ह्यूमिक एसिड एक बहुत बढ़िया Organic प्रोडक्ट हैं जिसके इस्तेमाल से फसलो की वृद्धि जबरजस्त देखा गया हैं
जून 05, 2021
navjevankrshi
जैविक-उत्पाद
जून 03, 2021
navjevankrshi
खेती
चने की खेती को अधिक लाभदायक बनाने के लिए Chickpea या gram की उन्नत Cultivation करना जरुरी हैं , साथ ही चने की विभिन्न प्रकार की बाजार मांग को भी ध्यान रखना होगा जिससे चने की खेती करने वाले किसानो gram की फसल से अधिकतम लाभ मिल सके।
भारत के लगभग सभी राज्यों में चने की खेती अक्टूबर से लेकर नवंबर की अंतिम सप्ताह तक बोई जा सकती हैं। किसानो को एक बात का ध्यान रखना चाहिये जिस खेत में पिछले वर्ष चना की फसल लेने के दौरान बीमारी की समस्या हुई थी उस खेत में अगली फसल दलहनी की ना ले। इससे किट बीमारी की जीवन चक्र प्रभावित होता हैं और फसल बच जाता हैं। चने की खेती सिंचित वा असिचित दोनों की अवस्था में किया जा सकता हैं
चने का उपयोग कई प्रकार से किया जाता हैं , जैसे की चने की हरी साग , हरे चने , हरे चने को भुजा हुवा, सब्जी , भुना हुवा चना , दाल , बेसन , आदि के रूप में किया जाता हैं , चना एक दलहनी फसल होने के करण यह खेतो की मिट्टी को लाभ तो पहुचाता ही हैं साथ में चना एक उच्च कोटि की प्रोटीन वा अमीनो अम्ल से परिपूर्ण होने की वजह से मानव वा पशु चारा के लिए उत्तम खाद्य फसल हैं। चने में अच्छी मत्रा में खनिज वा अन्य विटामिन काफी अच्छी मत्रा में पाया जाता हैं , जो सेहत के लिए लाभदायक हैं। चने वा गुड खाने से शारीर को मजबूती मिलती हैं जिससे कई प्रकार की बीमारी से शारीर बचा रहता हैं।
उन्नत प्रकार से चने की खेती करने के लिए निम्न बातो को ध्यान में रखना चाहिये ;-
वैसे तो अच्छी सिचाई व्यवस्था होने से चने की फसल लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में लिया जा सकता हैं किन्तु अच्छी पैदावार के लिए भारी दोमट , कन्हार , मिट्टी सबसे अच्छा रहता हैं ,क्योकि इन मिट्टियो में ढेला अधिक बनता हैं जो चने की जड़ो के लिए अच्छा होता हैं। क्योकि चने के जड़ो में पाए जाने वाले राइजोबियम जीवाणु हवा से नत्रोजन को मिट्टी में फिक्स करने में सरलता होता हैं। साथ ही कम पानी में भी अच्छी पैदावार मिल जाता हैं .
चना तीन प्रकार का होता हैं 1 काला चना 2 गुलाबी चना 3 काबुली या छोले चना
काला चना की प्रमुख किस्म :-
गुलाबी चना की प्रमुख किस्मे :-
काबुली या छोले चने की प्रमुख किस्मे :-
चने की फसल में सिचाई :- दलहनी फसल में बहुत हल्की सिचाई करना चाहिये इसके लिए स्प्रिंकलर सिचाई सबसे अच्छा होता हैं .
नवंबर 17, 2020
navjevankrshi
खेती
![]() |
| सब्जी वाली मटर की जैविक एवं उन्नत खेती से बने मालामाल |
मटर एक बहुउपयोगी फसल हैं जिसका प्रयोग हरी वा सुखी दोनों ही अवस्था में किया जाता हैं। , जबकि मटर की मांग बाजार में हमेसा बना रहता हैं , वर्तमान में हरी मटर की मांग सूखे मटर की अपेक्षा कंही अधिक हैं , ऐसे में किसान सब्जी वाली हरी मटर की जैविक एवं उन्नत खेती से मालामाल हो सकते हैं। भारत के लगभग सभी प्रदेशो के किसान मटर की खेती अक्टूबर से लेकर दिसम्बर के माध्य तक आसानी से किया जा सकता हैं , इस समय हरी मटर का उत्पादन भी अधिक होता।
अक्टूबर 23, 2020
navjevankrshi
कृषि-व्यावसाय
![]() |
मशरूम उत्पादन एक ऐसा उत्पादन हैं जिसे घर के अन्दर उगाया जाता हैं , और इसकी खेती भारत में मई जून को छोड़कर पुरे वर्ष भर किया जा सकता हैं , ऐसे किसान जिनके पास खेती करने के लिए पर्याप्त खेत नही हैं ऐसे किसान भी अपने घर के एक छोटे से कमरे में मशरूम की खेती को अपने आय का साधान बना सकते हैं।
मशरूम जिसे फुटू या पीहरी भी कहा जाता हैं ,मशरूम कुकुरमुत्ता नही बल्कि यह फफूंदो का फलनकाय हैं , जो पौष्टिक ,रोगरोधक , स्वादिष्ट तथा विशेष महक के कारण आदि काल से एक महत्वपूर्ण खाद्य आहार हैं , जो बिना पत्ती बिना कलिका बिना फुल के भी फल बनाने की अतभुत क्षमता रखता हैं। मौसम की अनुकूलता एवं सघन वनों के कारण भारत में प्राकृतिक रूप से जंगलो में बड़ी मात्र में विभिन्न प्रजाति के मशरूम उगता हैं जिसमे से अधिकतर खाने योग्य नही होता , और जो खाने योग्य होता हैं उसका बाजार मांग भी अधिक हैं।
मशरूम के प्रमुख उपयोगिता :-
मशरूम का प्रयोग खाने में कई तरह से होता हैं जैसे की सब्जी , आचार , पुरवा ( सुखा सब्जी ), वा कई प्रकार की नमकीन बनाने में भी मशरूम का प्रयोग होता हैं , इसके अलावा मशरूम का उपयोग बहुमूल्य टॉनिक के रूप में औषधि बनाने में किया जाता हैं जिसकी मांग कई देशो में लगतार बढ़ रहा हैं।
मशरूम खाने के फायदे :-
मशरूम उगाने में किसी भी प्रकार की रासायनिक खाद या दवाई का छिडकाव नही किया जाता हैं , जिससे मशरूम एक उच्च प्रकार का सुरक्षित खाद्य पदार्थ हैं , मशरूम में लगभग 22-35 प्रतिशत उच्च कोटि की प्रोटीन पायी जाती है जिसकी पाचन शकित 60-70 प्रतिशत तक होती है। जो पौधों से प्राप्त प्रोटीन से कही अधिक होती है। इस प्रोटीन में शरीर के लिये आवश्यक सभी अमीनो जैसे की अम्ल, मेथियोनिन, ल्यूसिन, आइसोल्यूसिन, लाइसिन, श्रीमिन, ट्रिप्टोफेन, वैलीन, हिस्टीडिन और आर्जीनिन आदि की बड़ी मात्र में प्राप्ति हो जाती है, जो अन्य मांस या दाल,अनाज आदि में नही पाया जाता हैं। मशरूम में 4-5 प्रतिशत कार्बोहाइडेटस पाये जाते हैं जिसमें मैनीटाल 0.9, हेमीसेलुलोज 0.91, ग्लाइकोजन 0.5 प्रतिशत विशेष रूप से पाया जाता है। साथ ही पर्याप्त मात्रा में रेशे भी पाया जाता हैं जो पाचन क्रिया को ठीक करता हैं , जबकि मशरूम में वसा बहुत कम मात्र में पाया जाता हैं जबकि सोडियम साल्ट नहीं पाया जाता है। जिसके कारण मोटापे, गुदा तथा हदय घात रोगियों के लिये आदर्श आहार है, हदय रोगियों के लिए कोलेस्ट्राल, वसा एवं सोडियम साल्ट सबसे अधिक हानिकारक पदार्थ होते हैं।मशरूम में विटामिन A, D तथा K नहीं पाया जता है परन्तु एगॉस्टेराल् पाया जाता है, जो मानव शरीर के अन्दर विटामिन डी में परिवर्तित हो जाता है। इसमें आवश्यक विटामिन जैसे थायमिन, राइबोफ्लेविन, नायसिन, बायोटिन, एस्कार्बिक एसिड, पेन्टोथिनिक एसिड भी पाए जाते हैं , मशरूम स्वास्थ्य के लिये सभी प्रमुख खनिज लवण जैसे -पोटैशियम, फास्फोरस, सल्फर, कैलिशयम, लोहा,ताँबा, आयोडीन और जिंक आदि प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। यह खनिज अस्थियों, मांसपेशियों, नाड़ी संस्थान की कोशिकाओ तथा शरीर की क्रियाओं में सक्रिय होते हैं , इस प्रकार मशरूम एक उच्च कोटि के खाद्य होने के कारण लोगो में कुपोषण की समस्या को खत्म कर सकता हैं।
