Organic Insecticide या pesticide
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| जैविक कीटनाशक |
कृषि कार्य में रासायनिक पदार्थो के स्तेमाल से कृषि उत्पाद के साथ-साथ कृषि के लिए लाभकारी जीव , मिट्टी, पानी, वायु को काफी नुकसान पंहुचा हैं जिसका परिणाम यह हुवा की कृषि कार्य को बाधा पहुचाने वाले कीट पतंगों में रासायनिक पदार्थो के प्रति सहनशील पैदा हो चूका हैं जिससे ऐसे जीवो की संख्या में तेजी से विकास हो रहा हैं , जो कृषि के लिए एक बड़ी चुनौती हैं |
कृषि कार्य में बाधा पहुचाने वाले कीट पतंगों वा अन्य चुनौती को मजबूती से निपटने के लिए जैविक पदार्थ , जैसे की जैविक खाद या उर्वरक , जैविक कीटनाशक , जैविक रोग नाशक | सबसे आसरकारी हैं , इनके इस्तेमाल से जैव विविधता में संतुलन स्थापित होता हैं , जिससे कृषि के लिए लाभकारी जीवो की संख्या में बढ़ोतरी होता हैं जबकि हानिकारक जीवो संख्या नियंत्रित होता हैं | जिससे फसल उत्पादन में लागत कम आता हैं , और अच्छी गुणवत्ता के फसल तैयार होने के कारण देश और विदेशी बाजार में अच्छा मांग होता हैं|
जैविक कीटनाशक क्या हैं
जैविक कीटनाशक दो या दो से अधिक जैविक पदार्थो को मिक्स करके बनाया जाता हैं , जो कीटो की अंडे ,लार्वा , आदि को नुकसान पहुता हैं , साथ में यह पौधों के लिए जैविक उर्वरक वा हार्मोन्स का भी काम करता हैं , जिससे पौधे में स्वतः ही कीट पतंगों को , रोकने की क्षमता विकसित कर लेता हैं | जैसे की गौ मूत्र +मदार की पत्ती + तम्बाखू की पत्ती +नीम की तेल इन सभी को मिक्स करके 7-10 दिन तक सड़ाने के बाद पानी में घोल करके छिडकाव करने से पत्ती खाने वाला इल्ली , माहो , आदि किट मर जाते हैं जबकि पौधों को अच्छा पोषक तत्व भी मिल जाता हैं |
Organic Insecticide के प्रयोग और फायदे
जैविक कीटनाशक का प्रयोग फसल में, फसल बोवाई के बाद कभी भी किया जा सकता हैं , इससे पौधों पर कोई बुरा प्रभाव नही पड़ता हैं, बल्कि इससे पौधों का विकास अच्छा होता हैं तथा पौधों के अन्दर किट बीमारी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करता हैं जो पुरे पौधे के जीवनकाल वा आने वाले फसल के बोवाई के बाद भी पौधे में बना रहता हैं, जैविक कीटनाशक की दूसरी सबसे अच्छी बात यह हैं की इसके हानिकारक प्रभाव अन्य जीवो के लिए बहुत कम या नही भी होता हैं , और इसलिए फसल में जैविक कीटनाशक छिडकाव करने के 15-24 घंटे बाद वह फसल सीधे खाने योग्य हो जाता हैं जबकि किट पतंगे 12 घंटे के अन्दर ही मर जाते हैं, और इसप्रकार से सब्जी वाली फसल को दवाई छिड़कने के बाद बाजार में बेचने के लिए 5-7 दिन का इंतिजार नही करना पड़ता हैं , कैसे करे एक सफल जैविक खेती इसके लिए किसानो को वर्तमान में विचार जरुर करना चाहिये क्योकि यह समय की मांग नही बल्कि एक सुरक्षित खेती करने का तरीका हैं |
Organic Insecticide बनाने के तरीके :-
