उत्पदान से उस उत्पाद का मूल्य घट जाता हैं , मैं यह कुछ उद्धरण देना चाहूँगा , यदि खाद ,बीज , सीमेंट, लोहे,आदि की बड़ी बड़ी कम्पनी अपने उन उत्पादों को अधिक से अधिक उत्पादन करने के क्षमता के बावजूद नही बढ़ाते हैं , क्योकि यदि वो ऐसा कर दे तो उनके उत्पादन के लगत तो वही होगा जो कम उत्पादन करने में भी खर्च हो रहा था , लेकिन अधिक उत्पादन के करण उन उत्पादों का मूल्य बहुत कम हो जायेगा जिससे कम्पनी को शायद अपना उत्पादन लागत भी ना वसूल हो पाए ,और इसलिए अपने उत्पाद तो कम रखते हैं जिसके कारण उनका सामान का अच्छा भाव मिलता हैं ,

ठीक ऐसे ही किसान अपने उत्पाद का अच्छा भाव पाने के लिए अपने उत्पाद को स्थिर रखे , और एक ही फसल लगाने के बजाये दो या जितना हो सके अधिक से अधिक मिक्स फसलो को उगाये , जैसे कुछ क्षेत्रा में टमाटर तो कुछ में आलू ,तो कुछ में मिर्च , हरी सब्जी , इससे सभी खेतो का उपयोग अच्छे से होता हैं और उत्पाद का भाव भी अच्छा मिलता हैं , इसके अलावा अपने उत्पाद को अच्छे बाजार भाव मिलने पर बाजार में सीधे बेचे ,यदि बाजार भाव सही नही हैं तो  उस उत्पाद को नए उत्पाद में बदलकर बेचना चाहिये जैसे की , यदि टमाटर का बाजार मूल्य गिर गया हैं लेकिन इसे अधिक दिनों तक रख भी नही सकते ऐसे में , टमाटर की सॉस , केचप ,टमाटर की मिक्स आचार , टोमेटो पावडर , बना कर बेचे इससे  टमाटर को लबे समय तक खाने योग्य रखा भी जा सकता हैं और लोगो को काम भी  मिलेगा  साथ में जो चीज कम भाव में बिक रहा था अब उसका प्राइस एक निश्चित हो जायेगा जिससे किसानो को अच्छा मुनाफा होगा .

टमाटर की सॉस  बनाने की विधि 

टमाटर की सॉस  बनाने की विधि बहुत आसन व बहुत कम सामग्री में तैयार होने वाला उत्पाद हैं 

1 किलो ग्राम अच्छे  पके तजा टमाटर ,एक बड़ा चम्मच सिरका (वेनेगर),200 ग्राम चीनी,आधी छोटी चम्मच सोंठ पाउडर (अदरक को सुखाकर उसका पिसा पाउडर. यह बाजार में भी उपलब्ध है) स्वादानुसार काला नमक

 बनाने की विधि 

टमाटर  को अच्छे से धोकर काट लें. (इस ट्रिक से छीलें टमाटर, आलू और संतरा, काम होगा आसान)- एक बर्तन/भगोने में थोड़ा पानी और टमाटर डालकर मध्यम आंच पर उबलने के लिए रख दें. ढक्कन से भगोने को ढक दें और बीच-बीच में एक बड़ी चम्मच से टमाटर चलाते रहें. जब टमाटर पककर अच्छे से नर्म हो जाएं तो आंच बंद कर दें. फिर बड़ी छलनी को एक बर्तन के ऊपर लगाकर उस छलनी से पके टमाटर को चम्मच से दबाकर अच्छी तरह छान लें और उसका गाढ़ा रस अलग कर लें. अगर टमाटर के पीस बचे रह जाते हैं तो इनको मिक्सर में डालकर पीसने के बाद छलनी से छान लें.- आप चाहें तो टमाटर को निकालकर इनका छिलका उतारने के बाद भी मिक्सर में पीस सकते हैं. इनके बीज निकाल देंगे तो और अच्छा रहेगा. ऐसा करने के लिए आपको टमाटर काटने की जरूरत नहीं होगी, अब टमाटर के गाढ़े रस को एक भरी तले के बर्तन में डालकर मीडियम आंच पर रखें.- इसमें चीनी, सोंठ,  और काला नमक डालकर कड़छी या चम्मच से लगातार चलाते हुए पकाएं| जब यह गाढ़ा हो जाए तो आंच बंद कर दें. टोमैटो सॉस ठंडा होने के बाद इसमें सिरका  (वेनेगर) डालकर मिक्स करें.- तैयार सॉस को जार में भरे और मोम से शील बंद कर दे , इसप्रकार से इसे 6 महीने तक स्टोर कर सकते हैं |

टमाटर केचप बनाने की विधि 

टमाटर की केचप बनाना सास बनाने जैसे ही लेकिन इसमें कुछ मसालों का प्रयोग किया जाता हैं जिससे यह सास के मुकाबले अधिक स्वादिष्ट होता हैं .