उत्पादन योग्य मशरूम की किस्म वा तकनीकी जानकारी :-
भारत में प्राकृतिक रूप से जंगलो, खेत-खलियानों में अनेको प्रकार की मशरूम उगते हैं किन्तु उसमे से केवल कुछ ही प्रजातियों को खाया जाता हैं , जबकि व्यावसायिक स्तर में केवल कुछ ही प्रकार की मशरूम की उत्पादन किया जाता हैं , जो आयस्टर मशरूम , पैरा मशरूम , सफेद दुधिया मशरूम , सफेद बटन मशरूम प्रमुख हैं , जिनकी मांग लगतार बढ़ रहा हैं।
मशरूम कैसे उगाये /मशरूम उगाने के तकनीक :-
आयस्टर मशरूम जिसे टिंगहरी भी कहा जाता हैं का उत्पादन किसान भाई अपने छोटे से साफ सुथरे कमरे में बड़ी आसानी से कर सकते हैं इसके लिए किसानो को नीचे बताये गए चरणों को ध्यान रखना होगा :-
- 100 लीटर पानी में 7.5 ग्राम बाविस्टिन एवं 125 मी.ली. फार्मेलिन को अच्छे से मिक्स कर दे।
- फिर इसमें 12 किलो ग्राम गेहू का भूसा या धान की पैरा कुट्टी को डुबो दे और ऊपर से पालीथीन की शीट से 10-12 घंटे के लिए ढक दे , ध्यान रहे पूरा गेहू का भूसा या पैरा कुट्टी पानी में अच्छे से डूबे रहे हो सके तो इसके ऊपर कोई पत्थर आदि वजनी चीज रख दे।
- 10-12 घंटे बाद उपचारित गेहू के भूसा या पैरा कुट्टी को किसी जाली या बास की टोकनी के ऊपर रख दे जिससे पूरा पानी आसानी से निकाल जाये , जब पूरा पानी निथर जाये उसके बाद भूसा या कुट्टी को साफ पालीथीन शीट पर 2-3 घंटे के लिए छाया में फैला दे।
- अब सूखे 12 किलो ग्राम भूसा या कुट्टी उपचारित करने वा छाया में सुखाने के बाद लगभग 40 किलो ग्राम हो जायेगा , इसमें 3 प्रतिशत की दर से 2 किलो ग्राम मशरूम बीज को अच्छे से मिक्स कर दे।
- अब 5 किलोग्राम की क्षमता वाले पालीथीन बैग में 4-4 किलो ग्राम मशरूम बीज युक्त भूसा या कुट्टी को अच्छे से दबा दबाकर भरे और फिर पालीथीन की मुख को नाइलान रस्सी से बांध से और सूजे की मदद से पालीथीन की नीचे को 2-3 छिद्र कर दे।
- बैग रखने से 24 घंटे पहले कमरों में 2 प्रतिशत फार्मेलिन ( एक लीटर पानी में 2 मिली.लीटर दावा ) का छिडकाव कर देना चाहिये उसके बाद बीज युक्त थैलों को रेख पर रखे 15-20 दिन में कवक जाल पुरे पालीथीन के अन्दर फ़ैल जाता हैं।
- अब पालीथीन को नये ब्लेड की सहायता से सावधानी पूर्वक काट कर हटा दे और कवक जाल की बंडलो को नाइलान की रस्सी से बांध कर लटका दे।
- अब इस बण्डल में सुबह शाम साफ पानी हजारे की माध्यम से छिडकाव करे एवं कमरे का तापमान 24-28 से.डिग्री। तक एवं आद्रता 85-90 प्रतिशत बनाये रखे , प्रकाश के लिए खिडकियों को 3-4 घंटे के लिए खोल दे या फिर खिड़की की व्यवस्था ना हो तो 4-5 घंटे टूयबलाइट को चालू रखे।
- बण्डल को लटकाने के 2-3 दिन में मशरूम की कलिका बनने शुरु हो जाते हैं जो अगले 3-4 दिन में तोड़ने योग्य हो जाता हैं।
- जब मशरूम की कलिका पंख की आकार की हो जाये तब इन्हें मरोड़कर तोड़ लिया जाता हैं।
- मशरूम पहली तुड़ाई के 6-7 दिन बाद दूसरी तुड़ाई के लिए तैयार हो जाता हैं एवं तीसरी फसल दूसरी तुड़ाई के 7 दिन बाद तैयार हो जाती हैं , इस प्रकार से 30-40 दिन में आयस्टर मशरूम के एक फसल से लाभ कमा सकते हैं।
पैरा मशरूम की उत्पादन विधि :
जो भी किसान भाई पैरा मशरूम उगाना चाहते हैं , वो बड़ी आसानी से उगा सकते हैं , बाजार में पैरा मशरूम की मांग सबसे ज्यादा हैं। तथा इसकी लागत भी अन्य मशरूम की अपेक्षा कम हैं।
- पैरा मशरूम उगाने के लिए मुख्य रूप से पैरे का इस्तेमाल किया जाता हैं। इसमें धान की पैरा को 1.5 फिट लबे काट कर 1/2 फिट चौड़े बंडल तैयार कर लिया जाता हैं और इस बण्डल को 14-16 घंटे तक 2 प्रतिशत कैलिशयम कार्बोनेट युक्त साफ पानी में भिगो दे।
- इसके बाद पानी को निथार कर इन बंडलो में उबलते हुए गर्म पानी डाल कर निर्जीवीकृत किया कर लिए जाता हैं, और फिर पानी को निथर लिया जाता हैं , इसके बाद बण्डल को एक के ऊपर एक 4-5 लेयर पत्थर या लकड़ी की रेख पर रखते हैं , और प्रत्येक लेयर पर डालो की चुनी को छिडकते जाते हैं वा 0.5 प्रतिशत मशरूम बीज को भी डालते जाते हैं।
- अब बीज युक्त बंडलो को अच्छी तरह से पालीथीन की शीट से ढक दे इस समय कमरे का तापमान 32-34 डिग्री से. होना चाहिये।
- 6-8 दिन में कवक जाल फ़ैल जाता हैं , अब पालीथीन की शीट को बंडलो में से हटा दे व हल्का हजारे के माध्यम से साफ पानी का छिडकाव करे इस समय कमरे का तापमान 28--32 डिग्री से. होना चाहिये जबकि नमी 80 प्रतिशत होना चाहिये।
- यदि कमरे का तापमान अधिक हो तो खिड़की को 2-3 घंटे के लिए खोल दे , या कमरे के तापमान बढ़ाने के लिए बल्व जलाये।
- कवक जाल फैलने के बाद 2-3 दिन में कलिकाए बनना शुरु हो जाता हैं जो अगले 4-5 दिन में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाता हैं।
सफेद दुधिया मशरूम की खेती :-
यह बहुत ही स्वादिस्ट होता हैं और यह केसिंग मिट्टी जो की 5-6 दिन पहले ,खेत की मिट्टी एवं रेत 1:1 मिलाकर तैयार किया जाता हैं , में उगाया जाता हैं किन्तु पहले मशरूम की स्पनिग गेहू की भूसा या पैरा कुट्टी में करते हैं उसके बाद केसिंग मिट्टी की परत लगा देते हैं ,
- फार्मेलिन 135 मी.ली. एवं 7.5 ग्राम बाविस्टिन दावा को 125 लीटर पानी में घोलकर अच्छे से मिलाये इस मिक्स किये गए पानी में 12-14 किलो ग्राम गेहू की भूसा या पैरा कुट्टी को 8-10 घंटे के लिए भिगोये और पालीथीन की शीट से अच्छी तरह से ढक दे।
- 8-10 घंटे बाद उपचार किये गए भूसा या कुट्टी को पानी से बहर निकलकर पानी को अच्छे से निथर ले , इस निथारे गए उपचारित कुट्टी या भूसे को छायादार स्थान में पालीथीन की शीट पर 2 घंटे के लिए फैला कर सुखा दे।
- अब उपचारित भूसा या कुट्टी लगभग 40 किलो ग्राम का हो जायेगा इसे 10 भाग में बाट दे
- 5 किलो क्षमता वाली पालीथीन बैग में भूसे को 4 प्रतिशत की दर से परत विधि द्वरा बिजाई करते हुए अच्छे से दबाकर भरे वा थैली की मुख को नाइलान की रस्सी से बांध से वा निचे साइड पर 3-4 छेद कर दे
सफेद बटन मशरूम :-
अक्टूबर 15, 2020
navjevankrshi
जैविक-उत्पाद, Organic Farming
![]() |
| ट्राईकोडार्मा विरिडी का कृषि में प्रयोग |
- Traykodarma virdi कृषि में उपयोग
- Production Of Traykodarma virdi ?
