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 ह्यूमिक एसिड एक बहुत बढ़िया Organic प्रोडक्ट हैं जिसके इस्तेमाल से फसलो की वृद्धि जबरजस्त देखा गया हैं 



Grow Plus fertilizer 



APSA-80 क्या हैं ?

फसलो के उत्पादन में APSA-80 का क्या महत्व हैं ?

APSA-80 का प्रयोग कब और कितनी मात्रा में करे 


Production Of Traykodarma virdi

ट्राईकोडार्मा विरिडी का कृषि में प्रयोग 

  • Traykodarma virdi कृषि में  उपयोग 
  • Production Of Traykodarma virdi ?
  • Traykodarma virdi का खेतो में उपयोग करने से लाभ 

किसानो के लिए फसल उत्पादन को बढ़ाने वा ,फसल उत्पादन में लगने वाले  खर्च को कम करने के लिए  Traykodarma virdi का महत्वपूर्ण स्थान हैं , यह एक  जीवाणु हैं जो पौधों में लगने वाले ,सूत्रकृमि  व फफूंद जनित रोगों से पौधों को सुरक्षा  प्रदान करता हैं जो जैविक खेती के लिए अति उत्तम  हैं। 
फसलो को सूत्रकृमि  , व फफूंद  बड़ा ही नुकसान पहुचाता हैं , जिसकी रोकथाम समय पर ना किया जाये तो पूरा फसल ही बर्बाद हो जाता हैं , किसान भाई सूत्रकृमि वा फफूंद जनित रोगो से फसलों को बचाने के लिए , महंगे से महंगे रासायनिक दवाई का प्रयोग करता हैं जो किसानो की आर्थिक स्थिति पर भारी असर डालता हैं साथ में भूमि ,पानी।  वायु वा अन्य जीवो पर बुरा असर छोड़ता हैं वो अलग ही हैं जिससे आज पूरा किसान वर्ग परेशान हैं, इस लिए किसान अब रसायन मुक्त खेती करने की ओर अग्रसर हो रहे हैं । 
ट्राईकोडार्मा विरिडी एक जीवाणु हैं जो फसलों की कई प्रकार की बीमारी को ठीक करने में बहुत असरकारी पाया गया हैं जैसे की धान में ब्लास्ट की समस्या , टमाटर ,चना अदि फसल में जड़ ,तना , गलने की समस्या , तथा , मुंग उड़द कद्दू वर्गी आदि फसलों के चूर्णी फफूंदी रोग को ठीक करने में असरकारी सिद्ध हुआ हैं। 

Traykodarma virdi कृषि में  उपयोग :-

ट्राईकोडार्मा विरिडी का मुख्य रूप से बीज उपचार , मृदा उपचार वा खाड़ी फसल में छिडकाव , कृषि कचरों को सड़ाने आदि  में किया जा सकता हैं , बीज उपचार के लिए  किसी प्लास्टिक की डिब्बा या मिट्टी के मटके या बीज उपचार करने वाली मशीन में एक किलो ग्राम बीज प्रति 10 ग्राम ट्राईकोडार्मा विरिडी को मिलाये वा 10 से 15 ml पानी मिलाकर अच्छे से मिक्स करे और फिर बीज को हवा में 30 मीनट से एक घंटे के लिए फैला कर सुखा ले इसके बाद खेतो में बोवाई कर दे इससे मृदाजनित रोग किसी भी प्रकार का नही होता हैं , वही मृदा उपचार के लिए , 4-6 किलोग्राम ट्राईकोडार्मा विरिडी को 40 किलो  सूखे गोबर की खाद में मिलाकर प्रति एकड़ आखरी  जुताई करते समय छिड़क दे, इससे मिट्टी की फफूंद वा सूत्र कृमि तो मरते ही हैं साथ में खेतो में पड़े फसलो व खरपतवार के सूखे अवशेष सड़कर मिट्टी में मिल जाते हैं जो जीवांश खाद का काम करता हैं , खाड़ी फसलो में छिड़कने के लिए 10  ग्राम ट्राईकोडार्मा विरिडी को एक लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करे इससे धान के ब्लास्ट , मुंग ,उड़द , कद्दू वर्गी आदि की भभूतिया रोग ठीक हो जाता हैं। इसके अलावा जैविक खाद बनाने के दौरान खाद को अच्छे से कम समय में सड़ाने वा उच्च क्वालिटी के खाद बनाने के लिए ट्राईकोडार्मा विरिडी  की पावडर को छिड़क दे  ,जो जैविक अपशिष्ट को मात्र 30 दिन के अन्दर अच्छे से सडा कर अच्छे खाद में परिवर्तित कर देता हैं। 