जैविक कीटनाशक मुख्य रूप से दो प्रकार से बनाया जाता हैं , अवसान विधि और सामग्रियों को सड़ाकर , अवसान विधि में पौधों के जड़, तना, छाल , पत्ती आदि को एक विशेष प्रक्रिया के माध्यम से रस निकाला जाता हैं , जिसका प्रयोग फसलो के किटो को मरने के लिए किया जाता हैं यह बहुत तेज असरकारी होता हैं तथा इसकी बहुत कम मात्रा (लगभग 1 लीटर दवाई ) एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होता हैं , जबकि सड़ाकर बनाने वाले जैविक कीटनाशक में किसान अपने फार्म में मौजूद जैसे की , गौ मूत्र नीम , करंज की पत्ती या खली या फिर तेल आदि को आपस में मिलाकर कुछ दिन तक सड़ने के लिए रख देते हैं , और उसके बाद इस मिक्सचर को छान कर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करते हैं , इस में दवाई की प्रति एकड़ 15-20 किलो की जरुरत पड़ता हैं |
घर में Organic Insecticide कैसे बनाये :-
घरेलु स्तर पर अपने फसल की सुरक्षा के लिए जैविक कीटनाशक बड़ी आसानी से बना सकते हैं, जो किसानो के आसपास ही मौजूद होता हैं , जैसे की गौ मूत्र, नीम , करंज , लहसुन , हल्दी , छाछ या मट्ठा , तम्बाखू आदि ऐसे हैं जिसे कुछ दिन सड़ाने के बाद एक बेहतरीन कीटनाशक के रूप में बदला जा सकता हैं , जो फसलो और अन्य जीवो के सुरक्षित होता हैं :-
पत्ती खाने वाले इल्ली , फुल या तनो की रस चूसने वाले कीटो की नियंत्रण के लिए , 10 लीटर गौ मूत्र को एक मटके में भर ले इसमें 2 किलो नीम, की पत्ती , 2 किलो मदार की पत्ती ,2 किलो सीताफल की पत्ती, 200 ग्राम तम्बाखू को सुखा कर या तम्बाखू को छोड़कर हरी अवस्था में सब को एक साथ मिलाकर अच्छे से कुच कर लुगदी जैसे बनाकर गौ मूत्र से भरे मटके में डाल दे और मटके के मुख को पत्ते या कपडे से कस कर बांध दे अब इसे 10-15 दिन तक सड़ने के लिए रख दे ध्यान रहे बीच-बीच में इस मिक्सचर को लकड़ी की डंडे से सीधी वा उल्टी दिशा में गुमा कर मिक्स करते रहे , 15 दिन बाद इस मिक्सचर को 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करे , इसके अलावा एक किलो ग्राम लहसुन को अच्छे से कुंच कर पेस्ट बना ले अब इसमें 500 ग्राम शुद्ध हल्दी पावडर, एक लीटर नीम या करंज के तेल में डाल कर 7-10 दिन सड़ने के लिए छोड़ दे 10 दिन बाद जरुरत के हिसाब से या फिर 100 लीटर पानी में घोल बनाकर फसलो में छिडकाव करे |
इस दवाई से पत्ती खाने वाले किट , फली बेधक , माहो , पत्ती लपेटने वाले किट , वा समस्त प्रकार के किट के नियंत्रण के लिए अति उपयोगी हैं |
इसके अलावा 1 लीटर पुराने छाछ या मट्ठे में 250 ग्राम तम्बाखू के पावडर , 500 मिलीलीटर करंज के तेल और 1 लीटर गौ मूत्र को मिलाकर 7 दिन के लिए सड़ाने के लिए छोड़ दे अब इसे 50 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करे इससे फसलो की उपरी सतह पर रहने वाले समस्त प्रकार की किट को नियंत्रित करता हैं |