- Traykodarma virdi का खेतो में उपयोग करने से लाभ
किसानो के लिए फसल उत्पादन को बढ़ाने वा ,फसल उत्पादन में लगने वाले खर्च को कम करने के लिए Traykodarma virdi का महत्वपूर्ण स्थान हैं , यह एक जीवाणु हैं जो पौधों में लगने वाले ,सूत्रकृमि व फफूंद जनित रोगों से पौधों को सुरक्षा प्रदान करता हैं जो जैविक खेती के लिए अति उत्तम हैं।
फसलो को सूत्रकृमि , व फफूंद बड़ा ही नुकसान पहुचाता हैं , जिसकी रोकथाम समय पर ना किया जाये तो पूरा फसल ही बर्बाद हो जाता हैं , किसान भाई सूत्रकृमि वा फफूंद जनित रोगो से फसलों को बचाने के लिए , महंगे से महंगे रासायनिक दवाई का प्रयोग करता हैं जो किसानो की आर्थिक स्थिति पर भारी असर डालता हैं साथ में भूमि ,पानी। वायु वा अन्य जीवो पर बुरा असर छोड़ता हैं वो अलग ही हैं जिससे आज पूरा किसान वर्ग परेशान हैं, इस लिए किसान अब रसायन मुक्त खेती करने की ओर अग्रसर हो रहे हैं ।
ट्राईकोडार्मा विरिडी एक जीवाणु हैं जो फसलों की कई प्रकार की बीमारी को ठीक करने में बहुत असरकारी पाया गया हैं जैसे की धान में ब्लास्ट की समस्या , टमाटर ,चना अदि फसल में जड़ ,तना , गलने की समस्या , तथा , मुंग उड़द कद्दू वर्गी आदि फसलों के चूर्णी फफूंदी रोग को ठीक करने में असरकारी सिद्ध हुआ हैं।
Traykodarma virdi कृषि में उपयोग :-
ट्राईकोडार्मा विरिडी का मुख्य रूप से बीज उपचार , मृदा उपचार वा खाड़ी फसल में छिडकाव , कृषि कचरों को सड़ाने आदि में किया जा सकता हैं , बीज उपचार के लिए किसी प्लास्टिक की डिब्बा या मिट्टी के मटके या बीज उपचार करने वाली मशीन में एक किलो ग्राम बीज प्रति 10 ग्राम ट्राईकोडार्मा विरिडी को मिलाये वा 10 से 15 ml पानी मिलाकर अच्छे से मिक्स करे और फिर बीज को हवा में 30 मीनट से एक घंटे के लिए फैला कर सुखा ले इसके बाद खेतो में बोवाई कर दे इससे मृदाजनित रोग किसी भी प्रकार का नही होता हैं , वही मृदा उपचार के लिए , 4-6 किलोग्राम ट्राईकोडार्मा विरिडी को 40 किलो सूखे गोबर की खाद में मिलाकर प्रति एकड़ आखरी जुताई करते समय छिड़क दे, इससे मिट्टी की फफूंद वा सूत्र कृमि तो मरते ही हैं साथ में खेतो में पड़े फसलो व खरपतवार के सूखे अवशेष सड़कर मिट्टी में मिल जाते हैं जो जीवांश खाद का काम करता हैं , खाड़ी फसलो में छिड़कने के लिए 10 ग्राम ट्राईकोडार्मा विरिडी को एक लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करे इससे धान के ब्लास्ट , मुंग ,उड़द , कद्दू वर्गी आदि की भभूतिया रोग ठीक हो जाता हैं। इसके अलावा जैविक खाद बनाने के दौरान खाद को अच्छे से कम समय में सड़ाने वा उच्च क्वालिटी के खाद बनाने के लिए ट्राईकोडार्मा विरिडी की पावडर को छिड़क दे ,जो जैविक अपशिष्ट को मात्र 30 दिन के अन्दर अच्छे से सडा कर अच्छे खाद में परिवर्तित कर देता हैं।
Traykodarma virdi का खेतो में उपयोग करने से लाभ :-
यह एक जैविक जीवाणु हैं जो पौधों में होने वाले मृदाजनित बीमारी को नियंत्रित करता हैं तथा मिटटी की भौतिक , जैविक दशा में सुधार करके फसलों की विकास के लिए एक अच्छा माध्यम तैयार करता हैं। जिससे फसलों की गुणवत्ता व उपज में 10-20 प्रतिशत तक की वृद्धि होता हैं। ट्राईकोडार्मा विरिडी की इस्तेमाल से रासायनिक दवाई से मिट्टी, पानी वायु वा अन्य जीव को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता हैं वा फसल उत्पादन की लागात को कम किया जा सकता हैं। इसके अलावा किसान ट्राईकोडार्मा विरिडी का घरेलु सामग्री से उत्पादन कर सकता हैं जिसे खुद अपने फसल में उपयोग कर सकता हैं व अन्य किसानो को भी बेच सकते हैं जो किसानो के लिए एक आय का स्त्रोत भी बन सकता हैं।
Production Of Traykodarma virdi ?:-
ट्राईकोडार्मा विरिडी का उत्पादन करना बहुत आसान वा सरल हैं ,जिसे किसान अपने घरेलु काम में आने वाले सामग्री का उपयोग करके कर सकता हैं। ट्राईकोडार्मा विरिडी की उत्पादन में चावल की छोटे-छोटे टुकड़े जिसे कनकी कहा जाता हैं , का प्रयोग होता हैं , जो किसानो के घर में आसानी से मिल जाता हैं। एक किलो ग्राम कनकी से बने ट्राईकोडार्मा विरिडी 10 किलोग्राम सूखे गोबर की खाद में मिलाने के लिए पर्याप्त होता हैं ,जिसे एक हेक्टेयर की खेत में प्रयोग कर सकते हैं।
ट्राईकोडार्मा जैव फफूंदनाशी का वृहद्उ त्पादन करने के लिए :-
सबसे पहले साफ एक किलो ग्राम चावल की कनकी ले |
अब चावल की कनकी को खौलते पानी में डालकर 1-2 मिनट के लिए पकाए और शीघ्र स्टील की छन्नी से जो स्प्रिट से साफ किया गया हो छान ले और हल्का गुनगुना होने तक ठंडा होने दे।
छोटे -छोटे चौकोन प्लास्टिक का डिब्बा ले जिसे स्प्रिट से अच्छे से साफ कर ले , गुनगुना किये गए कनकी में 2 ट्राइकोकैप केप्सूल या ट्राईकोडार्मा कल्चर का एक चमच पावडर को अच्छी से मिला दे , अब इसे प्लास्टिक के डिब्बे में एक सेंटीमीटर ऊपर तक भरे और दबाकर ढकन बंद कर दे।
इन भरे हुए डिब्बो को एक साफ सुथरा बंद कमरे में अलग अलग एक लाइन से लकड़ी या पत्थर की अलमारी या कबाड़ में रखे ध्यान रहे कमरे का तपमान 25-30 डिग्री से अधिक वा कम ना हो यदि तापमान कम हो तो साफ बोर से डिब्बो को ढक दे और यदि तापमान अधिक हो तो डिब्बो को गीली रेत पर रख दे।
डिब्बे भरने के तीसरे दिन से ट्राईकोडार्मा फफूंद उगना शुरू हो जायेगा , जो पहले सफ़ेद होगा और बाद में हरा हो जायेगा ,जिसे 7-8 दिन बाद उपयोग करने लायक हो जायेगा।
अब तैयार ट्राईकोडार्मा को डिब्बे से निकालकर खलबट्टा या मिक्सी की सहायता से बारीक़ पीस कर पावडर बना ले तथा इसे 100 ग्राम प्रति एक किलो सड़ी हुई सूखे गोबर की खाद या कंडे की साफ राख में मिलाकर , अपने इच्छा अनुसार थैली में भरकर सील करके छायादार जगहों में भंडार कर ले।
अब इसे किसान अपने खेतो में वा अन्य किसानो को बेचने के लिए प्रयोग कर सकते हैं। बेचने के लिए बिना राख या खाद में मिलाय ही बेच सकते हैं , लेकिन मृदा उपचार के लिए वा लबे समय तक भंडारित करने के लिए गोबर की खाद में मिलाना जरुरी हैं। बाकि के लिए किसी भी प्रकार राख या खाद में मिलाने की जरुरत नहीं हैं।
Traykodarma virdi का उत्पादन करने के लिए बाज़ारो में मिलने वाले Traykodarma virdi पावडर का भी ट्राइकोकैप केप्सूल के स्थान में प्रयोग कर सकते हैं |
अक्टूबर 14, 2020
navjevankrshi
कृषि-व्यावसाय
![]() |
| घरेलु कृषि व्यावसाय || Agriculture Home Business |