Traykodarma virdi का खेतो में उपयोग करने से लाभ :-

यह एक जैविक  जीवाणु हैं जो पौधों में होने वाले मृदाजनित बीमारी को नियंत्रित करता हैं तथा मिटटी की भौतिक , जैविक दशा में सुधार करके फसलों की विकास के लिए एक अच्छा माध्यम तैयार करता हैं। जिससे फसलों की गुणवत्ता व उपज में 10-20 प्रतिशत तक की वृद्धि होता हैं। ट्राईकोडार्मा विरिडी की इस्तेमाल से रासायनिक दवाई से मिट्टी, पानी वायु वा अन्य जीव को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता हैं वा फसल उत्पादन की लागात को कम किया जा सकता हैं। इसके अलावा किसान ट्राईकोडार्मा विरिडी का घरेलु सामग्री से उत्पादन कर सकता हैं जिसे खुद अपने फसल में उपयोग कर सकता हैं व अन्य किसानो को भी  बेच सकते हैं जो किसानो के लिए एक आय का स्त्रोत भी बन सकता हैं। 

Production Of Traykodarma virdi ?:-

ट्राईकोडार्मा विरिडी का उत्पादन करना बहुत आसान वा सरल हैं ,जिसे किसान अपने घरेलु काम में आने वाले सामग्री का उपयोग करके  कर सकता हैं। ट्राईकोडार्मा विरिडी की उत्पादन में चावल की छोटे-छोटे टुकड़े जिसे कनकी कहा जाता हैं , का प्रयोग होता हैं , जो किसानो के घर में आसानी से मिल जाता हैं। एक किलो ग्राम कनकी से बने ट्राईकोडार्मा विरिडी  10 किलोग्राम सूखे गोबर की खाद में मिलाने के लिए पर्याप्त होता हैं ,जिसे एक हेक्टेयर की खेत में प्रयोग कर सकते हैं। 

ट्राईकोडार्मा जैव फफूंदनाशी का वृहद्उ त्पादन करने के लिए :-

सबसे पहले साफ एक किलो ग्राम चावल की कनकी ले | 

अब चावल की कनकी को खौलते पानी में डालकर 1-2 मिनट के लिए पकाए और शीघ्र स्टील की छन्नी से जो स्प्रिट से साफ किया गया हो छान ले और हल्का गुनगुना होने तक ठंडा होने दे। 

छोटे -छोटे चौकोन  प्लास्टिक का डिब्बा ले जिसे स्प्रिट से अच्छे से साफ कर ले , गुनगुना किये गए कनकी में 2 ट्राइकोकैप केप्सूल या  ट्राईकोडार्मा कल्चर का एक चमच पावडर को अच्छी से मिला दे , अब इसे प्लास्टिक के डिब्बे में एक सेंटीमीटर ऊपर तक भरे और दबाकर ढकन बंद कर दे। 

इन भरे हुए डिब्बो को एक साफ सुथरा बंद कमरे में अलग अलग एक लाइन से लकड़ी या पत्थर की अलमारी या कबाड़ में रखे ध्यान रहे कमरे का तपमान 25-30 डिग्री से अधिक वा कम ना हो यदि तापमान कम हो तो साफ बोर से डिब्बो को ढक दे और यदि तापमान अधिक हो तो डिब्बो को गीली रेत पर रख दे। 

डिब्बे भरने के तीसरे दिन से ट्राईकोडार्मा फफूंद उगना शुरू हो जायेगा , जो पहले सफ़ेद होगा और बाद में हरा हो जायेगा ,जिसे 7-8 दिन बाद उपयोग करने लायक हो जायेगा। 

अब तैयार ट्राईकोडार्मा को डिब्बे से निकालकर खलबट्टा या मिक्सी की सहायता से बारीक़ पीस कर पावडर बना ले  तथा इसे 100 ग्राम  प्रति एक किलो सड़ी हुई सूखे गोबर की खाद या कंडे की साफ राख में मिलाकर , अपने इच्छा अनुसार थैली में भरकर सील करके छायादार जगहों में भंडार कर ले। 

 अब इसे किसान अपने खेतो में वा अन्य किसानो को बेचने के लिए प्रयोग कर सकते हैं।  बेचने के लिए  बिना राख या खाद में मिलाय ही बेच सकते हैं , लेकिन मृदा उपचार के लिए वा लबे समय तक भंडारित करने के लिए गोबर की खाद में मिलाना जरुरी हैं।  बाकि के लिए किसी भी प्रकार राख या खाद में मिलाने की जरुरत नहीं हैं। 

Traykodarma virdi का उत्पादन करने के लिए बाज़ारो में मिलने वाले Traykodarma virdi  पावडर का भी  ट्राइकोकैप  केप्सूल के स्थान में प्रयोग कर सकते हैं |




मिश्रित खेती वा मिश्रित फसल के लाभ ||टमाटर की जैविक उन्नत खेती || तीखुर की खेती से कमाए लाखो रूपए प्रति एकड़ || जीरा की जैविक खेती || मेथी की जैविक खेती || धनिया की जैविक खेती || जैविक खेती कैसे करे || रसायन मुक्त खेती कैसे करे || Bio Nutrient || जैविक कीटनाशक  || किसान क्रेडिट कार्ड कैसे बनाये || किसान सम्मान का लाभ किसान कैसे ले 

