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Production Of Traykodarma virdi

ट्राईकोडार्मा विरिडी का कृषि में प्रयोग 

  • Traykodarma virdi कृषि में  उपयोग 
  • Production Of Traykodarma virdi ?
  • Traykodarma virdi का खेतो में उपयोग करने से लाभ 

किसानो के लिए फसल उत्पादन को बढ़ाने वा ,फसल उत्पादन में लगने वाले  खर्च को कम करने के लिए  Traykodarma virdi का महत्वपूर्ण स्थान हैं , यह एक  जीवाणु हैं जो पौधों में लगने वाले ,सूत्रकृमि  व फफूंद जनित रोगों से पौधों को सुरक्षा  प्रदान करता हैं जो जैविक खेती के लिए अति उत्तम  हैं। 
फसलो को सूत्रकृमि  , व फफूंद  बड़ा ही नुकसान पहुचाता हैं , जिसकी रोकथाम समय पर ना किया जाये तो पूरा फसल ही बर्बाद हो जाता हैं , किसान भाई सूत्रकृमि वा फफूंद जनित रोगो से फसलों को बचाने के लिए , महंगे से महंगे रासायनिक दवाई का प्रयोग करता हैं जो किसानो की आर्थिक स्थिति पर भारी असर डालता हैं साथ में भूमि ,पानी।  वायु वा अन्य जीवो पर बुरा असर छोड़ता हैं वो अलग ही हैं जिससे आज पूरा किसान वर्ग परेशान हैं, इस लिए किसान अब रसायन मुक्त खेती करने की ओर अग्रसर हो रहे हैं । 
ट्राईकोडार्मा विरिडी एक जीवाणु हैं जो फसलों की कई प्रकार की बीमारी को ठीक करने में बहुत असरकारी पाया गया हैं जैसे की धान में ब्लास्ट की समस्या , टमाटर ,चना अदि फसल में जड़ ,तना , गलने की समस्या , तथा , मुंग उड़द कद्दू वर्गी आदि फसलों के चूर्णी फफूंदी रोग को ठीक करने में असरकारी सिद्ध हुआ हैं। 

Traykodarma virdi कृषि में  उपयोग :-

ट्राईकोडार्मा विरिडी का मुख्य रूप से बीज उपचार , मृदा उपचार वा खाड़ी फसल में छिडकाव , कृषि कचरों को सड़ाने आदि  में किया जा सकता हैं , बीज उपचार के लिए  किसी प्लास्टिक की डिब्बा या मिट्टी के मटके या बीज उपचार करने वाली मशीन में एक किलो ग्राम बीज प्रति 10 ग्राम ट्राईकोडार्मा विरिडी को मिलाये वा 10 से 15 ml पानी मिलाकर अच्छे से मिक्स करे और फिर बीज को हवा में 30 मीनट से एक घंटे के लिए फैला कर सुखा ले इसके बाद खेतो में बोवाई कर दे इससे मृदाजनित रोग किसी भी प्रकार का नही होता हैं , वही मृदा उपचार के लिए , 4-6 किलोग्राम ट्राईकोडार्मा विरिडी को 40 किलो  सूखे गोबर की खाद में मिलाकर प्रति एकड़ आखरी  जुताई करते समय छिड़क दे, इससे मिट्टी की फफूंद वा सूत्र कृमि तो मरते ही हैं साथ में खेतो में पड़े फसलो व खरपतवार के सूखे अवशेष सड़कर मिट्टी में मिल जाते हैं जो जीवांश खाद का काम करता हैं , खाड़ी फसलो में छिड़कने के लिए 10  ग्राम ट्राईकोडार्मा विरिडी को एक लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करे इससे धान के ब्लास्ट , मुंग ,उड़द , कद्दू वर्गी आदि की भभूतिया रोग ठीक हो जाता हैं। इसके अलावा जैविक खाद बनाने के दौरान खाद को अच्छे से कम समय में सड़ाने वा उच्च क्वालिटी के खाद बनाने के लिए ट्राईकोडार्मा विरिडी  की पावडर को छिड़क दे  ,जो जैविक अपशिष्ट को मात्र 30 दिन के अन्दर अच्छे से सडा कर अच्छे खाद में परिवर्तित कर देता हैं। 

Traykodarma virdi का खेतो में उपयोग करने से लाभ :-

यह एक जैविक  जीवाणु हैं जो पौधों में होने वाले मृदाजनित बीमारी को नियंत्रित करता हैं तथा मिटटी की भौतिक , जैविक दशा में सुधार करके फसलों की विकास के लिए एक अच्छा माध्यम तैयार करता हैं। जिससे फसलों की गुणवत्ता व उपज में 10-20 प्रतिशत तक की वृद्धि होता हैं। ट्राईकोडार्मा विरिडी की इस्तेमाल से रासायनिक दवाई से मिट्टी, पानी वायु वा अन्य जीव को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता हैं वा फसल उत्पादन की लागात को कम किया जा सकता हैं। इसके अलावा किसान ट्राईकोडार्मा विरिडी का घरेलु सामग्री से उत्पादन कर सकता हैं जिसे खुद अपने फसल में उपयोग कर सकता हैं व अन्य किसानो को भी  बेच सकते हैं जो किसानो के लिए एक आय का स्त्रोत भी बन सकता हैं। 

Production Of Traykodarma virdi ?:-

ट्राईकोडार्मा विरिडी का उत्पादन करना बहुत आसान वा सरल हैं ,जिसे किसान अपने घरेलु काम में आने वाले सामग्री का उपयोग करके  कर सकता हैं। ट्राईकोडार्मा विरिडी की उत्पादन में चावल की छोटे-छोटे टुकड़े जिसे कनकी कहा जाता हैं , का प्रयोग होता हैं , जो किसानो के घर में आसानी से मिल जाता हैं। एक किलो ग्राम कनकी से बने ट्राईकोडार्मा विरिडी  10 किलोग्राम सूखे गोबर की खाद में मिलाने के लिए पर्याप्त होता हैं ,जिसे एक हेक्टेयर की खेत में प्रयोग कर सकते हैं। 

ट्राईकोडार्मा जैव फफूंदनाशी का वृहद्उ त्पादन करने के लिए :-

सबसे पहले साफ एक किलो ग्राम चावल की कनकी ले | 

अब चावल की कनकी को खौलते पानी में डालकर 1-2 मिनट के लिए पकाए और शीघ्र स्टील की छन्नी से जो स्प्रिट से साफ किया गया हो छान ले और हल्का गुनगुना होने तक ठंडा होने दे। 

छोटे -छोटे चौकोन  प्लास्टिक का डिब्बा ले जिसे स्प्रिट से अच्छे से साफ कर ले , गुनगुना किये गए कनकी में 2 ट्राइकोकैप केप्सूल या  ट्राईकोडार्मा कल्चर का एक चमच पावडर को अच्छी से मिला दे , अब इसे प्लास्टिक के डिब्बे में एक सेंटीमीटर ऊपर तक भरे और दबाकर ढकन बंद कर दे। 

इन भरे हुए डिब्बो को एक साफ सुथरा बंद कमरे में अलग अलग एक लाइन से लकड़ी या पत्थर की अलमारी या कबाड़ में रखे ध्यान रहे कमरे का तपमान 25-30 डिग्री से अधिक वा कम ना हो यदि तापमान कम हो तो साफ बोर से डिब्बो को ढक दे और यदि तापमान अधिक हो तो डिब्बो को गीली रेत पर रख दे। 

डिब्बे भरने के तीसरे दिन से ट्राईकोडार्मा फफूंद उगना शुरू हो जायेगा , जो पहले सफ़ेद होगा और बाद में हरा हो जायेगा ,जिसे 7-8 दिन बाद उपयोग करने लायक हो जायेगा। 

अब तैयार ट्राईकोडार्मा को डिब्बे से निकालकर खलबट्टा या मिक्सी की सहायता से बारीक़ पीस कर पावडर बना ले  तथा इसे 100 ग्राम  प्रति एक किलो सड़ी हुई सूखे गोबर की खाद या कंडे की साफ राख में मिलाकर , अपने इच्छा अनुसार थैली में भरकर सील करके छायादार जगहों में भंडार कर ले। 

 अब इसे किसान अपने खेतो में वा अन्य किसानो को बेचने के लिए प्रयोग कर सकते हैं।  बेचने के लिए  बिना राख या खाद में मिलाय ही बेच सकते हैं , लेकिन मृदा उपचार के लिए वा लबे समय तक भंडारित करने के लिए गोबर की खाद में मिलाना जरुरी हैं।  बाकि के लिए किसी भी प्रकार राख या खाद में मिलाने की जरुरत नहीं हैं। 

Traykodarma virdi का उत्पादन करने के लिए बाज़ारो में मिलने वाले Traykodarma virdi  पावडर का भी  ट्राइकोकैप  केप्सूल के स्थान में प्रयोग कर सकते हैं |




मिश्रित खेती वा मिश्रित फसल के लाभ ||टमाटर की जैविक उन्नत खेती || तीखुर की खेती से कमाए लाखो रूपए प्रति एकड़ || जीरा की जैविक खेती || मेथी की जैविक खेती || धनिया की जैविक खेती || जैविक खेती कैसे करे || रसायन मुक्त खेती कैसे करे || Bio Nutrient || जैविक कीटनाशक  || किसान क्रेडिट कार्ड कैसे बनाये || किसान सम्मान का लाभ किसान कैसे ले 