किसान भाई अपने उत्पाद का उचित और अच्छे भाव प्राप्त करने के लिए उन्हें अपने कृषि को घरेलु कृषि व्यावसाय या Agriculture Home Business में बदलना होगा , जिससे किसानो के पुरे परिवार को साल के अधिकतम समय तक रोजगार मिल सके वा अपने उत्पाद का अपना भाव तैय कर सके।
किसान अपने कृषि उत्पाद को लोगो की जरुरत के हिसाब से अंतिम उत्पाद में बदलकर बेचे तो उसे अधिक मुनाफा हो सकता हैं , तथा किसान के अधिकतर खाली समय का उपयोग इन उत्पादों को बनाने में किया जा सकता हैं , जिससे घर के सभी सदस्यों को काम मिल सकता हैं।
जब किसान अपने फसल को खेत से निकाल कर बाज़ारो तक बेचने के लिए लाते हैं , तो यह किसान अपने उत्पाद का भाव खुद तैय नहीं कर पाता हैं , जिससे किसान को कई बार नुकसान भी उठाना पड़ता हैं। लेकिन जब उन उत्पाद को नए उत्पाद में बदल दे तो किसान उन उत्पाद का मूल्य सेट कर सकता हैं वा उन प्रोडक्ट को अधिक समय तक स्टोर कर सकता हैं तथा दूर-दूर तक भेज सकता हैं। जैसे की आलू से चिप्स , भुजिया बनाकर वा आलू का आटा बनाकर बेचे या टमाटर की खेती करके , टमाटर की केचप। सॉस , मिक्स अचार , टोमेटो पावडर आदि बनाकर बेच सकते हैं ,जिससे किसानो को अधिक लाभ मिल सकता हैं , इस प्रकार की व्यावसाय को बड़े स्तर पर करने के लिए एक गाव के पुरे किसान या आसपास के अन्य गावो के किसान आपस में जुड़ कर एक उद्योग के रूप में कर सकते हैं , जिससे वर्ष भर किसानो द्वारा उत्पादित होने वाले उत्पाद को नए उत्पाद में बदलने का काम किया जा सकता हैं | इसप्रकार के व्यावसाय में , राइस मील , आटा मील , दाल मील , मसाला मील , तेल मील आदि हो सकते हैं तथा इन कार्यो से भूसा , खली आदि को पशु चारा , मुर्गी चारा , मछली चारा ,जैविक खाद आदि प्रोडक्ट बनाया जा सकता हैं जिससे किसानो को और अधिक लाभ हो सकता हैं |
कृषि पर आधारित घरेलु व्यावसाय :-
इस प्रकार की व्यावसाय किसान अपने उत्पाद को घर में ही कुछ सुविधावो को इकठा करके नए उत्पाद में बदल सकते हैं और मोटी रकम कमा सकते हैं। किसान जब फसल उगाकर बाजार में बेचता हैं तो किसानो के फसलो को बहुत कम भाव में खरीदा जाता हैं , और फिर उसी फसल को बाजार मांग के अनुसार नए उत्पाद में बदलकर ज्यादा भाव में बेचते हैं, जिससे खरीदारों को अधिक मुनाफा होता हैं , ऐसे में छोटे वा माध्यम वर्ग के किसानो के लिए कृषि पर आधारित घरेलु व्यावसाय एक अच्छा विकल्प हो सकता हैं। इस प्रकार की व्यावसाय में प्रमुख हैं | :-
चिप्स वा भुजिया निर्माण :-
हमारे देश में ड्राई फ़ूड खाने वालो की संख्या लगातार बढ़ रहा हैं , जिससे इस प्रकार की सामग्री की मांग लगातार बढ़ रहा हैं ऐसे में गाव में रहने वाले किसानो के लिए घरेलु स्तर पर ड्राई फूड का उत्पादन करना और उसे शहरो के बाजारों में बेचना एक फायदेमंद हो सकता हैं। चिप्स में आलू चिप्स , केले का चिप्स , मक्के का चिप्स , मैदे वा बेसन , आदि का चिप्स बना सकते हैं। जबकि भुजिया में मुंग दाल , मूंगफली वा बेसन को मिक्स करके , आलू की भुजिया , बेसन से दाल मोटा, मिक्सचर आदि बनाकर तथा इसे पैकिंग करके बाजार में बेचा जा सकता हैं जिससे किसानो को अधिक लाभ मिल सकता हैं।
पापड़ वा आचार निर्माण :-
किसान अपने खेत में मुंग की खेती करके मुंग की दाल , मुंग का बेसन वा बेसन से पापड़ बना सकता हैं जबकि किसान अपने खेतो में आवला , आम , नीबू , आदि से अमचुर पावडर , आम रस , आवले की लाडू , मुरबा , जूस , सामान्य आचार, और मिक्स आचार बनाकर बाजार में बेचा जा सकता हैं। यह सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता हैं जिसका मांग शहरो में काफी अधिक होता हैं।
बड़ी निर्माण :-
किसान अपने खेते में रखिया या कुम्हड़ा ,मुंग, उड़द , जिमीकंद , पपीता , मुली आदि को उगाकर , इसका प्रयोग बड़ी बनाने में किया जा सकता हैं , जैसे की कुम्हड़ा बड़ी , दाल बड़ी , पपीता बड़ी , मुली बड़ी , जिमीकंद की बड़ी , ये सभी बहुत स्वादिस्ट और पोष्टिक होता हैं , और इन सब में उड़द की दाल का प्रयोग किया जाता हैं , जिसकी मांग अब शहरो वा गाव में भी बढ़ रहा हैं।
मसाला निर्माण :-
छोटे वा माध्यम वर्ग के किसान , धनिया , जीरा , काली मिर्च , इलाची , मिर्च , हल्दी , लहसुन , अदरक , प्याज आदि की खेती करके , छोटे स्तर पर भी मसाला निर्माण कर सकते हैं जैसे की।, धनिया , जीरा , मिर्ची , हल्दी , आदि की पावडर , इसके अलावा मिक्स मसाला भी बनाया जा सकता हैं , तथा , लहसुन , अदरक , प्याज का पेस्ट भी बना सकते हैं और इन सबको पैकिंग करके बाजार में बेच सकते हैं जिनका मांग हमेसा लोगो में रहेगा। यदि किसानो के पास मसालों की पिसाई के लिए मशीन लगाने के लिए ज्यादा पैसे नही हैं तो किसान हाथो से चलने वाले घरेलु चक्की का प्रयोग कर सकते हैं।
आटा निर्माण :-
गाव के किसान जो मक्का गेहू धान , चना आदि उगाते हैं , वो लोग मक्के की आटा, गेहूं की आटा , नए चवाल की आटा वा दालो का बेसन निर्माण कर सकते हैं वर्तमान में इन सभी चीजो का मांग बहुत तेजी से बढ़ रहा हैं जो आने वाले समय में और भी विस्तार ले सकता हैं , जो किसानो के लिए बहुत अच्छा हो सकता हैं , यदि किसानो के पास आटा पीसने की मशीन लगाने के लिए अधिक पैसे नही हैं तो इसे हाथो से चलने वाले चक्की से भी पिसा जा सकता हैं जो मशीनों से पिसने वाले आटे से कई गुना अधिक स्वादिस्ट और पोष्टिक होता हैं।
इसके अलावा भी कई प्रकार के घरेलु कृषि व्यावसाय || Agriculture Home Business हो सकते हैं जैसे गेहू से आटा या मैदे का निर्माण फिर इससे नूडल , पानी पूरी का पूरी व कई प्रकार के मिठाई भी बना सकते हैं। जिसे पैकिंग करके नजदीकी बाजार में बेचा जा सकता हैं और किसान अच्छा मुनाफा कमा सकता हैं।
अक्टूबर 13, 2020
navjevankrshi
जैविक-उत्पाद, Organic Farming
![]() |
| जैविक कीटनाशक |
कृषि कार्य में रासायनिक पदार्थो के स्तेमाल से कृषि उत्पाद के साथ-साथ कृषि के लिए लाभकारी जीव , मिट्टी, पानी, वायु को काफी नुकसान पंहुचा हैं जिसका परिणाम यह हुवा की कृषि कार्य को बाधा पहुचाने वाले कीट पतंगों में रासायनिक पदार्थो के प्रति सहनशील पैदा हो चूका हैं जिससे ऐसे जीवो की संख्या में तेजी से विकास हो रहा हैं , जो कृषि के लिए एक बड़ी चुनौती हैं |