इसके अलावा दीमक ,तना छेदक के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए नीम या करंज की खली को फसल बोने से पहले खेत में अच्छे से मिला दे , ये फसल को खाद के साथ कीटनाशक का भी काम करता हैं , इसके अलावा बीज को बोने से पहले नीम या करंज के तेल से उपचार करके बोने से दीमक और जड़ गलने की समस्या में कमी पाई गई हैं |
बाजारों में मिलने वाले Organic Insecticide :-
इस प्रकार की दवाई पौधों की जड़, तना, छाल , पत्ती आदि को एक विशेष प्रक्रिया के माध्यम से रस निकाल कर बनाया जाता हैं, जो एक ही दवाई कई प्रकार का काम करता हैं , जैसे की फुल वा फलो की संख्या में वृद्धि करता हैं , पौधों की रोग किट प्रतिरोधक क्षमता में विकास करता हैं | इस प्रकार के उत्पाद में हमारे द्वारा प्रयोग किया गया प्रमुख उत्पाद हैं |
Protecto :-
यह हर्बल एंटी एक्स-अर्क उन्नत पर आधारित उत्पाद हैं | यह भूमि जनित , वातावरण जनित , पौधे और बीज जनित रोगों की रोकथाम करता हैं साथ में यह सभी प्रकार की कीटो को मारने का काम करता हैं और फसल को सुरक्षित रखता हैं तथा किटो को फसलो में फिर से हमला करने से रोकता हैं |इसे सभी प्रकार की फसल में प्रयोग कर सकते हैं इस दवाई की 1-2 ml दवाई को 1 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव कर सकते हैं
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Protecto
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विजया 666:-
यह हर्बल प्रजातियों के पौधे से निस्सरण से बनाया गया हैं जो सभी प्रकार के प्राम्भिक विकास स्थिति के किटो को जैसे इल्ली सुंडी रस चूसने वाले किट आदि को नियंत्रित करता हैं तथा पौधों का विकास बहुत अच्छे से होता हैं वा किटो के प्रति पप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता हैं जिससे उत्पादन में बढ़ोतरी देखा गया हैं , इस दवाई को 2.5 ml को 1 लीटर पानी के हिसाब से घोल बनकर छिडकाव कर सकते हैं , यह सभी फसलो के लिए उपयुक्त हैं तथा छिडकाव के 12-15 घंटे बाद फसलो के फल पत्ती आदि को खा सकते हैं ,
इसके अलावा और कुछ दवाई हैं जो बहुत असरकारी हैं :-
ये दवाई भी किटो को मारने के लिए बहुत असरकारी हैं
फसलो में जैव पदार्थो का कीट नियंत्रण के लिए उपयोग :-
प्रकृति में कुछ ऐसे भी जीव हैं जो फसल को नुकसान पहुचाने वाले जीव के अंडे लार्वा, एडल्ट को खाकर या उसमे रोग उत्पन्न करके उसे नस्ट कर देते हैं , जिससे फसल एक लबे समय के लिए सुरक्षित हो जाता हैं | उन जीवो में प्रमुख हैं :-
एन.पी.वी (न्यूक्लियर पॉलीहेड्रासिस वायरस)
न्यूक्लियर पॉलीहेड्रासिस वायरस (एन.पी.वी.) पर आधारित हरी सूंडी़ (हेलिकोवर्पा आर्मीजे़रा) अथवा तम्बाकू सूंड़ी (स्पोडाप्टेरा लिटूरा) का जैविक कीटनाशक है जो तरल रूप में उपलब्ध है। इसमें वायरस कण होते हैं जिनसे सूंडी द्वारा खाने या सम्पर्क में आने पर सूंडियों का शरीर 2 से 4 दिन के भीतर गाढ़ा भूरा फूला हुआ व सड़ा हो जाता हे, सफेद तरल पदार्थ निकलता है व मृत्यु हो जाती है। रोग ग्रसित तथा मरी हुई सूंडियां पत्तियों एवं टहनियों पर लटकी हुई पाई जाती हैं।