Organic Insecticide या pesticide


जैविक कीटनाशक 

कृषि कार्य में रासायनिक पदार्थो के स्तेमाल से कृषि उत्पाद के साथ-साथ कृषि के लिए लाभकारी जीव , मिट्टी, पानी, वायु को काफी नुकसान पंहुचा हैं जिसका परिणाम यह हुवा की कृषि कार्य को बाधा पहुचाने वाले कीट पतंगों में रासायनिक पदार्थो के प्रति सहनशील पैदा हो चूका हैं जिससे ऐसे जीवो की संख्या में तेजी से विकास हो रहा हैं , जो कृषि के लिए एक बड़ी चुनौती हैं | 
कृषि कार्य में बाधा पहुचाने वाले कीट पतंगों वा अन्य चुनौती को मजबूती से निपटने के लिए जैविक पदार्थ , जैसे की जैविक खाद या उर्वरक , जैविक कीटनाशक , जैविक रोग नाशक |  सबसे आसरकारी हैं , इनके इस्तेमाल से जैव विविधता में संतुलन स्थापित होता हैं , जिससे कृषि के लिए लाभकारी जीवो की संख्या में बढ़ोतरी होता हैं जबकि हानिकारक जीवो  संख्या नियंत्रित होता हैं | जिससे  फसल उत्पादन में लागत कम आता हैं , और अच्छी गुणवत्ता के फसल तैयार होने के कारण देश और विदेशी बाजार में अच्छा मांग होता हैं|

जैविक कीटनाशक क्या हैं  

जैविक कीटनाशक दो या दो से अधिक जैविक पदार्थो को मिक्स करके बनाया जाता हैं , जो कीटो की अंडे ,लार्वा , आदि को नुकसान पहुता हैं , साथ में यह पौधों के लिए जैविक उर्वरक वा हार्मोन्स का भी काम करता हैं , जिससे पौधे में स्वतः ही कीट पतंगों को , रोकने की क्षमता विकसित कर लेता हैं | जैसे की  गौ मूत्र +मदार की पत्ती + तम्बाखू की पत्ती +नीम की तेल  इन सभी को मिक्स करके 7-10 दिन तक सड़ाने के बाद पानी में घोल करके छिडकाव करने से  पत्ती खाने वाला इल्ली  , माहो , आदि किट मर जाते हैं जबकि पौधों को अच्छा पोषक तत्व भी मिल जाता हैं | 

Organic Insecticide  के प्रयोग और फायदे 

  जैविक कीटनाशक का प्रयोग फसल में, फसल बोवाई के बाद कभी भी किया जा सकता हैं , इससे पौधों पर कोई बुरा प्रभाव नही पड़ता हैं, बल्कि इससे पौधों का विकास अच्छा होता हैं तथा पौधों के अन्दर किट बीमारी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करता हैं जो पुरे पौधे के जीवनकाल वा आने वाले फसल के बोवाई के बाद भी पौधे में बना रहता हैं, जैविक कीटनाशक की दूसरी सबसे अच्छी बात यह हैं की इसके हानिकारक प्रभाव अन्य जीवो के लिए बहुत कम या नही भी होता हैं , और इसलिए फसल में जैविक कीटनाशक  छिडकाव करने के 15-24 घंटे बाद  वह फसल सीधे खाने योग्य हो जाता हैं जबकि किट पतंगे 12 घंटे के अन्दर ही मर जाते हैं, और इसप्रकार से सब्जी वाली फसल  को दवाई छिड़कने के बाद बाजार में बेचने के लिए 5-7 दिन का इंतिजार नही करना पड़ता हैं , कैसे करे एक सफल जैविक खेती  इसके लिए किसानो को वर्तमान में विचार जरुर करना चाहिये क्योकि यह समय की  मांग नही बल्कि एक सुरक्षित खेती करने का तरीका हैं |

Organic Insecticide बनाने के तरीके :-

जैविक कीटनाशक मुख्य रूप से दो प्रकार से बनाया जाता हैं , अवसान विधि और सामग्रियों को सड़ाकर , अवसान विधि में पौधों के जड़, तना, छाल , पत्ती  आदि को एक विशेष प्रक्रिया के माध्यम से रस निकाला जाता हैं , जिसका प्रयोग फसलो के किटो को मरने के लिए किया जाता हैं यह बहुत तेज असरकारी होता हैं तथा इसकी बहुत कम मात्रा (लगभग 1 लीटर दवाई ) एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होता हैं , जबकि सड़ाकर बनाने वाले जैविक कीटनाशक में किसान अपने फार्म में मौजूद जैसे की , गौ मूत्र नीम , करंज की पत्ती या खली या फिर तेल आदि  को आपस में मिलाकर कुछ दिन तक सड़ने के लिए रख देते हैं , और उसके बाद इस मिक्सचर को  छान कर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करते हैं , इस में दवाई की प्रति एकड़ 15-20 किलो की जरुरत पड़ता हैं |

घर में Organic Insecticide कैसे बनाये :-

घरेलु स्तर पर  अपने फसल की सुरक्षा के लिए जैविक कीटनाशक बड़ी आसानी से बना सकते हैं, जो किसानो के आसपास ही मौजूद होता हैं , जैसे की गौ मूत्र, नीम , करंज , लहसुन , हल्दी , छाछ या मट्ठा , तम्बाखू  आदि  ऐसे हैं जिसे कुछ दिन सड़ाने के बाद एक बेहतरीन कीटनाशक के रूप में बदला जा सकता हैं , जो फसलो और अन्य जीवो के सुरक्षित होता हैं :-

पत्ती  खाने वाले इल्ली , फुल या तनो की रस चूसने वाले कीटो की नियंत्रण के लिए , 10 लीटर गौ मूत्र को एक मटके में भर ले  इसमें 2 किलो  नीम, की पत्ती , 2 किलो मदार की पत्ती ,2 किलो सीताफल की पत्ती, 200 ग्राम तम्बाखू को  सुखा कर या तम्बाखू को छोड़कर हरी अवस्था में सब को एक साथ मिलाकर अच्छे से कुच कर लुगदी जैसे बनाकर गौ मूत्र से भरे मटके में डाल दे और मटके के मुख को पत्ते या कपडे से कस कर बांध दे अब इसे 10-15 दिन तक सड़ने के लिए रख दे ध्यान रहे बीच-बीच में इस मिक्सचर को लकड़ी की डंडे से सीधी वा उल्टी दिशा में गुमा कर मिक्स करते रहे , 15 दिन बाद इस मिक्सचर को 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करे , इसके अलावा एक किलो ग्राम लहसुन को अच्छे से कुंच कर पेस्ट बना ले अब इसमें 500 ग्राम शुद्ध हल्दी पावडर, एक लीटर नीम या करंज के तेल में  डाल कर 7-10 दिन सड़ने के लिए छोड़ दे 10 दिन बाद जरुरत के हिसाब से या फिर 100 लीटर पानी में घोल बनाकर फसलो में छिडकाव करे |

इस दवाई से पत्ती खाने वाले किट , फली बेधक , माहो , पत्ती लपेटने वाले किट , वा  समस्त प्रकार के किट के नियंत्रण के लिए अति उपयोगी हैं |

इसके अलावा 1 लीटर पुराने छाछ या मट्ठे में 250 ग्राम तम्बाखू के पावडर  , 500 मिलीलीटर करंज के तेल और 1 लीटर गौ मूत्र को मिलाकर 7 दिन के लिए सड़ाने के लिए छोड़ दे अब इसे 50 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करे इससे फसलो की उपरी सतह पर रहने वाले समस्त प्रकार की किट को नियंत्रित करता हैं |

इसके अलावा दीमक ,तना छेदक के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए नीम या करंज की खली को फसल बोने से पहले खेत में अच्छे से मिला दे , ये फसल को खाद के साथ कीटनाशक का भी काम करता हैं , इसके अलावा बीज को बोने से पहले नीम या करंज के तेल से उपचार करके बोने से दीमक और जड़ गलने की समस्या में कमी पाई गई हैं | 

बाजारों में मिलने वाले Organic Insecticide :-

इस प्रकार की दवाई पौधों की  जड़, तना, छाल , पत्ती  आदि को एक विशेष प्रक्रिया के माध्यम से रस निकाल कर बनाया जाता हैं, जो एक ही दवाई कई प्रकार का काम करता हैं , जैसे की फुल वा फलो की संख्या में वृद्धि करता हैं , पौधों की  रोग किट प्रतिरोधक क्षमता में विकास करता हैं |  इस प्रकार के उत्पाद में हमारे द्वारा प्रयोग किया गया प्रमुख उत्पाद हैं |

Protecto :- 
यह हर्बल एंटी एक्स-अर्क उन्नत पर आधारित उत्पाद हैं | यह भूमि जनित , वातावरण जनित , पौधे और बीज जनित रोगों की रोकथाम करता हैं साथ में यह सभी प्रकार की कीटो को मारने का काम करता हैं और फसल को सुरक्षित रखता हैं तथा किटो को फसलो में फिर से हमला करने से रोकता हैं |इसे सभी प्रकार की फसल में प्रयोग कर सकते हैं इस दवाई की 1-2 ml दवाई को 1 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव कर सकते हैं 