कृषि कार्य में बाधा पहुचाने वाले कीट पतंगों वा अन्य चुनौती को मजबूती से निपटने के लिए जैविक पदार्थ , जैसे की जैविक खाद या उर्वरक , जैविक कीटनाशक , जैविक रोग नाशक | सबसे आसरकारी हैं , इनके इस्तेमाल से जैव विविधता में संतुलन स्थापित होता हैं , जिससे कृषि के लिए लाभकारी जीवो की संख्या में बढ़ोतरी होता हैं जबकि हानिकारक जीवो संख्या नियंत्रित होता हैं | जिससे फसल उत्पादन में लागत कम आता हैं , और अच्छी गुणवत्ता के फसल तैयार होने के कारण देश और विदेशी बाजार में अच्छा मांग होता हैं|
जैविक कीटनाशक दो या दो से अधिक जैविक पदार्थो को मिक्स करके बनाया जाता हैं , जो कीटो की अंडे ,लार्वा , आदि को नुकसान पहुता हैं , साथ में यह पौधों के लिए जैविक उर्वरक वा हार्मोन्स का भी काम करता हैं , जिससे पौधे में स्वतः ही कीट पतंगों को , रोकने की क्षमता विकसित कर लेता हैं | जैसे की गौ मूत्र +मदार की पत्ती + तम्बाखू की पत्ती +नीम की तेल इन सभी को मिक्स करके 7-10 दिन तक सड़ाने के बाद पानी में घोल करके छिडकाव करने से पत्ती खाने वाला इल्ली , माहो , आदि किट मर जाते हैं जबकि पौधों को अच्छा पोषक तत्व भी मिल जाता हैं |
जैविक कीटनाशक का प्रयोग फसल में, फसल बोवाई के बाद कभी भी किया जा सकता हैं , इससे पौधों पर कोई बुरा प्रभाव नही पड़ता हैं, बल्कि इससे पौधों का विकास अच्छा होता हैं तथा पौधों के अन्दर किट बीमारी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करता हैं जो पुरे पौधे के जीवनकाल वा आने वाले फसल के बोवाई के बाद भी पौधे में बना रहता हैं, जैविक कीटनाशक की दूसरी सबसे अच्छी बात यह हैं की इसके हानिकारक प्रभाव अन्य जीवो के लिए बहुत कम या नही भी होता हैं , और इसलिए फसल में जैविक कीटनाशक छिडकाव करने के 15-24 घंटे बाद वह फसल सीधे खाने योग्य हो जाता हैं जबकि किट पतंगे 12 घंटे के अन्दर ही मर जाते हैं, और इसप्रकार से सब्जी वाली फसल को दवाई छिड़कने के बाद बाजार में बेचने के लिए 5-7 दिन का इंतिजार नही करना पड़ता हैं , कैसे करे एक सफल जैविक खेती इसके लिए किसानो को वर्तमान में विचार जरुर करना चाहिये क्योकि यह समय की मांग नही बल्कि एक सुरक्षित खेती करने का तरीका हैं |
जैविक कीटनाशक मुख्य रूप से दो प्रकार से बनाया जाता हैं , अवसान विधि और सामग्रियों को सड़ाकर , अवसान विधि में पौधों के जड़, तना, छाल , पत्ती आदि को एक विशेष प्रक्रिया के माध्यम से रस निकाला जाता हैं , जिसका प्रयोग फसलो के किटो को मरने के लिए किया जाता हैं यह बहुत तेज असरकारी होता हैं तथा इसकी बहुत कम मात्रा (लगभग 1 लीटर दवाई ) एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होता हैं , जबकि सड़ाकर बनाने वाले जैविक कीटनाशक में किसान अपने फार्म में मौजूद जैसे की , गौ मूत्र नीम , करंज की पत्ती या खली या फिर तेल आदि को आपस में मिलाकर कुछ दिन तक सड़ने के लिए रख देते हैं , और उसके बाद इस मिक्सचर को छान कर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करते हैं , इस में दवाई की प्रति एकड़ 15-20 किलो की जरुरत पड़ता हैं |
घरेलु स्तर पर अपने फसल की सुरक्षा के लिए जैविक कीटनाशक बड़ी आसानी से बना सकते हैं, जो किसानो के आसपास ही मौजूद होता हैं , जैसे की गौ मूत्र, नीम , करंज , लहसुन , हल्दी , छाछ या मट्ठा , तम्बाखू आदि ऐसे हैं जिसे कुछ दिन सड़ाने के बाद एक बेहतरीन कीटनाशक के रूप में बदला जा सकता हैं , जो फसलो और अन्य जीवो के सुरक्षित होता हैं :-
पत्ती खाने वाले इल्ली , फुल या तनो की रस चूसने वाले कीटो की नियंत्रण के लिए , 10 लीटर गौ मूत्र को एक मटके में भर ले इसमें 2 किलो नीम, की पत्ती , 2 किलो मदार की पत्ती ,2 किलो सीताफल की पत्ती, 200 ग्राम तम्बाखू को सुखा कर या तम्बाखू को छोड़कर हरी अवस्था में सब को एक साथ मिलाकर अच्छे से कुच कर लुगदी जैसे बनाकर गौ मूत्र से भरे मटके में डाल दे और मटके के मुख को पत्ते या कपडे से कस कर बांध दे अब इसे 10-15 दिन तक सड़ने के लिए रख दे ध्यान रहे बीच-बीच में इस मिक्सचर को लकड़ी की डंडे से सीधी वा उल्टी दिशा में गुमा कर मिक्स करते रहे , 15 दिन बाद इस मिक्सचर को 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करे , इसके अलावा एक किलो ग्राम लहसुन को अच्छे से कुंच कर पेस्ट बना ले अब इसमें 500 ग्राम शुद्ध हल्दी पावडर, एक लीटर नीम या करंज के तेल में डाल कर 7-10 दिन सड़ने के लिए छोड़ दे 10 दिन बाद जरुरत के हिसाब से या फिर 100 लीटर पानी में घोल बनाकर फसलो में छिडकाव करे |
इस दवाई से पत्ती खाने वाले किट , फली बेधक , माहो , पत्ती लपेटने वाले किट , वा समस्त प्रकार के किट के नियंत्रण के लिए अति उपयोगी हैं |
इसके अलावा 1 लीटर पुराने छाछ या मट्ठे में 250 ग्राम तम्बाखू के पावडर , 500 मिलीलीटर करंज के तेल और 1 लीटर गौ मूत्र को मिलाकर 7 दिन के लिए सड़ाने के लिए छोड़ दे अब इसे 50 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करे इससे फसलो की उपरी सतह पर रहने वाले समस्त प्रकार की किट को नियंत्रित करता हैं |
इसके अलावा दीमक ,तना छेदक के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए नीम या करंज की खली को फसल बोने से पहले खेत में अच्छे से मिला दे , ये फसल को खाद के साथ कीटनाशक का भी काम करता हैं , इसके अलावा बीज को बोने से पहले नीम या करंज के तेल से उपचार करके बोने से दीमक और जड़ गलने की समस्या में कमी पाई गई हैं |
बाजारों में मिलने वाले Organic Insecticide :-
इस प्रकार की दवाई पौधों की जड़, तना, छाल , पत्ती आदि को एक विशेष प्रक्रिया के माध्यम से रस निकाल कर बनाया जाता हैं, जो एक ही दवाई कई प्रकार का काम करता हैं , जैसे की फुल वा फलो की संख्या में वृद्धि करता हैं , पौधों की रोग किट प्रतिरोधक क्षमता में विकास करता हैं | इस प्रकार के उत्पाद में हमारे द्वारा प्रयोग किया गया प्रमुख उत्पाद हैं |
![]() |
| Protecto |
यह हर्बल प्रजातियों के पौधे से निस्सरण से बनाया गया हैं जो सभी प्रकार के प्राम्भिक विकास स्थिति के किटो को जैसे इल्ली सुंडी रस चूसने वाले किट आदि को नियंत्रित करता हैं तथा पौधों का विकास बहुत अच्छे से होता हैं वा किटो के प्रति पप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता हैं जिससे उत्पादन में बढ़ोतरी देखा गया हैं , इस दवाई को 2.5 ml को 1 लीटर पानी के हिसाब से घोल बनकर छिडकाव कर सकते हैं , यह सभी फसलो के लिए उपयुक्त हैं तथा छिडकाव के 12-15 घंटे बाद फसलो के फल पत्ती आदि को खा सकते हैं ,
इसके अलावा और कुछ दवाई हैं जो बहुत असरकारी हैं :-