Organic Insecticide या pesticide


जैविक कीटनाशक 

कृषि कार्य में रासायनिक पदार्थो के स्तेमाल से कृषि उत्पाद के साथ-साथ कृषि के लिए लाभकारी जीव , मिट्टी, पानी, वायु को काफी नुकसान पंहुचा हैं जिसका परिणाम यह हुवा की कृषि कार्य को बाधा पहुचाने वाले कीट पतंगों में रासायनिक पदार्थो के प्रति सहनशील पैदा हो चूका हैं जिससे ऐसे जीवो की संख्या में तेजी से विकास हो रहा हैं , जो कृषि के लिए एक बड़ी चुनौती हैं | 
कृषि कार्य में बाधा पहुचाने वाले कीट पतंगों वा अन्य चुनौती को मजबूती से निपटने के लिए जैविक पदार्थ , जैसे की जैविक खाद या उर्वरक , जैविक कीटनाशक , जैविक रोग नाशक |  सबसे आसरकारी हैं , इनके इस्तेमाल से जैव विविधता में संतुलन स्थापित होता हैं , जिससे कृषि के लिए लाभकारी जीवो की संख्या में बढ़ोतरी होता हैं जबकि हानिकारक जीवो  संख्या नियंत्रित होता हैं | जिससे  फसल उत्पादन में लागत कम आता हैं , और अच्छी गुणवत्ता के फसल तैयार होने के कारण देश और विदेशी बाजार में अच्छा मांग होता हैं|

जैविक कीटनाशक क्या हैं  

जैविक कीटनाशक दो या दो से अधिक जैविक पदार्थो को मिक्स करके बनाया जाता हैं , जो कीटो की अंडे ,लार्वा , आदि को नुकसान पहुता हैं , साथ में यह पौधों के लिए जैविक उर्वरक वा हार्मोन्स का भी काम करता हैं , जिससे पौधे में स्वतः ही कीट पतंगों को , रोकने की क्षमता विकसित कर लेता हैं | जैसे की  गौ मूत्र +मदार की पत्ती + तम्बाखू की पत्ती +नीम की तेल  इन सभी को मिक्स करके 7-10 दिन तक सड़ाने के बाद पानी में घोल करके छिडकाव करने से  पत्ती खाने वाला इल्ली  , माहो , आदि किट मर जाते हैं जबकि पौधों को अच्छा पोषक तत्व भी मिल जाता हैं | 

Organic Insecticide  के प्रयोग और फायदे 

  जैविक कीटनाशक का प्रयोग फसल में, फसल बोवाई के बाद कभी भी किया जा सकता हैं , इससे पौधों पर कोई बुरा प्रभाव नही पड़ता हैं, बल्कि इससे पौधों का विकास अच्छा होता हैं तथा पौधों के अन्दर किट बीमारी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करता हैं जो पुरे पौधे के जीवनकाल वा आने वाले फसल के बोवाई के बाद भी पौधे में बना रहता हैं, जैविक कीटनाशक की दूसरी सबसे अच्छी बात यह हैं की इसके हानिकारक प्रभाव अन्य जीवो के लिए बहुत कम या नही भी होता हैं , और इसलिए फसल में जैविक कीटनाशक  छिडकाव करने के 15-24 घंटे बाद  वह फसल सीधे खाने योग्य हो जाता हैं जबकि किट पतंगे 12 घंटे के अन्दर ही मर जाते हैं, और इसप्रकार से सब्जी वाली फसल  को दवाई छिड़कने के बाद बाजार में बेचने के लिए 5-7 दिन का इंतिजार नही करना पड़ता हैं , कैसे करे एक सफल जैविक खेती  इसके लिए किसानो को वर्तमान में विचार जरुर करना चाहिये क्योकि यह समय की  मांग नही बल्कि एक सुरक्षित खेती करने का तरीका हैं |

Organic Insecticide बनाने के तरीके :-

जैविक कीटनाशक मुख्य रूप से दो प्रकार से बनाया जाता हैं , अवसान विधि और सामग्रियों को सड़ाकर , अवसान विधि में पौधों के जड़, तना, छाल , पत्ती  आदि को एक विशेष प्रक्रिया के माध्यम से रस निकाला जाता हैं , जिसका प्रयोग फसलो के किटो को मरने के लिए किया जाता हैं यह बहुत तेज असरकारी होता हैं तथा इसकी बहुत कम मात्रा (लगभग 1 लीटर दवाई ) एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होता हैं , जबकि सड़ाकर बनाने वाले जैविक कीटनाशक में किसान अपने फार्म में मौजूद जैसे की , गौ मूत्र नीम , करंज की पत्ती या खली या फिर तेल आदि  को आपस में मिलाकर कुछ दिन तक सड़ने के लिए रख देते हैं , और उसके बाद इस मिक्सचर को  छान कर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करते हैं , इस में दवाई की प्रति एकड़ 15-20 किलो की जरुरत पड़ता हैं |