Protecto

विजया 666:-

यह हर्बल प्रजातियों के पौधे से निस्सरण से बनाया गया हैं जो सभी प्रकार के प्राम्भिक विकास स्थिति के किटो को जैसे इल्ली सुंडी रस चूसने वाले किट आदि को नियंत्रित करता हैं तथा पौधों का विकास बहुत अच्छे से होता हैं वा किटो के प्रति पप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता हैं जिससे उत्पादन में बढ़ोतरी देखा गया हैं , इस दवाई को 2.5 ml को 1 लीटर पानी के हिसाब से घोल बनकर छिडकाव कर सकते हैं , यह सभी फसलो के लिए उपयुक्त हैं तथा छिडकाव के 12-15 घंटे बाद फसलो के फल पत्ती आदि को खा सकते हैं , 


इसके अलावा और कुछ दवाई हैं जो बहुत असरकारी हैं :-

ये दवाई भी किटो को मारने के लिए बहुत असरकारी हैं 

फसलो में जैव पदार्थो का कीट नियंत्रण के लिए उपयोग :- 

प्रकृति में कुछ ऐसे भी जीव हैं जो फसल को नुकसान पहुचाने वाले जीव के अंडे लार्वा, एडल्ट को खाकर या उसमे रोग उत्पन्न करके उसे नस्ट कर देते हैं , जिससे फसल एक लबे समय के लिए सुरक्षित हो जाता हैं | उन जीवो में प्रमुख हैं :-


एन.पी.वी (न्यूक्लियर पॉलीहेड्रासिस वायरस)

न्यूक्लियर पॉलीहेड्रासिस वायरस (एन.पी.वी.) पर आधारित हरी सूंडी़ (हेलिकोवर्पा आर्मीजे़रा) अथवा तम्बाकू सूंड़ी (स्पोडाप्टेरा लिटूरा) का जैविक कीटनाशक है जो तरल रूप में उपलब्ध है। इसमें वायरस कण होते हैं जिनसे सूंडी द्वारा खाने या सम्पर्क में आने पर सूंडियों का शरीर 2 से 4 दिन के भीतर गाढ़ा भूरा फूला हुआ व सड़ा हो जाता हे, सफेद तरल पदार्थ निकलता है व मृत्यु हो जाती है। रोग ग्रसित तथा मरी हुई सूंडियां पत्तियों एवं टहनियों पर लटकी हुई पाई जाती हैं। 

एन.पी.वी. कपास, फूलगोभी, टमाटर, मिर्च, भिण्डी, मटर, मूंगफली, सूर्यमुखी, अरहर, चना, मोटा अनाज, तम्बाकू एवं फूलों को नुकसान से बचाता है। प्रयोग करने से पूर्व 1 मिली एन.पी.वी. को 1 लीटर पानी में घोल बनाये तथा ऐसे घोल को 250 से 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 12 से 15 दिनों के अंतराल पर 2 से 3 छिड़काव फसलों के लिए उपयोगी हैं। छिड़काव सांयकाल को किया जाय तथा ध्यान रहे कि लार्वा की प्रारम्भिक शैशवावस्था में अथवा अंडा देने की स्थिति में प्रथम छिड़काव किया जाय। एन.पी.वी. की सेल्फ लाइफ 01 माह है।

ब्यूवेरिया बैसियाना

यह एक फफूंदी जनित उत्पाद है, जो विभिन्न प्रकार के फुदकों को नियंत्रित करता है। यह लेपीडोप्टेरा कुल के कैटरपिलर, जिसमें फली छेदक (हेलियोथिस), स्पोडाप्टेरा, छेदक तथा बाल वाले कैटरपिलर सम्मिलित हैं, पर प्रभावी है तथा छिड़काव होने पर उनमें बीमारी पैदा कर देता है जिससे कीड़े पंगु हो जाते है और निष्क्रिय होकर मर जाते हैं। यह विभिन्न प्रकार के फसलों फलों एवं सब्जियों में लगने वाले फली बेधक पत्ती लपेटक, पत्ती खाने वाले कीट, भूमि में दीमक एवं सफेद गीडार आदि की रोकथाम के लिए लाभकारी है।

प्रयोग विधि

भूमि शोधन हेतु ब्यूवेरिया बैसियान की 2.5 किग्रा० प्रति हे० लगभग 25 किग्रा० गोबर की खाद् में मिलाकर अन्तिम जोताई के समय प्रयोग करना चाहिये।खाई फसल में कीट नियंत्रण हेतु 2.5 किग्रा० प्रति हे० की दर से 400-500 लीटर पानी में घोलकर सायंकाल छिड़काव करें। जिस आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर दोहराया जा सकता है। इसकी सेल्फ लाईफ 1 वर्ष है।

बी. टी. (बेसिलस थ्यूनिरजिएन्सिस)

5 प्रतिशत डब्लू.पी. बी.टी. एक बैक्टिरिया आधारित जैविक कीटनाशक है जो सूंडियों पर तत्काल प्रभाव डालता है। इससे सूंड़ियों पर लकवा, आंतों का फटना, भूखापन तथा संक्रमण होता है तथा वे दो से तीन दिन में मर जाती है। यह पाउडर एवं तरल दोनों रूपों में उपलब्ध है। इसका प्रयोग मटर, चना, कपास, अरहर, मूंगफली, सुरजमुखी, धान फूलगोभी, पत्ता गोभी, टमाटर, बैंगन, मिर्च तथा भिण्डी में उपयोगी एवं प्रभावशाली है। बी.टी. का प्रयोग छिड़काव द्वारा किया जाता है। प्रति हेक्टर 0.5 से 1.0 किग्रा० मात्रा को 500 से 700 लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर दो से तीन बार छिड़काव लाभकारी है। इसकी सेल्फ लाइफ 1 वर्ष है।

क्राइसोपर्ला

क्राइसोपर्ला नामक हरे कीट जिनकी लम्बाई 1 से 1.3 सेमी० ०, पंख लम्बे हल्के रंग के पारदर्शी, सुनहरी आंखे तथा 5 एन्टिना धारक होते है, के लार्वा सफेद मक्खी, माहूँ जैसिड थ्रिप्स आदि के अंडो तथा लार्वा को खा जाते है, को प्रभावित खेतों में डाला जाता है, इनका जीवन चक्र निम्न प्रकार है:-

अंडा अवधि 3-4 दिन लार्वा अवधि 11-13 दिन

प्यूपा अवधि 5-7 दिन व्यस्कता 35 दिन

अंड क्षमता 300-400 अंडे - -

क्राइसोपर्ला के अंडों को कोरसियरा के अंडों के साथ लकड़ी के बुरादे में बाक्स में आपूर्ति किया जाता है। इनके लार्वा कोरसियरा के अंडो को खाकर वयस्क बनते है। विभिन्न फसलों में क्राइसोपर्ला के 50000 से 100000 लार्वा या 500 से 1000 वयस्क प्रति हेक्टर डालने से कीटो का नियंत्रण भली प्रकार से होता है। सामान्यतः दो बार इन्हें छोड़ना चाहिए। क्राइसोपर्ला के अंडों को 10 से 15 डिग्री से पर रेफ्रीजेरेटर में 15 दिनों तक रखा जा सकता है। सामान्य तापमान पर इनका जीवन चक्र प्रारम्भ हो जाता है।

ट्राइकोडरमा

ट्राइकोडरमा एक घुलनशील जैविक फफूँदीनाशक है जो ट्राइकोडरमा विरडी या ट्राइकोडरमा हरजिएनम पर आधारित है। ट्राइकोडरमा फसलों में जड़ तथा तना गलन/सड़न, उकठा (फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम, स्क्लेरोशिया डायलेक्टेमिया) जो फफूंद जनित है, के नियंत्रण हेतु लाभप्रद पाया गया है। धान, गेहूं, दलहनी फसलें, गन्ना, कपास, सब्जियों, फलों एवं फल वृक्षों पर रोगों से यह प्रभावकारी रोकथाम करता है।

ट्राइकोडरमा के कवक तन्तु फसल के नुकसानदायक फफूँदी के कवक तन्तुओं को लपेट कर या सीधे अन्दर घुसकर उनका जीवन रस चूस लेते है और नुकसानदायक फफूंदों का नाश करते हैं। इसके अतिरिक्त भोजन स्पर्धा के द्वारा कुछ ऐसे विषाक्त पदार्थ का स्राव करते हैं जो बीजों के चारो और सुरक्षा दीवार बनाकर हानिकारक फफूंदों से सुरक्षा देते हैं। ट्राइकोडरमा से बीजों में अंकुरण अच्छा होकर फसलें फफूंद जनित रोगों से मुक्त रहती हैं एवं उनकी नर्सरी से ही वृद्धि अच्छी होती है।

Traykodarma का प्रयोग विधि :-

कन्द/कॉर्म/राइजोम/नर्सरी पौध का उपचार 5 ग्राम ट्राइकोडरमा को एक लीटर पानी में घोल बनाकर डुबोकर करना चाहिए तत्पश्चात् बुवाई/रोपाई की जाय।बीज शोधन हेतु 4 ग्राम ट्राइकोडरमा प्रति किलोग्राम बीज में सूखा मिला कर बुवाई की जाय।भूमि शोधन हेतु एक किलोगा्रम ट्राइकोडरमा केा 25 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर एक सप्ताह तक छाया में सुखाने के उपरान्त बुवाई के पूर्व प्रति एकड़ प्रयोग किया जाय।बहुवर्षीय पेड़ों के जड़ के चारो ओर गड्ढा खोदकर 100 ग्राम ट्राइकोडरमा पाउडर केा मिट्टी में सीधे या गोबर/कम्पोस्ट की खाद के साथ मिला कर दिया जाय।खड़ी फसल में फफूंदजनित रोग के नियंत्रण हेतु 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से 400-500 लीटर पानी में घोलकर सायंकाल छिडकाव करें। जिससे आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर दोहराया जा सकता है।

यह एक जैविक उत्पाद है किन्तु खुले घावों, श्वसन तंत्र एवं आंखों के लिए नुकसानदायक है। अतः इसके प्रयोग समय सावधानियां बरतनी चाहिए। इसके प्रयोग से पहले या बाद में किसी रासायनिक फफूँदनाशक का प्रयोग न किया जाय। ट्राइकोडरमा की सेल्फ लाइफ एक वर्ष है।

Organic pesticide के लिए Traykodarma का उत्पादन कैसे करे ?