 सामग्री 

1 किलो ग्राम टमाटर , लौंग बिना फुल ,0.5 ग्राम  , बड़ी इलाइची 1 ग्राम  ,काली मिर्च1 ग्राम ,लाल मिर्च 1 ग्राम ,जीरा 1 ग्राम ,जैवित्री 1 ग्राम  , दालचीनी 1.5 ग्राम  ,लहसुन 5 ग्राम  ,प्याज20 ग्राम , शक्कर 100 ग्राम  , नमक 10 ग्राम  ,सोडियम बेन्जोइड750 मिलीग्राम  , सिरका 4 मिलीग्राम 

बनाने की विधि 

पके हुए टमाटर को धोकर काट ले , इसके बाद एक बर्तन में टमाटर को  इतना पकाए की छिलका, गुदा  वा बीज आराम से अलग हो जाये  इसके बाद इसे स्टील की छलनी में बीज वा छिलका को छान कर अलग कर दे वा गुदा और रस में शक्कर ,नमक को मिलाकर धीमी आंच में लगभग 10 मिनट पकाए सभी मसालों को एक साथ  कूट कर मलमल की कपडे में पोटली बांधे अब इसे पकते हुए टमाटर के रस में डाल दे 5 मिनट तक पकाए और फिर पोटली को बहर निकाले  अब इसमें सोडियम बेंजोइड , और सिरका को मिलाये , और फिर 1 मिनट तक पकाए इसके बाद गरमा गरम साफ बोतल या डिब्बे में भरे और मोम से शील बंद कर दे इसे साल भर बाजार में बेचा जा सकता हैं ,

टमाटर की मिक्स आचार 

केवल टमाटर का आचार अधिक दिनों तक नही टिक सकता हैं इसलिए लबे समय तक टमाटर का आचार खाने के लिए मिक्स आचार बनाना सबसे आसान और उपयोगी हैं , टमाटर का मिक्स आचार बनाने के लिए -

सामग्री 

अच्छे से पके 1 किलो नीबू , 200 ग्राम सब्जी वाली हरी मिर्ची , 100 ग्राम लहसुन , 1 किलो अच्छे पके टमाटर , 200 ml सरसों का तेल , 50 ग्राम नमक या स्वाद के अनुसार भी लिया जा सकता हैं , 50 ग्राम भुजा गया सरसों की दाल , 30 ग्राम लाल मिर्च पाउडर , हल्दी पाउडर 50 ग्राम , 20 ग्राम जीरा , 10 ग्राम मेथी , 10 मिलीग्राम सिरका ,

बनाने की विधि :-

नीबू वा टमाटर को साफ धोकर 4 टुकड़ो में काट ले , और नीबू की दाना को निकाल ले , यदि हरी मिर्ची लबी हो तो 4 टुकडो में काटे नही तो 2 टुकडो में काटे , लहसुन को साफ कर ले अब तेल और सिरका को छोड़कर सभी सामग्री को एक साथ मिला दे और इसे साफ डिब्बो में भर दे इसके बाद सरसों के तेल और सिरका को डाल कर अच्छे से मिक्स करे , और डिब्बे को मोम से शील बंद करके ढक्कन कस दे , और इसे 2-3 दिन हल्के धुप में रखे , अब यह बाजार में बेचने के लिए तैयार हैं , 

टमाटर का पाउडर 

अच्छे पके टमाटर को साफ कर ले और इसे छोटे छोटे टुकडो में काटे और तार की जाली ,या फिर बास की टाट में डाल कर कड़े धुप में सुखाये , अच्छे धुप में 5-7 दिन सुखाने के बाद , सूखे टमाटर की पिसाई कर दे और इसमें हल्का नमक या फिर सोडियम बेंजोइड का पावडर मिलाए प्रति एक किलो में 500 मिलीग्राम के हिसाब से और फिर इसे तुरंत डिब्बो में या पोलीथिन में पैक कर दे , अब यह मार्केट में बेचने के लिए तैयार हैं , 