प्रकृति में कुछ ऐसे भी जीव हैं जो फसल को नुकसान पहुचाने वाले जीव के अंडे लार्वा, एडल्ट को खाकर या उसमे रोग उत्पन्न करके उसे नस्ट कर देते हैं , जिससे फसल एक लबे समय के लिए सुरक्षित हो जाता हैं | उन जीवो में प्रमुख हैं :-
न्यूक्लियर पॉलीहेड्रासिस वायरस (एन.पी.वी.) पर आधारित हरी सूंडी़ (हेलिकोवर्पा आर्मीजे़रा) अथवा तम्बाकू सूंड़ी (स्पोडाप्टेरा लिटूरा) का जैविक कीटनाशक है जो तरल रूप में उपलब्ध है। इसमें वायरस कण होते हैं जिनसे सूंडी द्वारा खाने या सम्पर्क में आने पर सूंडियों का शरीर 2 से 4 दिन के भीतर गाढ़ा भूरा फूला हुआ व सड़ा हो जाता हे, सफेद तरल पदार्थ निकलता है व मृत्यु हो जाती है। रोग ग्रसित तथा मरी हुई सूंडियां पत्तियों एवं टहनियों पर लटकी हुई पाई जाती हैं।
एन.पी.वी. कपास, फूलगोभी, टमाटर, मिर्च, भिण्डी, मटर, मूंगफली, सूर्यमुखी, अरहर, चना, मोटा अनाज, तम्बाकू एवं फूलों को नुकसान से बचाता है। प्रयोग करने से पूर्व 1 मिली एन.पी.वी. को 1 लीटर पानी में घोल बनाये तथा ऐसे घोल को 250 से 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 12 से 15 दिनों के अंतराल पर 2 से 3 छिड़काव फसलों के लिए उपयोगी हैं। छिड़काव सांयकाल को किया जाय तथा ध्यान रहे कि लार्वा की प्रारम्भिक शैशवावस्था में अथवा अंडा देने की स्थिति में प्रथम छिड़काव किया जाय। एन.पी.वी. की सेल्फ लाइफ 01 माह है।
यह एक फफूंदी जनित उत्पाद है, जो विभिन्न प्रकार के फुदकों को नियंत्रित करता है। यह लेपीडोप्टेरा कुल के कैटरपिलर, जिसमें फली छेदक (हेलियोथिस), स्पोडाप्टेरा, छेदक तथा बाल वाले कैटरपिलर सम्मिलित हैं, पर प्रभावी है तथा छिड़काव होने पर उनमें बीमारी पैदा कर देता है जिससे कीड़े पंगु हो जाते है और निष्क्रिय होकर मर जाते हैं। यह विभिन्न प्रकार के फसलों फलों एवं सब्जियों में लगने वाले फली बेधक पत्ती लपेटक, पत्ती खाने वाले कीट, भूमि में दीमक एवं सफेद गीडार आदि की रोकथाम के लिए लाभकारी है।
भूमि शोधन हेतु ब्यूवेरिया बैसियान की 2.5 किग्रा० प्रति हे० लगभग 25 किग्रा० गोबर की खाद् में मिलाकर अन्तिम जोताई के समय प्रयोग करना चाहिये।खाई फसल में कीट नियंत्रण हेतु 2.5 किग्रा० प्रति हे० की दर से 400-500 लीटर पानी में घोलकर सायंकाल छिड़काव करें। जिस आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर दोहराया जा सकता है। इसकी सेल्फ लाईफ 1 वर्ष है।
5 प्रतिशत डब्लू.पी. बी.टी. एक बैक्टिरिया आधारित जैविक कीटनाशक है जो सूंडियों पर तत्काल प्रभाव डालता है। इससे सूंड़ियों पर लकवा, आंतों का फटना, भूखापन तथा संक्रमण होता है तथा वे दो से तीन दिन में मर जाती है। यह पाउडर एवं तरल दोनों रूपों में उपलब्ध है। इसका प्रयोग मटर, चना, कपास, अरहर, मूंगफली, सुरजमुखी, धान फूलगोभी, पत्ता गोभी, टमाटर, बैंगन, मिर्च तथा भिण्डी में उपयोगी एवं प्रभावशाली है। बी.टी. का प्रयोग छिड़काव द्वारा किया जाता है। प्रति हेक्टर 0.5 से 1.0 किग्रा० मात्रा को 500 से 700 लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर दो से तीन बार छिड़काव लाभकारी है। इसकी सेल्फ लाइफ 1 वर्ष है।
क्राइसोपर्ला नामक हरे कीट जिनकी लम्बाई 1 से 1.3 सेमी० ०, पंख लम्बे हल्के रंग के पारदर्शी, सुनहरी आंखे तथा 5 एन्टिना धारक होते है, के लार्वा सफेद मक्खी, माहूँ जैसिड थ्रिप्स आदि के अंडो तथा लार्वा को खा जाते है, को प्रभावित खेतों में डाला जाता है, इनका जीवन चक्र निम्न प्रकार है:-
अंडा अवधि 3-4 दिन लार्वा अवधि 11-13 दिन
प्यूपा अवधि 5-7 दिन व्यस्कता 35 दिन
अंड क्षमता 300-400 अंडे - -
क्राइसोपर्ला के अंडों को कोरसियरा के अंडों के साथ लकड़ी के बुरादे में बाक्स में आपूर्ति किया जाता है। इनके लार्वा कोरसियरा के अंडो को खाकर वयस्क बनते है। विभिन्न फसलों में क्राइसोपर्ला के 50000 से 100000 लार्वा या 500 से 1000 वयस्क प्रति हेक्टर डालने से कीटो का नियंत्रण भली प्रकार से होता है। सामान्यतः दो बार इन्हें छोड़ना चाहिए। क्राइसोपर्ला के अंडों को 10 से 15 डिग्री से पर रेफ्रीजेरेटर में 15 दिनों तक रखा जा सकता है। सामान्य तापमान पर इनका जीवन चक्र प्रारम्भ हो जाता है।
ट्राइकोडरमा एक घुलनशील जैविक फफूँदीनाशक है जो ट्राइकोडरमा विरडी या ट्राइकोडरमा हरजिएनम पर आधारित है। ट्राइकोडरमा फसलों में जड़ तथा तना गलन/सड़न, उकठा (फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम, स्क्लेरोशिया डायलेक्टेमिया) जो फफूंद जनित है, के नियंत्रण हेतु लाभप्रद पाया गया है। धान, गेहूं, दलहनी फसलें, गन्ना, कपास, सब्जियों, फलों एवं फल वृक्षों पर रोगों से यह प्रभावकारी रोकथाम करता है।
ट्राइकोडरमा के कवक तन्तु फसल के नुकसानदायक फफूँदी के कवक तन्तुओं को लपेट कर या सीधे अन्दर घुसकर उनका जीवन रस चूस लेते है और नुकसानदायक फफूंदों का नाश करते हैं। इसके अतिरिक्त भोजन स्पर्धा के द्वारा कुछ ऐसे विषाक्त पदार्थ का स्राव करते हैं जो बीजों के चारो और सुरक्षा दीवार बनाकर हानिकारक फफूंदों से सुरक्षा देते हैं। ट्राइकोडरमा से बीजों में अंकुरण अच्छा होकर फसलें फफूंद जनित रोगों से मुक्त रहती हैं एवं उनकी नर्सरी से ही वृद्धि अच्छी होती है।
कन्द/कॉर्म/राइजोम/नर्सरी पौध का उपचार 5 ग्राम ट्राइकोडरमा को एक लीटर पानी में घोल बनाकर डुबोकर करना चाहिए तत्पश्चात् बुवाई/रोपाई की जाय।बीज शोधन हेतु 4 ग्राम ट्राइकोडरमा प्रति किलोग्राम बीज में सूखा मिला कर बुवाई की जाय।भूमि शोधन हेतु एक किलोगा्रम ट्राइकोडरमा केा 25 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर एक सप्ताह तक छाया में सुखाने के उपरान्त बुवाई के पूर्व प्रति एकड़ प्रयोग किया जाय।बहुवर्षीय पेड़ों के जड़ के चारो ओर गड्ढा खोदकर 100 ग्राम ट्राइकोडरमा पाउडर केा मिट्टी में सीधे या गोबर/कम्पोस्ट की खाद के साथ मिला कर दिया जाय।खड़ी फसल में फफूंदजनित रोग के नियंत्रण हेतु 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से 400-500 लीटर पानी में घोलकर सायंकाल छिडकाव करें। जिससे आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर दोहराया जा सकता है।
यह एक जैविक उत्पाद है किन्तु खुले घावों, श्वसन तंत्र एवं आंखों के लिए नुकसानदायक है। अतः इसके प्रयोग समय सावधानियां बरतनी चाहिए। इसके प्रयोग से पहले या बाद में किसी रासायनिक फफूँदनाशक का प्रयोग न किया जाय। ट्राइकोडरमा की सेल्फ लाइफ एक वर्ष है।
Organic pesticide के लिए Traykodarma का उत्पादन कैसे करे ?