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 Chemical Free Farming कैसे करे 


लगातार खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशक के प्रयोग से , खेती पर अधिक खर्च होता हैं ,जबकि  किसी फसल को उगाने में होने वाले कुल खर्च की तुलना में उस फसल से होने वाले शुद्ध आय बहुत ही कम होता हैं , जिससे किसान कृषि को  सिर्फ अपने जीवन यापन करने का साधान ही मानता हैं | और अपने बच्चो को खेती ना करे इसलिए  पढ़ा लिखाकर, नौकरी करने के लिए तैयार करते हैं जिससे परिवार की आय में वृद्धि हो और जीवन यापन का स्तर ऊपर उठ सके |

किसी भी व्यक्ति के लिए शिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य हैं , इसलिए भारत की सविधान में डॉ.भीम राव अम्बेडकर ने  सभी को समानता का अधिकार दिलाया हैं , किन्तु शिक्षा का मतलब किताबी ज्ञान को रट कर नौकरी करना कदापि नही हैं , शिक्षा का मतलब हैं , किसी भी चीज को बारीकी से समझने में पारंगत होना , और उसका उपयोग अपने जीवन ,परिवार ,समाज को बेहतर बनाने में करना  हैं | आज जो दुनिया भर में छोटे -बड़े उद्योग पति हैं क्या वह पढ़ लिखकर नौकरी कर रहे हैं ?  नही बल्कि वो लोग पढ़ लिख कर  लोगो की उस जरुरत को बारीकी से समझा जो उनके लिए लाभदायक तो हैं ही साथ में दुनिया भर के लोगो की जरुरत को पूरा कर सके |

ठीक ऐसे ही हमारे किसान भाई या युवा पीढ़ी हैं उन्हें भी भविष्य की जरुरत को समझ कर खेती करने के तरीके और खेती से उत्पादन होने वाले उत्पाद को बेचने के तरीके में बदलाव करना जरुरी हैं , ताकि खेती में लोगो को अधिक लाभ हो , और अधिक से अधिक लोगो को रोजगार मिल सके |

मेरे प्रिया किसान भाई, और युवा मित्रो  किसानो की हाथ में वो ताकत हैं जिसके सामने बड़े से बड़े उद्योग भी कुछ नही हैं ! किसी भी जीव को स्वस्थ जीवित रहने के लिए स्वस्थ खाना की जरुरत होता हैं , बिना खाना के कोई भी स्वस्थ और ना ही जीवित रह सकता हैं , ऐसे में कृषि को एक बड़ा उद्योग में बदला जा सकता हैं , जो लोगो को खाने पीने की सामग्री उपलब्ध करा सकता हैं |

उदहारण के रूप में देखे तो  आज बाजार में जितने भी खाद्य पदार्थ हैं , वो सभी किसानो के द्वारा पैदा किया हुवा उत्पाद का परिवर्तित रूप हैं , जिसे कोई किसान अपने हाथो से ना बनाकर , किसी व्यक्ति की कम्पनी दुवारा निर्मित होता हैं , जैसे की आलू किसान उगाता हैं , लेकिन चिप्स कम्पनी बनाता हैं , गेहू किसान उगाता हैं , लेकिन ,आटा ,नुडल्स , आदि कम्पनी बनाता हैं , किसान धान उगाता हैं , लेकिन उसके धान का चावल निकालकर कम्पनी कई ब्रांड बना देता हैं , किसान तिलहन फसल उगाता हैं लेकिन कम्पनी उस फसल से तेल निकलता हैं |

 ऐसे हजारो लाखो प्रोडक्ट हैं जो किसानो दुवारा उगाये गए फसल से तैयार होते हैं , यदि किसान फसल उगाने के बाद सीधे उस उत्पाद को ना बेच कर उसे अन्य उत्पाद में बदलकर बेचे तो ज्यादा लाभ कमा सकता हैं जैसे की यदि किसान धान उगाता हैं तो उसका चावल बनाये जिससे चावल का भाव अधिक मिलेगा  , भूसा से तेल निकाले जिसका प्राइस अलग से मिलेगा , उसके बाद बचे भूसे को अपने खेत में खाद के रूप में  प्रयोग करे , अब इसमें किसान को 3 फायदा हुवा एक चावल मिला यदि चाहे तो चावल का आटा , वा अन्य उत्पाद बनाकर बेच सकते हैं  दूसरा तेल मिला  और तीसरा खाद मिला | लेकिन यह पर एक किसान के लिए बहुत बड़ी समस्या हैं की इन सब को करने के लिए मशीनों की जरुरत होता हैं और उसके लिए पूजी की जरुरत होता हैं , साथ में यह से निकलने वाले उत्पाद को बेचने की व्यवस्था करना , यदि इस काम को एक गाव की सभी किसान या फिर  आसपास गाव के जीतने भी  किसान हैं वो सब मिलकर एक राइस मिल प्लांट लगाये और इस काम को सही तरीके से करे तो यह 100 % संभव हैं | 

कृषि को लाभप्रद बनाने का दूसरा सबसे बड़ा माध्यम हैं की कृषि उत्पाद को नियत्रित करे , जिससे किसी भी उत्पाद का हर समय अधिकतम मांग बना रहे , जिससे किसानो को अधिक मूल्य प्राप्त होगा , इसी  बात को हर  छोटी -बड़ी कम्पनी ध्यान रखता हैं जब कम्पनी द्वारा उत्पादित किसी वास्तु का लोगो में अधिक मांग होता हैं तो उस मांग के बराबर या उस मांग से थोडा सा अधिक वास्तु का उत्पादन करता हैं और जब लोगो में मांग कम  होता हैं तो अपने वास्तु का निर्माण भी कम कर देता हैं ,जिससे उस वास्तु को बनाने में होने वाले कुल खर्च में अधिक लाभ सके  हैं |

लेकिन कृषि एक ऐसा क्षेत्र हैं जहा से उत्पादित होने वाले कृषि उत्पाद के बिना किसी का गुजारा भी नही हो सकता, ऐसे में किसान अपने उत्पादन को नियत्रित करके अच्छे गुणवत्ता वाली फसल को उगाये वा खुद से अपने उत्पाद को अन्य उत्पाद में बदलकर मार्केटिंग करे |

लगातार खेती कार्य में रासायनिक खाद वा कीटनाशक के प्रयोग से फसल उत्पाद की गुणवत्ता में बहुत ही कमी आई हैं ऐसे में  किसानो को नियंत्रित फसल उत्पादन में रसायन मुक्त खेती बहुत ज्यादा लाभदायक हैं - इससे रासायनिक फसल उत्पादन में होने वाले कुल खर्च में 30-40%की कमी आता हैं , जबकि फसल की गुणवता अच्छी होने के कारण शुद्ध लाभ में 70% तक की वृद्धि होता हैं |


Chemical मुक्त खेती भी हैं संभव 

 फसलो में रासायनिक खाद और कीटनाशक का प्रयोग करने से मिट्टी ,पानी तो दूषित होता ही हैं साथ में खाद और कीटनाशक को बनाने में प्रयोग होने वाले पदार्थ के अवशेष को पौधे जड़ वा पत्ती  द्वारा अवशोषित कर लेता हैं , जो खाने के माध्यम से मानव वा पशु के शारीर में पहुच जाता हैं और धीरे-धीरे मांसपेशियों में जहरीले पदार्थ जमा होते रहने के कारण  खतरनाक बीमारी उत्पन्न होता हैं , कैंसर , अल्सर, हार्ट अटेक , लोकवा , आदि बीमारी रासायनिक खेती के परिणाम हैं | 

सोसायटी फॉर पेस्टिसाइड , साइंसेस ने ठीक ही कहा हैं , "न  केवल हम अपने आप को जहर खिला रहे हैं , बल्कि आने वाले पीढ़ी का भविष्य भी खतरे में डाल रहे हैं | "