एन.पी.वी. कपास, फूलगोभी, टमाटर, मिर्च, भिण्डी, मटर, मूंगफली, सूर्यमुखी, अरहर, चना, मोटा अनाज, तम्बाकू एवं फूलों को नुकसान से बचाता है। प्रयोग करने से पूर्व 1 मिली एन.पी.वी. को 1 लीटर पानी में घोल बनाये तथा ऐसे घोल को 250 से 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 12 से 15 दिनों के अंतराल पर 2 से 3 छिड़काव फसलों के लिए उपयोगी हैं। छिड़काव सांयकाल को किया जाय तथा ध्यान रहे कि लार्वा की प्रारम्भिक शैशवावस्था में अथवा अंडा देने की स्थिति में प्रथम छिड़काव किया जाय। एन.पी.वी. की सेल्फ लाइफ 01 माह है।
ब्यूवेरिया बैसियाना
यह एक फफूंदी जनित उत्पाद है, जो विभिन्न प्रकार के फुदकों को नियंत्रित करता है। यह लेपीडोप्टेरा कुल के कैटरपिलर, जिसमें फली छेदक (हेलियोथिस), स्पोडाप्टेरा, छेदक तथा बाल वाले कैटरपिलर सम्मिलित हैं, पर प्रभावी है तथा छिड़काव होने पर उनमें बीमारी पैदा कर देता है जिससे कीड़े पंगु हो जाते है और निष्क्रिय होकर मर जाते हैं। यह विभिन्न प्रकार के फसलों फलों एवं सब्जियों में लगने वाले फली बेधक पत्ती लपेटक, पत्ती खाने वाले कीट, भूमि में दीमक एवं सफेद गीडार आदि की रोकथाम के लिए लाभकारी है।
प्रयोग विधि
भूमि शोधन हेतु ब्यूवेरिया बैसियान की 2.5 किग्रा० प्रति हे० लगभग 25 किग्रा० गोबर की खाद् में मिलाकर अन्तिम जोताई के समय प्रयोग करना चाहिये।खाई फसल में कीट नियंत्रण हेतु 2.5 किग्रा० प्रति हे० की दर से 400-500 लीटर पानी में घोलकर सायंकाल छिड़काव करें। जिस आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर दोहराया जा सकता है। इसकी सेल्फ लाईफ 1 वर्ष है।
बी. टी. (बेसिलस थ्यूनिरजिएन्सिस)
5 प्रतिशत डब्लू.पी. बी.टी. एक बैक्टिरिया आधारित जैविक कीटनाशक है जो सूंडियों पर तत्काल प्रभाव डालता है। इससे सूंड़ियों पर लकवा, आंतों का फटना, भूखापन तथा संक्रमण होता है तथा वे दो से तीन दिन में मर जाती है। यह पाउडर एवं तरल दोनों रूपों में उपलब्ध है। इसका प्रयोग मटर, चना, कपास, अरहर, मूंगफली, सुरजमुखी, धान फूलगोभी, पत्ता गोभी, टमाटर, बैंगन, मिर्च तथा भिण्डी में उपयोगी एवं प्रभावशाली है। बी.टी. का प्रयोग छिड़काव द्वारा किया जाता है। प्रति हेक्टर 0.5 से 1.0 किग्रा० मात्रा को 500 से 700 लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर दो से तीन बार छिड़काव लाभकारी है। इसकी सेल्फ लाइफ 1 वर्ष है।
क्राइसोपर्ला
क्राइसोपर्ला नामक हरे कीट जिनकी लम्बाई 1 से 1.3 सेमी० ०, पंख लम्बे हल्के रंग के पारदर्शी, सुनहरी आंखे तथा 5 एन्टिना धारक होते है, के लार्वा सफेद मक्खी, माहूँ जैसिड थ्रिप्स आदि के अंडो तथा लार्वा को खा जाते है, को प्रभावित खेतों में डाला जाता है, इनका जीवन चक्र निम्न प्रकार है:-
अंडा अवधि 3-4 दिन लार्वा अवधि 11-13 दिन
प्यूपा अवधि 5-7 दिन व्यस्कता 35 दिन
अंड क्षमता 300-400 अंडे - -