टमाटर की जैविक उन्नत खेती || तीखुर की खेती से कमाए लाखो रूपए प्रति एकड़ || जीरा की जैविक खेती || मेथी की जैविक खेती || धनिया की जैविक खेती || जैविक खेती कैसे करे || रसायन मुक्त खेती कैसे करे || Bio Nutrient किसान क्रेडिट कार्ड कैसे बनाये || किसान सम्मान का लाभ किसान कैसे ले
अक्टूबर 12, 2020
navjevankrshi
खेती
![]() |
| मिश्रित खेती और मिश्रित फसल से लाभ |
किसानो की सालाना आय को बढ़ाने के लिए मिश्रित खेती वा मिश्रित फसल का महतवपूर्ण योगदान होता हैं . साथ ही इस प्रकार के खेती या फसल उगाने से किसानो की संशाधनो का भरपूर उपयोग होता हैं , जिससे किसानो को नुकसान होने का खतरा बहुत कम होता हैं , खासकर यह छोटे वा माध्यम वर्ग के किसानो की लिए एक अच्छा माध्यम हो सकता हैं जिससे अपने छोटे से जमीन में कई प्रकार की फसलो को उगाकर या फसल उगाने के साथ ही अन्य पालन भी कर सकता हैं , जो कई प्रकार से लाभ दे सकता हैं |
वास्तव मे मिश्रित खेती वा मिश्रित फसल लगाना किसानो के लिए हमेसा फायदेमंद होता हैं , क्योकि जब एक चीज मौसम या अन्य प्रभाव से प्रभावित होता हैं तो उसका पूर्ति दूसरा खेती या फसल कर देता हैं , एक उदहारण के रूप में समझे तो एक टमाटर या आलू की खेती करने वाला यदि अपने खेत में फसल के साथ मधुमक्खी पालन+ मछली पालन करता हैं और यदि अधिक खराब मौसम या ठीक से बाजार भाव ना मिलने से टमाटर और आलू से नुकसान हो सकता हैं , लेकिन इस नुकसान की भरपाई मधुमक्खी पालन और मछली पालन से हो जायेगा | इस प्रकार से किसान अपने नुकसान को कम कर सकता हैं |
एक ऐसी खेती करने का तरीका जिसमे फसल उगाने के साथ साथ पशुपालन ,मछली पालन ,मधुमक्खी पालन , मुर्गी पालन , बतख पालन, आदि पालन एक साथ कर सकते हैं मिश्रित खेती कहलाता हैं , इस प्रकार की खेती वास्तव में अधिक लाभ देता हैं ,और किसान यही उम्मीद से इस प्रकार की खेती करना चाहता हैं |
अक्सर जो किसान मिश्रित खेती करते हैं उसमे सामन्य फसल उगाने के साथ , कुछ पशु को पाला जाता हैं , या मछली पालन किया जाता हैं , या फिर फसल के साथ मछली पालन ,मुर्गी पालन की किया जाता हैं , जिसका स्तेमाल दूध ,मास ,अंडा उत्पादन कर स्थानीय बाजारों में बेचने के लिए किया जाता हैं , जिससे किसानो को फसल के अलावा एक्स्ट्रा लाभ मिलता हैं , हमारे देश में इस प्रकार की बहुत सारे किसान हैं जो मिश्रित खेती कर रहे , लेकिन अभी भी बहुत किसानो में अधिकतम लाभ कमाने के लिए जागरूकता नही आई हैं | जिससे किसानो की आय में कोई खास प्रभाव नही देखा गया हैं ,
इस प्रकार की खेती में कुछ ही किसान कर पा रहे हैं जिनके पास थोड़ी बहुत जानकारी हैं , और अच्छा लाभ कमा पा रहे हैं , ये किसान अधिकतर जैविक खेती को फोकस करते हैं , जिससे मिश्रित खेती करना आसन वा सरल हो जता हैं , साथ ही इस प्रकार की खेती में लागत भी कम आता हैं , और संसाधनों का अच्छा इस्तेमाल होता हैं , जिससे किसानो को अधिक लाभ होता हैं | इस प्रकार की खेती में प्रमुख रूप से फसल उत्पादन के साथ दुग्ध व्यवसाय , मछली पालन ,मुर्गी पालन को किया जाता हैं
इस प्रकार की खेती में थोडा शुरुवाती लगात अधिक होता हैं किन्तु लाभ भी बहुत होता हैं जो लबे समय तक बिना को समस्या के मिल सकता हैं , इसमें किसानो की अपने संसाधनों को देखते हुए प्लानिंग करना होता हैं , हम एक अति उन्नत मिश्रित खेती की बात करे तो यदि किसान के पास कम से कम एक एकड़ भी जमीन हैं तो , उसमे किसान 50 डिसमिल में एक तालाब का निर्माण कर सकता हैं और 50 डिसमिल में सब्जियो वाली फसल को उगा सकते हैं जिससे अधिक लाभ होगा | , 50 डिसमिल में तालाब बनाने के बाद तालाब के अन्दर में ही सुविधा के अनुसार कलाम खड़ा करके या लोहे की खम्भे को गाड़ कर एक मुर्गीपालन के लिए जालीदार सेड का निर्माण करे मुर्गी के साथ बतख पालन के लिए अलग से सेड बनाये , इसके अलावा तालाब के मेड में मधुमक्खी का मधु शाला लगाये , अब तालाब में रोहू ,कतला मृगल तीनो का बीज एक साथ डाले क्योकि ये तीनो मछली पानी की क्रमंश उपरी, मध्य और निचली सतह में रहते हैं जिसे एक साथ पालने में आसानी होता हैं और भोजन के लिए कोई competition नही होता हैं और आसानी से एक साल के अन्दर 2 से 3 किलो तक बढ़ जाता हैं , जिससे 50 डिसमिल में ही 10-12 कुंटल तक मछली उत्पादन कर सकते हैं , तालाब के अन्दर बनाये सेड में मुर्गी वा बतख का पालन करे इससे मुर्गी से निकले अपशिस्ट नीचे पानी में गिर जायेगा जिसे बतख अपने पैरो से हल चल करके पुरे तालाब में फैला देगा , साथ में यह मछली के लिए भी बहुत अच्छा होता हैं एक तो मछली को कोई अलग से चारा देना नही पड़ता जबकि बतख के पानी को हल चल करने से पानी में आक्सीजन का बलेंस बना रहता हैं वा मछली में हल चल भी अच्छे से होता हैं जिससे मच्छली का विकास तेजी से होता हैं , इसके अलावा तालाब के मेड में बने मधु शाले में मधुमक्खी पालन करे जिससे फसलो में अच्छा परागड़ होगा साथ में शहद भी प्राप्त होगा | इसके अलावा पुरे तालाब के मेड में फूलो की खेती करे जिसे बाजार में बेचकर अच्छा लाभ कामा सकते हैं | यदि तालाब में हमेसा पानी बनांए रखने के लिए बोर आदि की व्यवस्था हो जाये तो बहुत अच्छा होता हैं .
इस प्रकार के मिश्रित खेती से प्रति वर्ष 10 कुंटल मछली 10 कुंटल मुर्गी , वा अच्छी नस्ल की 5 बतख से 3000 अंडे सालाना प्राप्त कर सकते हैं तथा 10-15 किलो शाहद सालाना प्राप्त होता हैं , इन सभी से लगभग 1,97000 रूपए की इनकम होता हैं इसके अलावा तालाब की मेड़ो पर लगे फुल से सालाना 15000 तक कमा सकते हैं वही 50 डिसमिल में लगे उन्नत सब्जियों के खेती से सालाना 100000 तक का इनकम हो सकता हैं इस प्रकार से देखे तो 1 एकड़ में सालाना की इनकम लगभग 3 लाख से ऊपर की कमाई होता हैं जबकि शुद्ध कमाई 2-2.5 लाख से भी अधिक हो सकता हैं क्योकि यह सिर्फ एक अकड़े के अनुसार एक माध्यम अनुमान ही हैं |
दो या दो से अधिक फसलो को एक साथ एक ही खेत में उगाने की प्रक्रिया को मिश्रित फसल कहते हैं , जैसे सरसों के साथ चना, आलू की फसल के साथ टमाटर ,मिर्च , बैगन आदि , इस प्रकार की फसल उगाने से कई लाभ होते हैं जैसे की किट बीमारी का नियंत्रण होता हैं वही कई फसल को एक साथ उगाने से सभी फसलो के अलग अलग भाव मिलने या किसी एक दो फसल के नुकसान होने से दुसरे फसल से अच्छा खासा पैसे बन जाता हैं | इस प्रकार की फसल इंटर क्रोपिंग के रूप में भी लिया जाता हैं |
लबी उम्र वाली मुख्य फसलो के बीच में कम उम्र के फसलो को लगाना इंटर क्रोपिंग कहलाता हैं जैसे नारियल के मुख्य फसल के साथ अन्नास , या काली मिर्च , या फिर गन्ने की दो लाइन के बीच आलू की एक लाइन लगाना , इंटर क्रोपिंग के अंतर्गत आता हैं , इससे खाली पड़े जमीन का इस्तेमाल अच्छे से हो जाता हैं , तथा अच्छा उत्पादन भी प्राप्त होता हैं |
आमतौर पर किसान दो या दो से अधिक फसलो के बीज को एक साथ मिलाकर छिड़कर बो देते हैं , जैसे की गेहू के साथ सरसों , या फिर सरसों के साथ चना आदि | इस प्रकार से बोई गई फसल कटाई के समय दिक्कत होता हैं क्योकि इसमें बीज मिलजाता हैं , जिसका बाजार मूल्य भी कम होता हैं |