एक समय था जब रासायनिक खाद कीटनाशक का प्रयोग नही होता था ,तब अनाज ,दाल , वा अन्य सभी फसलो में एक शानदार खुशबू के साथ लाजवाब स्वाद होता था , जिससे लोग काफी अच्छा जीवन जीते थे , किन्तु तेज गति से जनसंख्या बढ़ने के कारण हरित क्रांति की शुरुवात हुवा जिसका मुख्य लक्षा किसी भी तरह से बढती हुई जनसंख्या के लिए भोजन की पूर्ति हो | और इसमें रासायनिक पदार्थो के उपयोग ने अपनी बड़ी भूमिका निभाया , और किसानो ने अपनी खेती में जल्द ही बड़ी मात्र में रसायन का प्रयोग किये , जिससे शुरुवात में किसानो को अच्छा लाभ हवा ,किन्तु समय के साथ-साथ , मिट्टी की भौतिक , जैविक दशा खराब वा फसलो को नुकसान पहुचाने वाले कीटो में रासायनिक दवाओ के प्रति सहनशील उत्पन्न होने लगा हैं , जबकि इन कीटो को खाने वाले मित्रा जीव नस्ट हो गए , जिससे कृषि में अधिक लगत लगाने के बावजूद भी उत्पादन कम हो रहा हैं जो  किसानो के लिए बड़ी मुश्किल का विषय रह गया हैं |

उपरोक्त समस्या को देखते हुए रसायन मुक्त , जैविक खेती को अपनाना जरुरी हो गया हैं , और यह तभी संभव हैं जब किसान अपने आसपास मित्र जीवो का सरंक्षण , वा खेती में जैविक खाद का प्रयोग करेंगे |

मित्र जीव क्या हैं ?

वे जीव जो फसलो में लगने वाले रोग वा कीट को खाकर नस्ट करते हैं  जैसे की मेढक , केकड़ा ,साप , गिरगिट , चिडया आदि हैं, जो कीट पतंगों के अड़े, लार्वा, एडल्ट को खा कर नस्ट कर देते हैं  , जबकि केचुवा सुत्रक्रिमी की अंडे लार्वा को खाकर नस्ट कर देता हैं | 

जैविक खाद :-

ऐसा खाद जो जीवो के अवशेषो को सड़ाकर बनाया जाता हैं जैविक खाद कहलाता हैं , जैसे की गोबर की खाद , कम्पोस्ट की खाद, केचुए  की खाद , वा हरी खाद प्रमुख हैं  इसके अलावा आज जैविक पदार्थो को संश्लेषित करके जैव उर्वरक  भी बनाया जा रहा हैं जो फसलो के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो रहा हैं |

वर्तमान में बहुत सारे किसान पशुपालन नही करते हैं जिससे उनके लिए जैविक खेती करना मुश्किल लग सकता हैं लेकिन इसका भी समाधान हैं , यदि किसानो के पास पशु नही हैं और वो जैविक खेती करना चाहते हैं तो वो लोग कम्पोस्ट खाद, केचुए की खाद , या फिर हरी खाद का इस्तेमाल कर सकते हैं . 

* कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए किसान अपने फसल अवशेष वा खेत में उगे खरपतवार का उपयोग कर सकता हैं , इससे किसान को अपने घरो का कचरा या फसल अवशेष को बेहतर खाद के रूप में इस्तेमाल कर सकता हैं , खाद बनाने के लिए आवश्कता अनुसार लबाई चौड़ाई  और गहराई कम से कम 1 मीटर और अधिकतम 2 मीटर   खेत के एक कोने में  गढ़ा खोद ले अब इसमें जितने भी फसल अवशेष वा खरपतवार  हैं उसे डाल दे, यदि हो सके तो ट्राईकोडारमा पावडर का छिड़कर भी कर दे , और फिर पानी का छिडकाव करके मिट्टी से ढक दे , 60-90 दिन में खाद प्रयोग के लिए तैयार हो जाता हैं .

* केचुए की खाद बनाने के लिए किसान अपने फसल अवशेष के साथ गोबर का प्रयोग कर सकता हैं का प्रयोग कर सकता हैं , केचुए की खाद बनाने के लिए , टैंक का निर्माण किया जाता हैं जिसमे गोबर और अन्य जैविक पदार्थो को मिक्स करके भरा जाता हैं तथा इसमें आइसीनिया फेटिडा नामक केचुवा को  छोड़ देते हैं जो टैंक में भरे सभी जैविक पदार्थो को खाकर खाद में बादल देता हैं , इसका व्यावसायिक उत्पादन भी किया जा सकता हैं जो मार्केट में 10-20 रूपए प्रति किलो बिकता हैं .

* हरी खाद इसमें किसान अपने खेत में ढेचा , ज्वार , बाजरा , मुंग ,उड़द, मक्का , सन जुट आदि की बीज को खेत में छिड़ककर बो दिया जाता हैं तथा  पौधों में अच्छी मात्रा में पत्ती हो जाने के बाद खेत को जोत कर सभी फसल को मिट्टी में दबा दिया जाता हैं तथा पानी का छिडकाव कर दिया जाता हैं जिससे 30-45 दिन में खाद बनकर मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाता हैं , यह विधि उस स्थान पर करना चाहिये जहा पर पानी की अच्छी व्यवस्था होना चाहिए |

* इसके अलावा तिलहन फसलो के खली , वा हड्डी का चुरा भी खाद के रूप में प्रयोग किया जाता हैं, जिससे फसल को सभी प्रकार की पोषक तत्व आसानी से मिल जाता हैं , खली के प्रयोग से फसलो में कीट वा बीमारी का प्रकोप बहुत कम हो जाता हैं  |

* धान की फसल के लिए एजोला , हरी काई , बहुत अच्छा खाद का काम करता हैं , खास करके उस स्थान में जंहा , लाइन में रोपाई या बोवाई की जाती हैं तथा धान की फसल में ब्याशी किया जाता हैं , पानी भरे खेत में खेत की एक चौथाई हिस्से में  एजोला  या हरी काई को छिडक दिया जाता हैं जो 15 दिनों में पुरे खेत में फ़ैल जाता हैं , इसके बाद इसे पैडी विडर या हल चला कर मिट्टी में दबा दे , इसमें बड़ी मात्रा में नाइट्रोजन , फास्फोरस , वा अन्य पोषक तत्वा पौधों को मिल जाता हैं ,

* सूखे खेत या दलहनी,तिलहनी फसल के लिए  राइजोबियम , वा फास्फोरस घोलक जीवाणु का उपयोग किया जा सकता हैं  राइजोबियम जीवाणु  वायुमंडल की नत्रोजन को मिट्टी में मिक्स करता हैं जिससे पौधों का विकास अच्छा होता हैं जबकि फास्फोरस घोलक जीवाणु मिट्टी से दूर पड़े फास्फोरस को घोलकर पौधों को उपलब्ध कराता हैं . 

* खाड़ी फसल में छिडकाव के लिए जैव अमृत का भी प्रयोग किया जाता हैं , जैव अमृत बनाने के लिए  10 लीटर गो मूत्र ,10 किलो ग्राम गोबर, 5 किलोग्राम बड़ी झाड़ के नीचे की मिट्टी , 2 किलोग्राम गुड ,2 किलोग्राम बेसन , इन सभी चीजो को एक मटके में मिक्स करके भर दे और मटके के मुह को पत्ते से ढक कर बांध दे , इसे 7 दिन तक सड़ने से , ध्यान रहे हर 1 दिन बाद सुबह शाम  मिक्स को लकड़ी के डंडे से उल्टे व सीधे दिशे में मिक्स करते रहे , जब सात दिन पूरा हो जाये उसके बाद इस मिक्स को जाली से छान ले और 1 किलो ग्राम  मात्रा को 10 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करे , इससे फसल का विकास बहुत अच्छे से होता हैं साथ में कीटो का प्रकोप को नियंत्रित करता हैं | 

इस प्रकार से किसान भाई अपने खेतो में Chemical Free Farming  कर सकते हैं और फिजूल की खर्च को बचाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं .



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 Soil Bio Nutrient क्या हैं और इसका खेती में प्रयोग 
Bio Soil Nutrient | जैविक मृदा उर्वरक 


जैविक रूप से भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए  Soil Bio Nutrient का प्रयोग करना चाहिए , क्योकि  इसके प्रयोग से हानिकारक कीट बीमारी को आसानी से  कंट्रोल किया जा सकता , साथ ही साथ मिट्टी की स्वस्था को भी बेहतर  रखा जा सकता हैं , Bio soil  nutrient का प्रयोग करने से फसल की गुणवत्ता में सुधार  होता  हैं और कम लगत में अधिक वा अच्छी  फसल लिया जा सकता हैं , जिसका बाजार भाव भी अच्छा मिलता  , अब सरकार भी जैविक खेती करने के लिए प्रोत्सहन कर रहा हैं |

कार्बनिक खाद , या जैविक पदार्थो से निर्मित उर्वरको का प्रयोग करने से मिट्टी द्वारा उत्पन्न होने वाले हानिकारक कीड़ो के जीवन जीवन चक्र पर  बुरा प्रभाव डालता हैं जिससे इन कीटो की संख्या में कमी आता  हैं और फसल सुरक्षित हो जाता हैं | 
इसी प्रकार से मृदा जनित बीमारी का भी अंत हो जाता हैं ,  इस प्रकार से कीट, बीमारी को नियंत्रित करने के लिए हानिकारक रासायनिक दवाओ का प्रयोग  करना नही पड़ता जिससे एक तरफ तो किसानो की पैसे बचते ही हैं   साथ में लाभदायक जीव जंतु को भी बचाते हैं जो फसलो को नुकसान पहुचने वाले कीड़ो को खा कर नस्ट करते हैं, किसान जब फसल उगाने के लिए रासायनिक खाद जैसे की , सुपर फास्फेट , यूरिया , DAP आदि का प्रयोग करता हैं ,तो इससे फसल बहुत अच्छे से कम समय में विकास तो कर लेता हैं लेकिन , कीट बीमारी की मार को सहन करने की क्षमता बहुत कम होता हैं जिससे किसान दवाई खरीदने के लिए अतरिक्त पैसे खर्च करता हैं , 
इसके अलावा रासायनिक खाद या उर्वरक मिट्टी को नीचे से  कड़ा कर देता हैं जिसके कारण जमीन के अन्दर पानी का रिसाव बंद होने लगता हैं , खेत से पैदा होने वाले फसल में उन प्रयोग होने वाले उर्वरक का अंश भी रह जाता हैं जो खाने वाले के अंदर जा कर शारीर में कई बीमारी को जन्म दे देता हैं | 

Bio soil Nutrient क्या हैं ?