घर में Organic Insecticide कैसे बनाये :-

घरेलु स्तर पर  अपने फसल की सुरक्षा के लिए जैविक कीटनाशक बड़ी आसानी से बना सकते हैं, जो किसानो के आसपास ही मौजूद होता हैं , जैसे की गौ मूत्र, नीम , करंज , लहसुन , हल्दी , छाछ या मट्ठा , तम्बाखू  आदि  ऐसे हैं जिसे कुछ दिन सड़ाने के बाद एक बेहतरीन कीटनाशक के रूप में बदला जा सकता हैं , जो फसलो और अन्य जीवो के सुरक्षित होता हैं :-

पत्ती  खाने वाले इल्ली , फुल या तनो की रस चूसने वाले कीटो की नियंत्रण के लिए , 10 लीटर गौ मूत्र को एक मटके में भर ले  इसमें 2 किलो  नीम, की पत्ती , 2 किलो मदार की पत्ती ,2 किलो सीताफल की पत्ती, 200 ग्राम तम्बाखू को  सुखा कर या तम्बाखू को छोड़कर हरी अवस्था में सब को एक साथ मिलाकर अच्छे से कुच कर लुगदी जैसे बनाकर गौ मूत्र से भरे मटके में डाल दे और मटके के मुख को पत्ते या कपडे से कस कर बांध दे अब इसे 10-15 दिन तक सड़ने के लिए रख दे ध्यान रहे बीच-बीच में इस मिक्सचर को लकड़ी की डंडे से सीधी वा उल्टी दिशा में गुमा कर मिक्स करते रहे , 15 दिन बाद इस मिक्सचर को 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करे , इसके अलावा एक किलो ग्राम लहसुन को अच्छे से कुंच कर पेस्ट बना ले अब इसमें 500 ग्राम शुद्ध हल्दी पावडर, एक लीटर नीम या करंज के तेल में  डाल कर 7-10 दिन सड़ने के लिए छोड़ दे 10 दिन बाद जरुरत के हिसाब से या फिर 100 लीटर पानी में घोल बनाकर फसलो में छिडकाव करे |

इस दवाई से पत्ती खाने वाले किट , फली बेधक , माहो , पत्ती लपेटने वाले किट , वा  समस्त प्रकार के किट के नियंत्रण के लिए अति उपयोगी हैं |

इसके अलावा 1 लीटर पुराने छाछ या मट्ठे में 250 ग्राम तम्बाखू के पावडर  , 500 मिलीलीटर करंज के तेल और 1 लीटर गौ मूत्र को मिलाकर 7 दिन के लिए सड़ाने के लिए छोड़ दे अब इसे 50 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करे इससे फसलो की उपरी सतह पर रहने वाले समस्त प्रकार की किट को नियंत्रित करता हैं |

इसके अलावा दीमक ,तना छेदक के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए नीम या करंज की खली को फसल बोने से पहले खेत में अच्छे से मिला दे , ये फसल को खाद के साथ कीटनाशक का भी काम करता हैं , इसके अलावा बीज को बोने से पहले नीम या करंज के तेल से उपचार करके बोने से दीमक और जड़ गलने की समस्या में कमी पाई गई हैं | 

बाजारों में मिलने वाले Organic Insecticide :-

इस प्रकार की दवाई पौधों की  जड़, तना, छाल , पत्ती  आदि को एक विशेष प्रक्रिया के माध्यम से रस निकाल कर बनाया जाता हैं, जो एक ही दवाई कई प्रकार का काम करता हैं , जैसे की फुल वा फलो की संख्या में वृद्धि करता हैं , पौधों की  रोग किट प्रतिरोधक क्षमता में विकास करता हैं |  इस प्रकार के उत्पाद में हमारे द्वारा प्रयोग किया गया प्रमुख उत्पाद हैं |

Protecto :- 
यह हर्बल एंटी एक्स-अर्क उन्नत पर आधारित उत्पाद हैं | यह भूमि जनित , वातावरण जनित , पौधे और बीज जनित रोगों की रोकथाम करता हैं साथ में यह सभी प्रकार की कीटो को मारने का काम करता हैं और फसल को सुरक्षित रखता हैं तथा किटो को फसलो में फिर से हमला करने से रोकता हैं |इसे सभी प्रकार की फसल में प्रयोग कर सकते हैं इस दवाई की 1-2 ml दवाई को 1 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव कर सकते हैं 

Protecto

विजया 666:-

यह हर्बल प्रजातियों के पौधे से निस्सरण से बनाया गया हैं जो सभी प्रकार के प्राम्भिक विकास स्थिति के किटो को जैसे इल्ली सुंडी रस चूसने वाले किट आदि को नियंत्रित करता हैं तथा पौधों का विकास बहुत अच्छे से होता हैं वा किटो के प्रति पप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता हैं जिससे उत्पादन में बढ़ोतरी देखा गया हैं , इस दवाई को 2.5 ml को 1 लीटर पानी के हिसाब से घोल बनकर छिडकाव कर सकते हैं , यह सभी फसलो के लिए उपयुक्त हैं तथा छिडकाव के 12-15 घंटे बाद फसलो के फल पत्ती आदि को खा सकते हैं , 