क्राइसोपर्ला के अंडों को कोरसियरा के अंडों के साथ लकड़ी के बुरादे में बाक्स में आपूर्ति किया जाता है। इनके लार्वा कोरसियरा के अंडो को खाकर वयस्क बनते है। विभिन्न फसलों में क्राइसोपर्ला के 50000 से 100000 लार्वा या 500 से 1000 वयस्क प्रति हेक्टर डालने से कीटो का नियंत्रण भली प्रकार से होता है। सामान्यतः दो बार इन्हें छोड़ना चाहिए। क्राइसोपर्ला के अंडों को 10 से 15 डिग्री से पर रेफ्रीजेरेटर में 15 दिनों तक रखा जा सकता है। सामान्य तापमान पर इनका जीवन चक्र प्रारम्भ हो जाता है।
ट्राइकोडरमा
ट्राइकोडरमा एक घुलनशील जैविक फफूँदीनाशक है जो ट्राइकोडरमा विरडी या ट्राइकोडरमा हरजिएनम पर आधारित है। ट्राइकोडरमा फसलों में जड़ तथा तना गलन/सड़न, उकठा (फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम, स्क्लेरोशिया डायलेक्टेमिया) जो फफूंद जनित है, के नियंत्रण हेतु लाभप्रद पाया गया है। धान, गेहूं, दलहनी फसलें, गन्ना, कपास, सब्जियों, फलों एवं फल वृक्षों पर रोगों से यह प्रभावकारी रोकथाम करता है।
ट्राइकोडरमा के कवक तन्तु फसल के नुकसानदायक फफूँदी के कवक तन्तुओं को लपेट कर या सीधे अन्दर घुसकर उनका जीवन रस चूस लेते है और नुकसानदायक फफूंदों का नाश करते हैं। इसके अतिरिक्त भोजन स्पर्धा के द्वारा कुछ ऐसे विषाक्त पदार्थ का स्राव करते हैं जो बीजों के चारो और सुरक्षा दीवार बनाकर हानिकारक फफूंदों से सुरक्षा देते हैं। ट्राइकोडरमा से बीजों में अंकुरण अच्छा होकर फसलें फफूंद जनित रोगों से मुक्त रहती हैं एवं उनकी नर्सरी से ही वृद्धि अच्छी होती है।
कन्द/कॉर्म/राइजोम/नर्सरी पौध का उपचार 5 ग्राम ट्राइकोडरमा को एक लीटर पानी में घोल बनाकर डुबोकर करना चाहिए तत्पश्चात् बुवाई/रोपाई की जाय।बीज शोधन हेतु 4 ग्राम ट्राइकोडरमा प्रति किलोग्राम बीज में सूखा मिला कर बुवाई की जाय।भूमि शोधन हेतु एक किलोगा्रम ट्राइकोडरमा केा 25 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर एक सप्ताह तक छाया में सुखाने के उपरान्त बुवाई के पूर्व प्रति एकड़ प्रयोग किया जाय।बहुवर्षीय पेड़ों के जड़ के चारो ओर गड्ढा खोदकर 100 ग्राम ट्राइकोडरमा पाउडर केा मिट्टी में सीधे या गोबर/कम्पोस्ट की खाद के साथ मिला कर दिया जाय।खड़ी फसल में फफूंदजनित रोग के नियंत्रण हेतु 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से 400-500 लीटर पानी में घोलकर सायंकाल छिडकाव करें। जिससे आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर दोहराया जा सकता है।
यह एक जैविक उत्पाद है किन्तु खुले घावों, श्वसन तंत्र एवं आंखों के लिए नुकसानदायक है। अतः इसके प्रयोग समय सावधानियां बरतनी चाहिए। इसके प्रयोग से पहले या बाद में किसी रासायनिक फफूँदनाशक का प्रयोग न किया जाय। ट्राइकोडरमा की सेल्फ लाइफ एक वर्ष है।
Organic pesticide के लिए Traykodarma का उत्पादन कैसे करे ?
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