Bio Soil Nutrient ,जैविक पदार्थो से बनाया गया उर्वरक हैं जो भूमि की उर्वरक क्षमता को बढ़ता हैं , मृदा की भौतिक, जैविक , गुणवत्ता को बेहतर बनाता हैं , जिससे मिट्टी में जल धारण करने की क्षमता बढ़ता हैं , मिट्टी में लाभकारी जीवो की संख्या में बढ़ोतरी होता हैं , जो किसी भी फसल को उगाने के लिए उपयुक्त होता हैं | 

जैविक उर्वरक और जैविक खाद में अंतर 

 जैविक उर्वरक , जैविक पदार्थो को संश्लेषित करके बनाया जाता हैं , जो तरल और ठोस दोनों अवस्था में हो सकता हैं , जबकि जैविक खाद , जीवो के अवशेष या पदार्थो को गढ़े में सडा कर बनाया जाता हैं जो ठोस रूप में होता हैं जैसे की गोबर की खाद , कम्पोस्ट की खाद , केचुए की खाद और इसे प्रयः फसल बोने के पहले ही खेत में डाला जाता हैं  |

जैविक उर्वरक को, जैविक खाद के साथ मिलाकर भी खेत में डाल सकते हैं और खड़ी फसल में भी छिडकाव कर सकते हैं , किन्तु खड़ी फसल में छिडकाव करने के लिए , स्प्रे या अन्य जैविक खाद जैसे की केचुए की खाद में मिलाकर प्रयोग किया जाता हैं , इसके अलावा कई ऐसे जैविक उर्वरक भी हैं जिसे यूरिया ,DAP के साथ भी मिलाकर प्रयोग किया जा सकता हैं |

प्रमुख जैविक उर्वरक :-

 

Soil Bio Nutrient Gold

प्रयोग विधि :-

यह उर्वरक  घोल के रूप में आता हैं, जो  पौधों के लिए जरुरी NPK पोषक तत्व की कमी को पूरा करने में सक्षम हैं | जो वनस्पति में सुधार करने के साथ ही साथ पादप प्रजनन की क्रिया को बढ़ाता हैं , इसका प्रयोग फसल के किसी भी अवस्था में तथा लगभग सभी प्रकार की फसल में किया जा सकता हैं | 2 ml को एक लीटर पानी में घोल कर के  छिडकाव किया जाता हैं , यह क्रिया 15 दिन के अंतरल पर दोहरा दे इससे इसका रिजल्ट अच्छा आता हैं | 

फायदे :-

यह वनस्पति विकास विशेष रूप से पत्ते , तना , शाखाओं और पत्तियों को पीला होने से रोकता हैं | जड़ वृद्धि बीज अंकुरण और फुल को उतेजित करता हैं | इसके अलावा यह रोग प्रति रोधक के साथ साथ मिट्टी की जलधारण क्षमता को बढ़ाता हैं मिट्टी को मुलायम बनाता हैं ,पौधे में आवश्यक प्रोटीन बनाने में मदद करता हैं जिससे अधिक संख्या में फुल फल लगते हैं |

Soil  Black  Bio Nutrient


प्रयोग विधि :-

यह उर्वरक ठोस रूप में आता हैं जो चाय पत्ती के सामान काला दिखाई देता हैं , इसमें 95% ह्यूमिक एसिड तथा 5 % फेल्विक एसिड  तथा 60 प्रकार के एक्टिव बायो सूक्ष्म तत्व होता हैं , जो  पानी में शीघ्र घुलनशील होता हैं , जिससे यह नमी मिलते ही घुल जाता हैं , इस उर्वरक को जैविक खाद वा रासायनिक की किसी भी खाद में मिलाकर, वा कीटनाशक दवाई में मिलाकर , या फिर टपक सिचाई के माध्यम से  फसल की किसी भी अवस्था में  किया जा सकता हैं, इसके अलावा इसे .0.5-1 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी में घोल करके खाड़ी फसलो में छिडकाव कर सकते हैं , तथा इसका उपयोग सभी प्रकार की फसल में किया जा सकता हैं | यह उर्वरक 50 -100 ग्राम एक एकड़ के लिए पर्याप्त होता हैं |

फायदे :-

मिट्टी की सरचना में सुधार करता हैं व जल धारण क्षमता को बढ़ाता हैं  पौधों में बीज अंकुरण की क्षमता को बढ़ाता हैं एवं जड़ो का शीघ्र विकास करता हैं ,जिससे पोषक तत्वों के केटायन एक्सचेंज कैपेसिटी को बढाकर पोषक तत्वों को कम समय में पौधों के सभी भागो में फैलाता हैं , लाभकारी जीवाणु एवं तत्वों को आलेट्रावाईलेट किरणों द्वारा होने वाले विघटन से बचाता हैं , पौधों में रोग एवं किटो की प्रति प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता हैं , इस उर्वरक से फसलो की भंडारण क्षमता में बढ़ोतरी होता हैं |


Bio Flowering Agent

प्रयोग विधि :-

पॉवर नाम का यह बायो प्रोडक्ट घोल के रूप में आता हैं जो  पौधों में फूलो की संख्या में का विकास करता हैं , तथा इसका प्रयोग लगभग सभी प्रकार की फसलो में छिडकाव के माध्यम से किया जा सकता हैं , छिडकाव करने के लिए 1.5 ml उर्वरक को 1 लीटर पानी के हिसाब से घोल तैयार करे और इसे फसलो में कम से कम 7-8 दिन और अधिकतम 15-20 दिन के अंतर में 3 छिडकाव करे , अधिकाश कीटनाशक के साथ प्रयोग कर सकते हैं  |

फायदा :-

पावर, क्लोरोफिल संश्लेषण में सुधार करता हैं जिससे पौधों का समग्र विकास होता हैं , फुल और फल को गिरने से रोकता हैं तथा बीजो का अंकुरण क्षमता में सुधार होता हैं , अनाज ,तिलहन वा समस्त बीज वाली फसल में   पोचे दाने को कम करता हैं , जिससे अधिक उपज होता हैं , दाना चमकदार और वजनदार होता हैं |


Josh B5 Bio Insecticide वा flowering Agent

प्रयोग विधि :-
यह बायो एजेंट घोल के रूप में आता हैं जिसका प्रयोग खड़ी फसल में छिडकाव के माध्यम से किया जाता हैं , यह फसलो की फुल, फल को बढ़ाने के साथ कीड़ो को भी मारने की क्षमता रखता हैं  , तथा लबे समय तक कीड़ो के आक्रमण से फसलो को बचाता हैं | इसका प्रयोग सभी फसलो में, फसल के किसी भी अवस्था में किया जा सकता हैं | 2 ml दवा को एक लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर 3-4 बार 15 दिन के अन्तराल में  छिडकाव करे 

फायदा :-
इसके प्रयोग से पोषक तत्वों का फसल दुवरा अच्छी तरह से उपयोग होता हैं . फसल में हानिकारक किट समाप्त होते हैं तथा फसल की प्रति रोधक क्षमता बढती जिससे किटो के हमले के खिलाफ फसल का रक्षा तंत्र सक्रीय होता हैं , फुल की संख्या और फल धारण करने की क्षमता प्रभावी रूप से बढता हैं | तथा उच्च गुणवत्ता वाली उपज प्राप्त होता हैं .

इसके अलावा भी कई Soil Bio Nutrient हैं जिसका काम ऊपर उलेख किये गए बायो प्रोडक्ट के सामान ही हैं तथा उपयोग या प्रयोग विधि भी सामान हैं .