इसके अलावा और कुछ दवाई हैं जो बहुत असरकारी हैं :-

ये दवाई भी किटो को मारने के लिए बहुत असरकारी हैं 

फसलो में जैव पदार्थो का कीट नियंत्रण के लिए उपयोग :- 

प्रकृति में कुछ ऐसे भी जीव हैं जो फसल को नुकसान पहुचाने वाले जीव के अंडे लार्वा, एडल्ट को खाकर या उसमे रोग उत्पन्न करके उसे नस्ट कर देते हैं , जिससे फसल एक लबे समय के लिए सुरक्षित हो जाता हैं | उन जीवो में प्रमुख हैं :-


एन.पी.वी (न्यूक्लियर पॉलीहेड्रासिस वायरस)

न्यूक्लियर पॉलीहेड्रासिस वायरस (एन.पी.वी.) पर आधारित हरी सूंडी़ (हेलिकोवर्पा आर्मीजे़रा) अथवा तम्बाकू सूंड़ी (स्पोडाप्टेरा लिटूरा) का जैविक कीटनाशक है जो तरल रूप में उपलब्ध है। इसमें वायरस कण होते हैं जिनसे सूंडी द्वारा खाने या सम्पर्क में आने पर सूंडियों का शरीर 2 से 4 दिन के भीतर गाढ़ा भूरा फूला हुआ व सड़ा हो जाता हे, सफेद तरल पदार्थ निकलता है व मृत्यु हो जाती है। रोग ग्रसित तथा मरी हुई सूंडियां पत्तियों एवं टहनियों पर लटकी हुई पाई जाती हैं। 

एन.पी.वी. कपास, फूलगोभी, टमाटर, मिर्च, भिण्डी, मटर, मूंगफली, सूर्यमुखी, अरहर, चना, मोटा अनाज, तम्बाकू एवं फूलों को नुकसान से बचाता है। प्रयोग करने से पूर्व 1 मिली एन.पी.वी. को 1 लीटर पानी में घोल बनाये तथा ऐसे घोल को 250 से 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 12 से 15 दिनों के अंतराल पर 2 से 3 छिड़काव फसलों के लिए उपयोगी हैं। छिड़काव सांयकाल को किया जाय तथा ध्यान रहे कि लार्वा की प्रारम्भिक शैशवावस्था में अथवा अंडा देने की स्थिति में प्रथम छिड़काव किया जाय। एन.पी.वी. की सेल्फ लाइफ 01 माह है।

ब्यूवेरिया बैसियाना

यह एक फफूंदी जनित उत्पाद है, जो विभिन्न प्रकार के फुदकों को नियंत्रित करता है। यह लेपीडोप्टेरा कुल के कैटरपिलर, जिसमें फली छेदक (हेलियोथिस), स्पोडाप्टेरा, छेदक तथा बाल वाले कैटरपिलर सम्मिलित हैं, पर प्रभावी है तथा छिड़काव होने पर उनमें बीमारी पैदा कर देता है जिससे कीड़े पंगु हो जाते है और निष्क्रिय होकर मर जाते हैं। यह विभिन्न प्रकार के फसलों फलों एवं सब्जियों में लगने वाले फली बेधक पत्ती लपेटक, पत्ती खाने वाले कीट, भूमि में दीमक एवं सफेद गीडार आदि की रोकथाम के लिए लाभकारी है।

प्रयोग विधि

भूमि शोधन हेतु ब्यूवेरिया बैसियान की 2.5 किग्रा० प्रति हे० लगभग 25 किग्रा० गोबर की खाद् में मिलाकर अन्तिम जोताई के समय प्रयोग करना चाहिये।खाई फसल में कीट नियंत्रण हेतु 2.5 किग्रा० प्रति हे० की दर से 400-500 लीटर पानी में घोलकर सायंकाल छिड़काव करें। जिस आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर दोहराया जा सकता है। इसकी सेल्फ लाईफ 1 वर्ष है।

बी. टी. (बेसिलस थ्यूनिरजिएन्सिस)

5 प्रतिशत डब्लू.पी. बी.टी. एक बैक्टिरिया आधारित जैविक कीटनाशक है जो सूंडियों पर तत्काल प्रभाव डालता है। इससे सूंड़ियों पर लकवा, आंतों का फटना, भूखापन तथा संक्रमण होता है तथा वे दो से तीन दिन में मर जाती है। यह पाउडर एवं तरल दोनों रूपों में उपलब्ध है। इसका प्रयोग मटर, चना, कपास, अरहर, मूंगफली, सुरजमुखी, धान फूलगोभी, पत्ता गोभी, टमाटर, बैंगन, मिर्च तथा भिण्डी में उपयोगी एवं प्रभावशाली है। बी.टी. का प्रयोग छिड़काव द्वारा किया जाता है। प्रति हेक्टर 0.5 से 1.0 किग्रा० मात्रा को 500 से 700 लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर दो से तीन बार छिड़काव लाभकारी है। इसकी सेल्फ लाइफ 1 वर्ष है।

