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| चरोटा की खेती ( Keshiya Tora ) करे अधिक पैसा कमाए |
यह चरोटा पहले खेत खलियानो से लेकर जंगल झाड़ियों में खरपतवार के रूप में बहुतायत में ऊगा रहता था लेकिन वर्तमान में इसकी खरीदी और मांग बढ़ने से जंगली रूप से उगने वाले चरोटे को लगातार market में बेचने से कमी आई हैं इस कमी को चरोटे की खेती करके पूरा किया जा सकता जो किसानो के लिए कम खर्च में अतरिक्त Income का स्त्रोत बन सकता हैं।
चरोटा की खेती के लिए किसी खास जलवायु या मिटटी की जरुरत नहीं होता हैं और ना ही खाद की लेकिन अच्छा उत्पादन लेने के लिए चरोटा खेती करने वाले स्थान में गोबर की खाद हलकी मात्रा में बिखेर कर जुताई करना चाहिए इसकी खेती के लिए ज्यादा जुताई की आवश्यकता नहीं होता हैं 5 किलो बीज प्रति एकड़ पर्याप्त होता हैं सामन्यतः इसमें कीट बीमारी का प्रकोप भी नहीं होता हैं
इसका वैज्ञानिक नाम केशिय टोरा है। चरोटा बीज की गिरी का उपयोग कॉफी बनाने में होता है। बीज में गोंदनुमा पदार्थ से पान मसाला के अलावा बीज के पावडर का इस्तेमाल अगरबत्ती बनाने में होता है। आयुर्वेदिक दवा के अलावा अन्य हर्बल प्रोडक्ट, चर्म रोग के लिए मलहम, फंगस व वातरोग की दवा इससे बनाई जा रही है छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली चरोटा ने कई बाहर के देशों जैसे चीन, मलेशिया, और ताइवान में धूम मचा दिया है. अपने औषधीय गुणों की पहचान के बाद आयातक देश मलेशिया, ताईवान और चीन अब छत्तीसगढ़ के चरोटा में बड़े दाने की मांग कर रहे है. दरअसल पिछले पांच वर्षों में छत्तीसगढ़िया चरोटा को विदेशों में अलग पहचान मिली है उसके पीछे कृषि वैज्ञानिकों का बहुत बड़ा योगदान और कारोबारियों की इसमें अहम भूमिका हैं। पहले छत्तीसगढ़ के कई स्थानों के लोग इसके पत्ती का उपयोग सब्जी बनाने के लिए करते थे , इसके पत्ती काफी स्वद्दिष्ट और स्वस्थ वर्धक होता लेकिन यह चरोटा सभी जगह का स्वादिष्ट नहीं होता हैं , कही - कही का बहुत ज्यादा स्वादिष्ट होता हैं तो किसी स्थान का बहुत ही अलग तरह का गंध होता हैं , सामन्यतः चरोटा की कोमल पत्ती को अकेला सूखा या दाल के साथ पकाकर चवाल के साथ खाते हैं ,
चरोटा की खेती के लिए किसी खास जलवायु या मिटटी की जरुरत नहीं होता हैं और ना ही खाद की लेकिन अच्छा उत्पादन लेने के लिए चरोटा खेती करने वाले स्थान में गोबर की खाद हलकी मात्रा में बिखेर कर जुताई करना चाहिए इसकी खेती के लिए ज्यादा जुताई की आवश्यकता नहीं होता हैं 5 किलो बीज प्रति एकड़ पर्याप्त होता हैं सामन्यतः इसमें कीट बीमारी का प्रकोप भी नहीं होता हैं
इसका वैज्ञानिक नाम केशिय टोरा है। चरोटा बीज की गिरी का उपयोग कॉफी बनाने में होता है। बीज में गोंदनुमा पदार्थ से पान मसाला के अलावा बीज के पावडर का इस्तेमाल अगरबत्ती बनाने में होता है। आयुर्वेदिक दवा के अलावा अन्य हर्बल प्रोडक्ट, चर्म रोग के लिए मलहम, फंगस व वातरोग की दवा इससे बनाई जा रही है छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली चरोटा ने कई बाहर के देशों जैसे चीन, मलेशिया, और ताइवान में धूम मचा दिया है. अपने औषधीय गुणों की पहचान के बाद आयातक देश मलेशिया, ताईवान और चीन अब छत्तीसगढ़ के चरोटा में बड़े दाने की मांग कर रहे है. दरअसल पिछले पांच वर्षों में छत्तीसगढ़िया चरोटा को विदेशों में अलग पहचान मिली है उसके पीछे कृषि वैज्ञानिकों का बहुत बड़ा योगदान और कारोबारियों की इसमें अहम भूमिका हैं। पहले छत्तीसगढ़ के कई स्थानों के लोग इसके पत्ती का उपयोग सब्जी बनाने के लिए करते थे , इसके पत्ती काफी स्वद्दिष्ट और स्वस्थ वर्धक होता लेकिन यह चरोटा सभी जगह का स्वादिष्ट नहीं होता हैं , कही - कही का बहुत ज्यादा स्वादिष्ट होता हैं तो किसी स्थान का बहुत ही अलग तरह का गंध होता हैं , सामन्यतः चरोटा की कोमल पत्ती को अकेला सूखा या दाल के साथ पकाकर चवाल के साथ खाते हैं ,
चरोटा की बाजार मांग का इतिहास :-
90 के दशक के दौरान इसकी पहली खरीद हुई थी तब इसका भाव 700 रूपए क्विंटल था. आज बाजार में इसकी कीमत 3000 से 5000 प्रति क्विंटल है. आज बढ़ते हुए बाजार और मांग के बाद हाल ही में छत्तीसगढ़ की साथ निर्यातक राज्य के रूप में उभरकर तेजी से सामने आ रहे है. अब छत्तीसगढ़ के इस उत्पाद की मांग अब काफी जोर पकड़ने लगी है. इसलिए अब किसानो के लिए सबसे सस्ता आये का साधन बन चूका हैं अतः इसकी खेती करके अच्छा खासा पैसा कमा सकते हैं।
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