 




Information Of Organic Farming



देश की किसान, लोगो की बढती हुई खाद्यान जरूरतों को पूरा करने के लिए आज आधुनिक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं किन्तु Organic Farming से दूर अधिक उत्पादन के लालच ने आज किसानो की हालात और उनकी आर्थिक स्थिति को इस कदर ख़राब कर दिया हैं की किसान की खर्च उनके उत्पादन से अधिक होने लगे हैं जिससे किसानो की आर्थिक स्थिति लगातार कमजोर हो रहे हैं , फसलो को उगाने ,और उनसे अधिक उत्पादन लेने के लिए किसान रासायनिक पदार्थो का बे हिसाब उपयोग कर रहा हैं , जबकि उसका उत्पादन में थोड़े बहुत ही बढ़ोतरी हो रहा हैं जिसका प्रभाव सिर्फ किसानो की आर्थिक स्थिति को ही कमजोर नही बना रहा हैं बल्कि उनके द्वारा उत्पन किये गए फसल को खाने वाले को भी नुकसान पहुचा रहा हैं , जिसका असार आज सम्पूर्ण जीव जगत में आसानी से देखा जा सकता हैं ,



खेतो में लगातार रासायनिक उर्वरको वा कीटनाशी के प्रयोग से पानी, भूमि ,हवा तो जहरीला होता ही हैं साथ में जो फसल उत्पन होता हैं उसमे भी उन प्रयोग किये गए रासायनिक उर्वरको वा कीटनाशी का अंश भोजन के माध्यम से शारीर तक पहुच रहे हैं जिससे नए- नए घातक बीमारी उत्पन्न हो रहे हैं , साथ ही जीव जगत का संतुलन भी ख़राब हो चूका हैं .

ऐसे में जीव जगत को संतुलित करने और बेहतर वा  सुरक्षित फसल उगाने के लिए  जैविक खेती (Organic Farming ) को अपनाना बेहद जरुरी हैं  , आर्गेनिक फार्मिंग सम्पूर्ण जीव जगत को संतुलित करते हुए गुणवत्ता पूर्ण फसल उत्पादन में सबसे असरकारी हैं , और आज भी देश के बहुत सारे किसान आर्गेनिक खेती कर रहे और नए किसान इसे अपना भी रहे हैं , आज देश में मुखियता 3 प्रकार से फसल उगा रहे हैं 
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  1.  आर्गेनिक :- इस प्रकार के खेती में कंही भी रासायनिक पदार्थो का उपयोग नही किया जाता हैं |
  2. संतुलित खेती :- इस प्रकार के खेती में आर्गेनिक पदार्थो के साथ थोड़ी मात्र में  रासायनिक उर्वरको या कीटनाशी का उपयोग किया जाता हैं |
  3. रासायनिक खेती :- स प्रकार की खेती में फसल उगाने के लिए केवल रसायनिक पदार्थो का उपयोग किया जाता हैं  इससे फसल उत्पादन तो बढता हैं साथ में खर्च भी अधिक होता हैं और उत्पादन जो मिलता हैं वह रासायनिक पदार्थो से परिपूर्ण होता जिसका असार खाने वाले के शारीर पर पड़ता हैं 
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 इस पोस्ट में हम आर्गेनिक फार्मिंग को बेहतर तरीके से समझेंगे 
Organic-Tonic


  • Organic Framing क्या हैं ? :-  
आर्गेनिक फार्मिंग खेती करने की कोई नई तकनीक नही हैं बल्कि यह खेती करने की सबसे पुरानी परंपरा हैं जिसमे खेती प्राकृतिक रूप से उपलब्ध साधनों का उपयोग करते हुए किया जाता हैं , जिससे जीव जगत को बिना प्रभावित किये अच्छी गुणवत्ता वाली फसल उत्पन्न होता हैं , यदि हम आर्गेनिक खेती को सामन्य भाषा में कहे तो खेती की ऐसी विधि जिसमे बिना रासायनिक उर्वरको या कीटनाशी का प्रयोग  किये बिना ही फसल उगाना आर्गेनिक खेती कहलाता हैं , आर्गेनिक खेती के अंतर्गत ,खेतो में प्रयोग होने वाले खाद जैसे की:- गोबर खाद , केचुवा खाद,  कम्पोस्ट खाद , हरी खाद , आदि आते हैं जो सिर्फ जीवो के अपशिष्ट अवशेष के सड़ने गलने से बनता हैं , और इसमें पौधो के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्वा मोजूद होते हैं | जबकि जीव जगत पर बुरा प्रभाव डालने वाला कोई भी हानिकारक तत्वा मौजूद नही होता हैं जिससे आर्गेनिक फार्मिंग से मिलने वाले उत्पाद  बहुत स्वादिस्ट और हेल्थ फुल होता  हैं , इसके अलावा आर्गेनिक खादों से उत्पादित होने वाले उत्पाद आसानी से ख़राब नही होता जिससे  खेतो से उत्पादित होने वाले उत्पाद को लबे समय तक स्टोर कर सकते हैं | 

 

  •  Organic Farming का इतिहास :- 
आर्गेनिक फार्मिंग का इतिहास बहुत पुराना हैं पहले लोग जंगलो को काट कर खेती करते थे और जब उस स्थान पर फसल कम होता था तो दुसरे स्थान पर जंगलो को साफ कर वह  पर खेती करते थे , इसे स्थान्तरित  खेती कहते हैं, किन्तु  जनसंख्या वृद्धि के कारण स्थान्तरित खेती करने में  दिक्कत महसूस किया गया और  उसके स्थान पर  स्थाई खेती करना  अराभ किया गया  और उस समय गोबर , पेड़ पौधों के सड़े गले  पदार्थो का इस्तेमाल खेती करने में यूज़ होता था जिससे  अच्छी गुणवत्ता वाली फसल पैदा होता  था जिससे लोग स्वस्था रहते थे और पर्यवरण भी संतुलित था ,किन्तु जैसे -जैसे  जनसंख्या वृद्धि हुवा लोगो की भोजन मांग बढ़ाने लगा और फीर फसल उत्पादन बढ़ाने की एक प्रतियोगिता सी शुरू हो गया जो  भी जारी हैं  हर रोज नए-नए अविष्कार हुआ जिसके  परिणाम स्वरुप फसल उत्पादन की वृद्धि तो हुवा लेकिन   उसके साथ ही गंभीर  समस्या  भी उत्पन्न हो गया हैं जैसे की गुणवत्ता हिन् रसायन युक्त   उत्पाद  पानी , भूमि , वायु , प्रदुषण , जैसे प्राकृतिक असंतुलन हो गया हैं , और इन सबको रोकने  लिए सबसे असार दार   सिर्फ organic farming ही   हैं  

 

  •  Type Of Organic Farming : 

आर्गेनिक फार्मिंग को मुख्या रूप से दो प्रकार से किया जा सकता हैं :-

  1.  pure Organic Forming :- इस प्रकार के खेती में आर्गेनिक खाद और आर्गेनिक कीटनाशी  का प्रयोग किया जाता हैं , कहने का मतलब हैं की इसमें फसल उगाने के लिए शुरुवात से लेकर अंत तक किसी भी परिस्थिति में कोई भी रसायन का उपयोग नही किया जाता हैं 
  2. integrated Organic Farming :- इसके अंतर्गत फसल उगाने के लिए आर्गेनिक खाद के साथ थोड़ी मात्र में रासयनिक खाद और बहुत अधिक जरुरत पड़ने पर रासायनिक कीटनाशी का प्रयोग किया जाता हैं , कहने का मतलब हैं की खेती करने के लिए  नियंत्रित रूप से जैविक पदार्थो के साथ रासायनिक पदार्थो का उपयोग किया जाता हैं जिससे किसी भी हानिकारक प्रभाव को कम किया जा सके |   



  1.    
  • Organic Farming क्यों आवश्यक हैं ?:-   
वर्तमान में फसल उगाने के लिए अत्यधिक रसायन के उपयोग से प्राक्रतिक असंतुलन उत्पन्न हुवा हैं उसे ठीक करने के लिए जैविक खेती करना बहुत आवश्यक हैं, रासायनिक उर्वरक के अत्यधिक प्रयोग से  मिट्टी की निचली सतह पर ( 6 इंच नीचे ) रिस-रिस कर जमा होते रहते हैं जो मिट्टी की अन्दर की परत को कठोर कर देते हैं जिसका अंदाजा खुद किसान को नही होता जिसके कारण फसल सुखा सहन नही कर पता और पौधों को हमेसा पोषक तत्त्वों की कमी दिखाई देता हैं  क्योकि निचे की मिट्टी कठोर हो जाता हैं जिससे पानी वाष्प बनकर मिट्टी की सबसे उपरी परत तक नही पहुचता और उपर से निचे पानी का रिसाव नही होता हैं , इसके अलावा रासायनिक कीटनाशी के प्रयोग से कृषि मित्र जीव ( जो फसलो के किट पतंगों को खाते हैं )  नस्ट हो जाते हैं जबकि फसल को हनी पहुचाने वाले किट पतंगे में उस रसायन के प्रति सहनशील हो जाते हैं जिसको बाद में नस्ट करना किसानो के लिए बड़ी मुश्किल हो जाता हैं , इसके अलावा भी जब किसान रासयनिक खाद और कीटनाशी का प्रयोग करता हैं तो उस रासायनिक खाद ,कीटनाशी को बनाने  में कई सारे खतरनाक रसायन का  प्रयोग होता हैं जिसके अंश खाने के माध्यम से शारीर तक पहुच रहे हैं और नये नए बीमारी को जन्म दे रहे हैं ,  उपरोक्त रसायन के दुस्प्प्रभाव को निष्क्रिय करने में जैविक खाद और जैविक कीटनाशी का बहुत बड़ा योगदान हैं , अतः इस समय आर्गेनिक खेती को  अपनाना वा  बढ़ावा देना बहुत जरुरी हैं |