क्राइसोपर्ला

क्राइसोपर्ला नामक हरे कीट जिनकी लम्बाई 1 से 1.3 सेमी० ०, पंख लम्बे हल्के रंग के पारदर्शी, सुनहरी आंखे तथा 5 एन्टिना धारक होते है, के लार्वा सफेद मक्खी, माहूँ जैसिड थ्रिप्स आदि के अंडो तथा लार्वा को खा जाते है, को प्रभावित खेतों में डाला जाता है, इनका जीवन चक्र निम्न प्रकार है:-

अंडा अवधि 3-4 दिन लार्वा अवधि 11-13 दिन

प्यूपा अवधि 5-7 दिन व्यस्कता 35 दिन

अंड क्षमता 300-400 अंडे - -

क्राइसोपर्ला के अंडों को कोरसियरा के अंडों के साथ लकड़ी के बुरादे में बाक्स में आपूर्ति किया जाता है। इनके लार्वा कोरसियरा के अंडो को खाकर वयस्क बनते है। विभिन्न फसलों में क्राइसोपर्ला के 50000 से 100000 लार्वा या 500 से 1000 वयस्क प्रति हेक्टर डालने से कीटो का नियंत्रण भली प्रकार से होता है। सामान्यतः दो बार इन्हें छोड़ना चाहिए। क्राइसोपर्ला के अंडों को 10 से 15 डिग्री से पर रेफ्रीजेरेटर में 15 दिनों तक रखा जा सकता है। सामान्य तापमान पर इनका जीवन चक्र प्रारम्भ हो जाता है।

ट्राइकोडरमा

ट्राइकोडरमा एक घुलनशील जैविक फफूँदीनाशक है जो ट्राइकोडरमा विरडी या ट्राइकोडरमा हरजिएनम पर आधारित है। ट्राइकोडरमा फसलों में जड़ तथा तना गलन/सड़न, उकठा (फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम, स्क्लेरोशिया डायलेक्टेमिया) जो फफूंद जनित है, के नियंत्रण हेतु लाभप्रद पाया गया है। धान, गेहूं, दलहनी फसलें, गन्ना, कपास, सब्जियों, फलों एवं फल वृक्षों पर रोगों से यह प्रभावकारी रोकथाम करता है।

ट्राइकोडरमा के कवक तन्तु फसल के नुकसानदायक फफूँदी के कवक तन्तुओं को लपेट कर या सीधे अन्दर घुसकर उनका जीवन रस चूस लेते है और नुकसानदायक फफूंदों का नाश करते हैं। इसके अतिरिक्त भोजन स्पर्धा के द्वारा कुछ ऐसे विषाक्त पदार्थ का स्राव करते हैं जो बीजों के चारो और सुरक्षा दीवार बनाकर हानिकारक फफूंदों से सुरक्षा देते हैं। ट्राइकोडरमा से बीजों में अंकुरण अच्छा होकर फसलें फफूंद जनित रोगों से मुक्त रहती हैं एवं उनकी नर्सरी से ही वृद्धि अच्छी होती है।

Traykodarma का प्रयोग विधि :-

कन्द/कॉर्म/राइजोम/नर्सरी पौध का उपचार 5 ग्राम ट्राइकोडरमा को एक लीटर पानी में घोल बनाकर डुबोकर करना चाहिए तत्पश्चात् बुवाई/रोपाई की जाय।बीज शोधन हेतु 4 ग्राम ट्राइकोडरमा प्रति किलोग्राम बीज में सूखा मिला कर बुवाई की जाय।भूमि शोधन हेतु एक किलोगा्रम ट्राइकोडरमा केा 25 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर एक सप्ताह तक छाया में सुखाने के उपरान्त बुवाई के पूर्व प्रति एकड़ प्रयोग किया जाय।बहुवर्षीय पेड़ों के जड़ के चारो ओर गड्ढा खोदकर 100 ग्राम ट्राइकोडरमा पाउडर केा मिट्टी में सीधे या गोबर/कम्पोस्ट की खाद के साथ मिला कर दिया जाय।खड़ी फसल में फफूंदजनित रोग के नियंत्रण हेतु 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से 400-500 लीटर पानी में घोलकर सायंकाल छिडकाव करें। जिससे आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर दोहराया जा सकता है।

यह एक जैविक उत्पाद है किन्तु खुले घावों, श्वसन तंत्र एवं आंखों के लिए नुकसानदायक है। अतः इसके प्रयोग समय सावधानियां बरतनी चाहिए। इसके प्रयोग से पहले या बाद में किसी रासायनिक फफूँदनाशक का प्रयोग न किया जाय। ट्राइकोडरमा की सेल्फ लाइफ एक वर्ष है।

Organic pesticide के लिए Traykodarma का उत्पादन कैसे करे ?