टमाटर पाउडर का इस्तेमाल विभिन्न मसाले दार सब्जियो में , नमकीन बनाने में , चटनी बनाने में , इसके अलावा कई प्रकार की रोटी बनाने वाले आटे में  मिलाकर रोटी बनाई जाये तो बहुत ही स्वादिष्ट रोटी बनता हैं |

यदि टमाटर उगाने वाले किसान Organic Tomato की Cultivation करता हैं तो  लाखो कमा सकता हैं   और किसान  अपना उत्पाद को सक्षण करके बेचे तो अधिक लाभ कमा सकता हैं , बाजार  इस तरह के उत्पाद की मांग लगातार बढ़ रहा हैं ऐसे में इस प्रकार की खेती से बहुत अच्छा लाभ कमा  सकते हैं 


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चरोटा की खेती ( Keshiya Tora ) करे  अधिक पैसा कमाए
चरोटा की खेती ( Keshiya Tora ) करे  अधिक पैसा कमाए  
चरोटा की खेती :-
यह चरोटा पहले खेत खलियानो से लेकर जंगल झाड़ियों में खरपतवार के रूप में बहुतायत में ऊगा रहता था लेकिन वर्तमान में इसकी खरीदी और मांग बढ़ने से जंगली रूप से उगने वाले चरोटे को लगातार market में बेचने से कमी आई हैं इस कमी को चरोटे की खेती करके पूरा किया जा सकता जो किसानो के लिए कम खर्च में अतरिक्त Income का स्त्रोत बन सकता हैं। 
चरोटा की खेती के लिए किसी खास जलवायु या मिटटी की  जरुरत नहीं होता हैं और ना ही खाद की लेकिन अच्छा उत्पादन लेने के लिए चरोटा  खेती करने वाले स्थान में गोबर की खाद हलकी मात्रा में बिखेर कर जुताई करना चाहिए इसकी खेती के लिए ज्यादा जुताई की आवश्यकता नहीं होता हैं 5 किलो बीज प्रति एकड़ पर्याप्त होता हैं सामन्यतः इसमें कीट बीमारी का प्रकोप भी नहीं होता हैं 


इसका वैज्ञानिक नाम केशिय टोरा  है। चरोटा बीज की गिरी का उपयोग कॉफी बनाने में होता है। बीज में गोंदनुमा पदार्थ से पान मसाला के अलावा बीज के पावडर का इस्तेमाल अगरबत्ती बनाने में होता है। आयुर्वेदिक दवा के अलावा अन्य हर्बल प्रोडक्ट, चर्म रोग के लिए मलहम, फंगस व वातरोग की दवा इससे बनाई जा रही है छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली चरोटा ने कई बाहर के देशों जैसे चीन, मलेशिया, और ताइवान में धूम मचा दिया है. अपने औषधीय गुणों की पहचान के बाद आयातक देश मलेशिया, ताईवान और चीन अब छत्तीसगढ़ के चरोटा में बड़े दाने की मांग कर रहे है. दरअसल पिछले पांच वर्षों में छत्तीसगढ़िया चरोटा को विदेशों में  अलग पहचान मिली है उसके पीछे कृषि वैज्ञानिकों का बहुत बड़ा योगदान और कारोबारियों की इसमें अहम भूमिका हैं।  पहले छत्तीसगढ़ के कई स्थानों के लोग इसके पत्ती का उपयोग सब्जी बनाने के लिए करते थे , इसके पत्ती काफी स्वद्दिष्ट और स्वस्थ वर्धक होता लेकिन यह चरोटा सभी जगह का स्वादिष्ट नहीं होता हैं , कही - कही का बहुत ज्यादा स्वादिष्ट होता हैं तो किसी स्थान का बहुत ही अलग तरह का गंध होता हैं , सामन्यतः चरोटा की कोमल पत्ती को अकेला सूखा या दाल के साथ पकाकर चवाल के साथ  खाते हैं ,
चरोटा की बाजार मांग का इतिहास :-
90 के दशक के दौरान इसकी पहली खरीद हुई थी तब इसका भाव 700 रूपए क्विंटल था. आज बाजार में इसकी कीमत 3000  से 5000  प्रति क्विंटल है. आज बढ़ते हुए बाजार और  मांग के बाद हाल ही में छत्तीसगढ़ की साथ निर्यातक राज्य के रूप में उभरकर तेजी से सामने आ रहे है. अब छत्तीसगढ़ के इस उत्पाद की मांग अब काफी जोर पकड़ने लगी है. इसलिए अब किसानो के लिए सबसे सस्ता आये का साधन बन चूका हैं अतः इसकी खेती करके अच्छा खासा पैसा कमा सकते हैं। 




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