  •  Organic Farming के लाभ :- 
आर्गेनिक खेती के बहुत सारे लाभ हैं जिसका वर्णन करना आसान नही हैं  आर्गेनिक खेती से गुवात्तापूर्ण फसल पैदा तो होता ही हैं साथ में फसल उगाने के लिए  खर्च भी कम आता हैं , वही प्रकृति भी संतुलित रहता हैं जिससे खेती करने में कोई विशेष समस्या नही होता हैं   फसलो में किट  बीमारियो का प्रकोप नही के बराबर होता हैं अगर होता भी हैं तो फसल उनको सहन करने की क्षमता रखता हैं  जिससे फसल उत्पादन पर कोई प्रभाव नही पड़ता  इसके   अलावा   जो घरेलु अपशिस्ट पदार्थ होता हैं वह भी खेती के लिए आसानी से उपयोग में लाया जा सकता हैं , आर्गेनिक खेती का सबसे बड़ा फायदा यह होता हैं की इसमें खेती के लिए सहायक मित्र किटो को बिना नुकसान पहुचाये फसलो की बेहतर देखभाल किया जा सकता हैं , आर्गेनिक खेती से उगाया गया फसल बहुत स्वादिस्ट और पोष्टिक होता हैं , तथा उनकी भण्डारण क्षमता अधिक होता हैं जिससे किसानो को अधिक पैसा कमाने का मौका मिलता हैं , आज लगतार आर्गेनिक फसलो की मांग बढ़ रहा हैं जिससे जो किसान आर्गेनिक खेती कर रहे हैं उन्हें अच्छा लाभ हो रहा , सरकार भी इस क्षेत्र में प्रोत्सहन कर रहा हैं किसान इसका भी लाभ उठा सकते हैं इसके बारे में हम निचे विस्तार से चर्च करेंगे 
  • Organic Farming के नुकसान :- 
वैसे तो आर्गेनिक फार्मिंग के कोई नुकसान नही हैं लेकिन अगर कुछ बातो को गौर किया जाये तो जिस प्रकार सिक्के के दो पहलु होते हैं वैसे ही इसके भी दो पट हैं जिसमे फायदा तो बहुत ज्यादा हैं , और नुकसान सिर्फ ये कह सकते हैं की शुद्ध आर्गेनिक खेती करके आज की लोगो की जरुरत को पूरा नही किया जा सकता और इसके लिए आर्गेनिक खेती जिम्मेदार नही हैं बल्कि किसानो के पास उपलब्ध साधान की कमी हैं जो आर्गेनिक खेती में बाधक , जैसे की बहुत किसानो के पास गो वंश नही हैं जिससे उन्हें गोबर उपलध नही हो सकता , इसके अलावा अपने खेतो से पेड़ पौधों को पूरी तरह से साफ कर देना , आदि  

आर्गेनिक खेती के लिए सुझाव :-
 खेती में बढ़ते हुए खर्च और उनसे मिलने वाले उत्पाद की गुणवता को देखे तो आज के समय में आर्गेनिक खेती समय की मांग नही बल्कि या खेती के लिए बहुत जरुरी हैं , और इस पर सभी किसान भाई को अपने -अपने स्तर पर आर्गेनिक खेती को अपनाना चाहिए जैसे की आर्गेनिक खेती के लिए एक सामन्य सा प्रयास की जा सकता हैं आर्गेनिक खेती के लिए खेतो के मेड़ो में पेड़ पौधों को लगाये  जिनकी पत्तिय मिट्टी में सड़कर खाद बनेगा ,  इसके अलवा खेतो की मेड में उगने वाले खरपतवार को  फूलने फलने से पहले काट कर गढ़ों में दबा दे जिससे आने वाले फसल के लिए एक बेहतर खाद मिल जायेगा , इसके अलावा  किसान अपने पास अपने क्षमता के हिसाब से पशुपालन करे, जिससे खेतो की मेड में उगने वाले खरपतवार  एवं फसल अवशेषो को चारा के रूप में उपयोग कर सके , जिसे बाद में एक अच्छा खाद के रूप में अपने खेत में प्रयोग कर सकते हैं  , रासायनिक पदार्थो का उपयोग खेती में बहुत कम या ना करे तो बेहतर हैं |


  • Organic Farming को बेहतर कैसे बनाये ? :- 
हमने देखा हैं की 60 % ऐसे किसान हैं जो सिर्फ रासायनिक खाद या कीटनाशी पर ही भरोसा करते हैं और उन्ही का इस्तेमाल करते हैं ऐसा इसलिए क्योकि रासायनिक खाद या कीटनाशी का प्रभाव तत्काल होता हैं , और यह देखकर किसानो को बहुत अच्छा लगता हैं जबकि उन्हें ये पता नही होता की उनकी मिट्टी, पानी, फसल और यह तक की उनकी शारीर को क्या नुकसान हो रहा हैं , जबकि आर्गेनिक खाद और कीटनाशी का प्रभाव धीमा होता हैं इसलिए किसानो को लगता हैं उनका फसल ठीक नही हैं और आर्गेनिक खाद और कीटनाशी उनके लिए फायदेमंद नही हैं इसलिए आर्गेनिक खाद और कीटनाशी का इस्तेमाल नही करते , जबकि हकीकत यह हैं की आर्गेनिक खाद और कीटनाशी का प्रभाव लबे समय तक रहता हैं जिससे खेत में जल्दी-जल्दी  खाद या कीटनाशी का प्रयोग नही करना पड़ता और जो फसल होता हैं वह मजबूत और गुणवत्तापूर्ण होता हैं और यह सब रासायनिक खेती में नही होता हैं , यदि आर्गेनिक खाद और कीटनाशी के साथ संतुलित मात्र में रासायनिक खाद या कीटनाशी का इस्तेमाल करे  तो अच्छा उत्पादन के साथ ही साथ अच्छी गुणवत्ता वाली फसल ले सकते हैं जो लोगो की मांग को आसानी से पूरा करने में सहायक होगा |इसके अलावा आर्गेनिक खेती को मजबूत बनाने के लिए फसल चक्र , मिश्रित फसल , आदि को अपनाना चाहिए जिससे किसानो की खेती मजबूत हो सके 
  • Organic Farming से भारत का भविष्य और युवाओ को रोजगार:- 
भारत जैसे देश जहा लोगो की स्वस्थ और आर्थिक स्थिति दोनों ही कमजोर हैं ,ऐसे में आर्गेनिक खेती लोगो की स्वस्थ के लिए बेहतर खाना और रोजगार का एक बहुत अच्छा माध्यम बन सकता हैं  , आर्गेनिक खेती के लिए आर्गेनिक खाद आवश्यक अंग हैं और आर्गेनिक खाद या कीटनाशी को बनाने के लिए लोगो की आवश्यकता जरुरी हैं चुकी आर्गेनिक खाद या कीटनाशी को एक प्राकृतिक तरीके से बनाना संभव हैं इसलिए इसके लिए बड़ी मात्र में लोगो की आवस्यकता होगा , वही दूसरी ओर आर्गेनिक खेती से उत्पादित होने वाले फसलो की अच्छा भाव वा मांग बढ़ रहा जिससे आने वाले समय में आर्गेनिक खेती करने वाले किसानो के लिए भी बहुत अच्छा मौका मिल सकता हैं 

  • Organic Farming के लिए भारत सरकार की योगदान :-  
जैविक खेती के लिए भारत सरकार ने बहुत ही अच्छा प्रयास किया हैं जिसका नतीजा बहुत ही संतोषजनक रहा हैं सरकार ने किसानो के लिए ,organic Farming के लिए बहुत सारे  योजना और सब्सिडी का प्रावधान किया हैं आर्गेनिक खेती के अंतर्गत   किसानो को , पशुपालन में अनुदान , आर्गेनिक खाद बनाने के लिए अवश्यक सामग्री के लिए बड़ी मात्र में अनुदान का प्रावधान हैं जो अलग -अलग राज्यों में अलग- अलग हो सकता हैं , अब तो जो किसान आर्गेनिक खेती कर रहा हैं उनका उत्पाद सीधे सरकार उचे भाव पर खरीदने जा रहा हैं , इसके अलावा जो किसान आर्गेनिक खेती करते हैं उनके लिए अलग से लोगो ( पहचान चिन्ह ) भी तैयार किया जा चूका हैं , आर्गेनिक फार्मिंग करने के लिए या इनके लिए मिलने वाले अनुदान का लाभ लेने के लिए सबसे पहले अपने नजदीकी कृषि विभाग के आधिकारियो से संपर्क करे ,

  • आर्गेनिक खेती कहा-कहा किया जा सकता हैं :- 
Organic Farming एक ऐसा सुरक्षित खेती करने का तरीका हैं जिसे सभी जगह पर आसानी से किया जा सकता हैं और लगभग सभी प्रकार की खेती की क्रिया आसानी से किया जा सकता हैं , आर्गेनिक फारमिंग से लगभग सभी प्रकार की फसल देश की सभी प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगा सकते हैं और अच्छा लाभ ले सकते हैं 



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