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 Soil Bio Nutrient क्या हैं और इसका खेती में प्रयोग 
Bio Soil Nutrient | जैविक मृदा उर्वरक 


जैविक रूप से भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए  Soil Bio Nutrient का प्रयोग करना चाहिए , क्योकि  इसके प्रयोग से हानिकारक कीट बीमारी को आसानी से  कंट्रोल किया जा सकता , साथ ही साथ मिट्टी की स्वस्था को भी बेहतर  रखा जा सकता हैं , Bio soil  nutrient का प्रयोग करने से फसल की गुणवत्ता में सुधार  होता  हैं और कम लगत में अधिक वा अच्छी  फसल लिया जा सकता हैं , जिसका बाजार भाव भी अच्छा मिलता  , अब सरकार भी जैविक खेती करने के लिए प्रोत्सहन कर रहा हैं |

कार्बनिक खाद , या जैविक पदार्थो से निर्मित उर्वरको का प्रयोग करने से मिट्टी द्वारा उत्पन्न होने वाले हानिकारक कीड़ो के जीवन जीवन चक्र पर  बुरा प्रभाव डालता हैं जिससे इन कीटो की संख्या में कमी आता  हैं और फसल सुरक्षित हो जाता हैं | 
इसी प्रकार से मृदा जनित बीमारी का भी अंत हो जाता हैं ,  इस प्रकार से कीट, बीमारी को नियंत्रित करने के लिए हानिकारक रासायनिक दवाओ का प्रयोग  करना नही पड़ता जिससे एक तरफ तो किसानो की पैसे बचते ही हैं   साथ में लाभदायक जीव जंतु को भी बचाते हैं जो फसलो को नुकसान पहुचने वाले कीड़ो को खा कर नस्ट करते हैं, किसान जब फसल उगाने के लिए रासायनिक खाद जैसे की , सुपर फास्फेट , यूरिया , DAP आदि का प्रयोग करता हैं ,तो इससे फसल बहुत अच्छे से कम समय में विकास तो कर लेता हैं लेकिन , कीट बीमारी की मार को सहन करने की क्षमता बहुत कम होता हैं जिससे किसान दवाई खरीदने के लिए अतरिक्त पैसे खर्च करता हैं , 
इसके अलावा रासायनिक खाद या उर्वरक मिट्टी को नीचे से  कड़ा कर देता हैं जिसके कारण जमीन के अन्दर पानी का रिसाव बंद होने लगता हैं , खेत से पैदा होने वाले फसल में उन प्रयोग होने वाले उर्वरक का अंश भी रह जाता हैं जो खाने वाले के अंदर जा कर शारीर में कई बीमारी को जन्म दे देता हैं | 

Bio soil Nutrient क्या हैं ?

Bio Soil Nutrient ,जैविक पदार्थो से बनाया गया उर्वरक हैं जो भूमि की उर्वरक क्षमता को बढ़ता हैं , मृदा की भौतिक, जैविक , गुणवत्ता को बेहतर बनाता हैं , जिससे मिट्टी में जल धारण करने की क्षमता बढ़ता हैं , मिट्टी में लाभकारी जीवो की संख्या में बढ़ोतरी होता हैं , जो किसी भी फसल को उगाने के लिए उपयुक्त होता हैं | 

जैविक उर्वरक और जैविक खाद में अंतर 

 जैविक उर्वरक , जैविक पदार्थो को संश्लेषित करके बनाया जाता हैं , जो तरल और ठोस दोनों अवस्था में हो सकता हैं , जबकि जैविक खाद , जीवो के अवशेष या पदार्थो को गढ़े में सडा कर बनाया जाता हैं जो ठोस रूप में होता हैं जैसे की गोबर की खाद , कम्पोस्ट की खाद , केचुए की खाद और इसे प्रयः फसल बोने के पहले ही खेत में डाला जाता हैं  |

जैविक उर्वरक को, जैविक खाद के साथ मिलाकर भी खेत में डाल सकते हैं और खड़ी फसल में भी छिडकाव कर सकते हैं , किन्तु खड़ी फसल में छिडकाव करने के लिए , स्प्रे या अन्य जैविक खाद जैसे की केचुए की खाद में मिलाकर प्रयोग किया जाता हैं , इसके अलावा कई ऐसे जैविक उर्वरक भी हैं जिसे यूरिया ,DAP के साथ भी मिलाकर प्रयोग किया जा सकता हैं |

प्रमुख जैविक उर्वरक :-

 

Soil Bio Nutrient Gold

प्रयोग विधि :-

यह उर्वरक  घोल के रूप में आता हैं, जो  पौधों के लिए जरुरी NPK पोषक तत्व की कमी को पूरा करने में सक्षम हैं | जो वनस्पति में सुधार करने के साथ ही साथ पादप प्रजनन की क्रिया को बढ़ाता हैं , इसका प्रयोग फसल के किसी भी अवस्था में तथा लगभग सभी प्रकार की फसल में किया जा सकता हैं | 2 ml को एक लीटर पानी में घोल कर के  छिडकाव किया जाता हैं , यह क्रिया 15 दिन के अंतरल पर दोहरा दे इससे इसका रिजल्ट अच्छा आता हैं | 

फायदे :-

यह वनस्पति विकास विशेष रूप से पत्ते , तना , शाखाओं और पत्तियों को पीला होने से रोकता हैं | जड़ वृद्धि बीज अंकुरण और फुल को उतेजित करता हैं | इसके अलावा यह रोग प्रति रोधक के साथ साथ मिट्टी की जलधारण क्षमता को बढ़ाता हैं मिट्टी को मुलायम बनाता हैं ,पौधे में आवश्यक प्रोटीन बनाने में मदद करता हैं जिससे अधिक संख्या में फुल फल लगते हैं |

Soil  Black  Bio Nutrient


प्रयोग विधि :-

यह उर्वरक ठोस रूप में आता हैं जो चाय पत्ती के सामान काला दिखाई देता हैं , इसमें 95% ह्यूमिक एसिड तथा 5 % फेल्विक एसिड  तथा 60 प्रकार के एक्टिव बायो सूक्ष्म तत्व होता हैं , जो  पानी में शीघ्र घुलनशील होता हैं , जिससे यह नमी मिलते ही घुल जाता हैं , इस उर्वरक को जैविक खाद वा रासायनिक की किसी भी खाद में मिलाकर, वा कीटनाशक दवाई में मिलाकर , या फिर टपक सिचाई के माध्यम से  फसल की किसी भी अवस्था में  किया जा सकता हैं, इसके अलावा इसे .0.5-1 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी में घोल करके खाड़ी फसलो में छिडकाव कर सकते हैं , तथा इसका उपयोग सभी प्रकार की फसल में किया जा सकता हैं | यह उर्वरक 50 -100 ग्राम एक एकड़ के लिए पर्याप्त होता हैं |

फायदे :-

मिट्टी की सरचना में सुधार करता हैं व जल धारण क्षमता को बढ़ाता हैं  पौधों में बीज अंकुरण की क्षमता को बढ़ाता हैं एवं जड़ो का शीघ्र विकास करता हैं ,जिससे पोषक तत्वों के केटायन एक्सचेंज कैपेसिटी को बढाकर पोषक तत्वों को कम समय में पौधों के सभी भागो में फैलाता हैं , लाभकारी जीवाणु एवं तत्वों को आलेट्रावाईलेट किरणों द्वारा होने वाले विघटन से बचाता हैं , पौधों में रोग एवं किटो की प्रति प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता हैं , इस उर्वरक से फसलो की भंडारण क्षमता में बढ़ोतरी होता हैं |


Bio Flowering Agent

प्रयोग विधि :-

पॉवर नाम का यह बायो प्रोडक्ट घोल के रूप में आता हैं जो  पौधों में फूलो की संख्या में का विकास करता हैं , तथा इसका प्रयोग लगभग सभी प्रकार की फसलो में छिडकाव के माध्यम से किया जा सकता हैं , छिडकाव करने के लिए 1.5 ml उर्वरक को 1 लीटर पानी के हिसाब से घोल तैयार करे और इसे फसलो में कम से कम 7-8 दिन और अधिकतम 15-20 दिन के अंतर में 3 छिडकाव करे , अधिकाश कीटनाशक के साथ प्रयोग कर सकते हैं  |

फायदा :-

पावर, क्लोरोफिल संश्लेषण में सुधार करता हैं जिससे पौधों का समग्र विकास होता हैं , फुल और फल को गिरने से रोकता हैं तथा बीजो का अंकुरण क्षमता में सुधार होता हैं , अनाज ,तिलहन वा समस्त बीज वाली फसल में   पोचे दाने को कम करता हैं , जिससे अधिक उपज होता हैं , दाना चमकदार और वजनदार होता हैं |


Josh B5 Bio Insecticide वा flowering Agent

प्रयोग विधि :-
यह बायो एजेंट घोल के रूप में आता हैं जिसका प्रयोग खड़ी फसल में छिडकाव के माध्यम से किया जाता हैं , यह फसलो की फुल, फल को बढ़ाने के साथ कीड़ो को भी मारने की क्षमता रखता हैं  , तथा लबे समय तक कीड़ो के आक्रमण से फसलो को बचाता हैं | इसका प्रयोग सभी फसलो में, फसल के किसी भी अवस्था में किया जा सकता हैं | 2 ml दवा को एक लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर 3-4 बार 15 दिन के अन्तराल में  छिडकाव करे 

फायदा :-
इसके प्रयोग से पोषक तत्वों का फसल दुवरा अच्छी तरह से उपयोग होता हैं . फसल में हानिकारक किट समाप्त होते हैं तथा फसल की प्रति रोधक क्षमता बढती जिससे किटो के हमले के खिलाफ फसल का रक्षा तंत्र सक्रीय होता हैं , फुल की संख्या और फल धारण करने की क्षमता प्रभावी रूप से बढता हैं | तथा उच्च गुणवत्ता वाली उपज प्राप्त होता हैं .

इसके अलावा भी कई Soil Bio Nutrient हैं जिसका काम ऊपर उलेख किये गए बायो प्रोडक्ट के सामान ही हैं तथा उपयोग या प्रयोग विधि भी सामान हैं .


 



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