उन्नत तरीके से मिश्रित फसल उगाने के लिए अलग-अलग फसलो को अलग-अलग लाइनों में बोना सबसे अच्छा हैं , जैसे की दो लाइन सरसों की उसके बाद एक या दो लाइन चने की और दो लाइन गेहू की , इस तरह से फसल लगाने से एक ही क्षेत्र में तीन प्रकार की फसल अच्छे से प्राप्त होता हैं ,
इसी प्रकार से सब्जी वाली फसल में आलू ,टमाटर , मिर्च ,बैगन के साथ मुली गोभी वर्गी सभी लगाना चाहिये , मक्का के साथ भेंडी , ग्वार सेमी उपयुक्त होता हैं , इसे एक -एक लाइन के अंतर में अलग -अलग फसल को लगा सकते हैं या फिर क्यारी बनाकर भी लगा सकते हैं जैसे की एक क्यारी में पूरा आलू उसके दुसरे क्यारी में गोभी , या भाजी वर्गी सब्जी को भी लगा सकते हैं ,
अधिक पानी चाहने वाली फसल के साथ कम पानी की मंग वाली फसल को ना लगाये |
बेल वाली फसल जैसे की करेला ,बरबट्टी के साथ अन्य फसल को ना लगाये हा इसे अलग-अलग क्यारी बनाकर जरुर लगा सकते हैं
अदलहनी फसल के साथ दाल दलहनी फसल को लगाये जैसे पालक , आलू ,टमाटर गोभी आदि के साथ मेथी फसल जरुर ले , इसी प्रकार से गेहू ,सरसों के साथ चना की फसल जरुर ले इससे मिट्टी की पोषक तत्वा अच्छा होता हैं ,
यदि ठीक तरीके से किया जाये तो मिश्रित खेती और मिश्रित फसल से सामान्य खेती या फसल से 20-50 % अधिक लाभ मिलता हैं , वही उपलब्ध संसाधनों का बहुत अच्छे से उपयोग होता हैं , बाजार की अधिकतम मांग को पूरा करके अच्छे भाव का लाभ उठा सकते हैं , मिश्रित खेती और मिश्रित फसल से किसानो को नुकसान होने के बहुत कम खतरा होता हैं ,
टमाटर की जैविक उन्नत खेती || तीखुर की खेती से कमाए लाखो रूपए प्रति एकड़ || जीरा की जैविक खेती || मेथी की जैविक खेती || धनिया की जैविक खेती || जैविक खेती कैसे करे || रसायन मुक्त खेती कैसे करे || Bio Nutrient || जैविक कीटनाशक || किसान क्रेडिट कार्ड कैसे बनाये || किसान सम्मान का लाभ किसान कैसे ले
अक्टूबर 11, 2020
navjevankrshi
Organic Farming
Chemical Free Farming कैसे करे
लगातार खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशक के प्रयोग से , खेती पर अधिक खर्च होता हैं ,जबकि किसी फसल को उगाने में होने वाले कुल खर्च की तुलना में उस फसल से होने वाले शुद्ध आय बहुत ही कम होता हैं , जिससे किसान कृषि को सिर्फ अपने जीवन यापन करने का साधान ही मानता हैं | और अपने बच्चो को खेती ना करे इसलिए पढ़ा लिखाकर, नौकरी करने के लिए तैयार करते हैं जिससे परिवार की आय में वृद्धि हो और जीवन यापन का स्तर ऊपर उठ सके |
किसी भी व्यक्ति के लिए शिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य हैं , इसलिए भारत की सविधान में डॉ.भीम राव अम्बेडकर ने सभी को समानता का अधिकार दिलाया हैं , किन्तु शिक्षा का मतलब किताबी ज्ञान को रट कर नौकरी करना कदापि नही हैं , शिक्षा का मतलब हैं , किसी भी चीज को बारीकी से समझने में पारंगत होना , और उसका उपयोग अपने जीवन ,परिवार ,समाज को बेहतर बनाने में करना हैं | आज जो दुनिया भर में छोटे -बड़े उद्योग पति हैं क्या वह पढ़ लिखकर नौकरी कर रहे हैं ? नही बल्कि वो लोग पढ़ लिख कर लोगो की उस जरुरत को बारीकी से समझा जो उनके लिए लाभदायक तो हैं ही साथ में दुनिया भर के लोगो की जरुरत को पूरा कर सके |
ठीक ऐसे ही हमारे किसान भाई या युवा पीढ़ी हैं उन्हें भी भविष्य की जरुरत को समझ कर खेती करने के तरीके और खेती से उत्पादन होने वाले उत्पाद को बेचने के तरीके में बदलाव करना जरुरी हैं , ताकि खेती में लोगो को अधिक लाभ हो , और अधिक से अधिक लोगो को रोजगार मिल सके |
मेरे प्रिया किसान भाई, और युवा मित्रो किसानो की हाथ में वो ताकत हैं जिसके सामने बड़े से बड़े उद्योग भी कुछ नही हैं ! किसी भी जीव को स्वस्थ जीवित रहने के लिए स्वस्थ खाना की जरुरत होता हैं , बिना खाना के कोई भी स्वस्थ और ना ही जीवित रह सकता हैं , ऐसे में कृषि को एक बड़ा उद्योग में बदला जा सकता हैं , जो लोगो को खाने पीने की सामग्री उपलब्ध करा सकता हैं |
उदहारण के रूप में देखे तो आज बाजार में जितने भी खाद्य पदार्थ हैं , वो सभी किसानो के द्वारा पैदा किया हुवा उत्पाद का परिवर्तित रूप हैं , जिसे कोई किसान अपने हाथो से ना बनाकर , किसी व्यक्ति की कम्पनी दुवारा निर्मित होता हैं , जैसे की आलू किसान उगाता हैं , लेकिन चिप्स कम्पनी बनाता हैं , गेहू किसान उगाता हैं , लेकिन ,आटा ,नुडल्स , आदि कम्पनी बनाता हैं , किसान धान उगाता हैं , लेकिन उसके धान का चावल निकालकर कम्पनी कई ब्रांड बना देता हैं , किसान तिलहन फसल उगाता हैं लेकिन कम्पनी उस फसल से तेल निकलता हैं |
ऐसे हजारो लाखो प्रोडक्ट हैं जो किसानो दुवारा उगाये गए फसल से तैयार होते हैं , यदि किसान फसल उगाने के बाद सीधे उस उत्पाद को ना बेच कर उसे अन्य उत्पाद में बदलकर बेचे तो ज्यादा लाभ कमा सकता हैं जैसे की यदि किसान धान उगाता हैं तो उसका चावल बनाये जिससे चावल का भाव अधिक मिलेगा , भूसा से तेल निकाले जिसका प्राइस अलग से मिलेगा , उसके बाद बचे भूसे को अपने खेत में खाद के रूप में प्रयोग करे , अब इसमें किसान को 3 फायदा हुवा एक चावल मिला यदि चाहे तो चावल का आटा , वा अन्य उत्पाद बनाकर बेच सकते हैं दूसरा तेल मिला और तीसरा खाद मिला | लेकिन यह पर एक किसान के लिए बहुत बड़ी समस्या हैं की इन सब को करने के लिए मशीनों की जरुरत होता हैं और उसके लिए पूजी की जरुरत होता हैं , साथ में यह से निकलने वाले उत्पाद को बेचने की व्यवस्था करना , यदि इस काम को एक गाव की सभी किसान या फिर आसपास गाव के जीतने भी किसान हैं वो सब मिलकर एक राइस मिल प्लांट लगाये और इस काम को सही तरीके से करे तो यह 100 % संभव हैं |
कृषि को लाभप्रद बनाने का दूसरा सबसे बड़ा माध्यम हैं की कृषि उत्पाद को नियत्रित करे , जिससे किसी भी उत्पाद का हर समय अधिकतम मांग बना रहे , जिससे किसानो को अधिक मूल्य प्राप्त होगा , इसी बात को हर छोटी -बड़ी कम्पनी ध्यान रखता हैं जब कम्पनी द्वारा उत्पादित किसी वास्तु का लोगो में अधिक मांग होता हैं तो उस मांग के बराबर या उस मांग से थोडा सा अधिक वास्तु का उत्पादन करता हैं और जब लोगो में मांग कम होता हैं तो अपने वास्तु का निर्माण भी कम कर देता हैं ,जिससे उस वास्तु को बनाने में होने वाले कुल खर्च में अधिक लाभ सके हैं |
लेकिन कृषि एक ऐसा क्षेत्र हैं जहा से उत्पादित होने वाले कृषि उत्पाद के बिना किसी का गुजारा भी नही हो सकता, ऐसे में किसान अपने उत्पादन को नियत्रित करके अच्छे गुणवत्ता वाली फसल को उगाये वा खुद से अपने उत्पाद को अन्य उत्पाद में बदलकर मार्केटिंग करे |
लगातार खेती कार्य में रासायनिक खाद वा कीटनाशक के प्रयोग से फसल उत्पाद की गुणवत्ता में बहुत ही कमी आई हैं ऐसे में किसानो को नियंत्रित फसल उत्पादन में रसायन मुक्त खेती बहुत ज्यादा लाभदायक हैं - इससे रासायनिक फसल उत्पादन में होने वाले कुल खर्च में 30-40%की कमी आता हैं , जबकि फसल की गुणवता अच्छी होने के कारण शुद्ध लाभ में 70% तक की वृद्धि होता हैं |
फसलो में रासायनिक खाद और कीटनाशक का प्रयोग करने से मिट्टी ,पानी तो दूषित होता ही हैं साथ में खाद और कीटनाशक को बनाने में प्रयोग होने वाले पदार्थ के अवशेष को पौधे जड़ वा पत्ती द्वारा अवशोषित कर लेता हैं , जो खाने के माध्यम से मानव वा पशु के शारीर में पहुच जाता हैं और धीरे-धीरे मांसपेशियों में जहरीले पदार्थ जमा होते रहने के कारण खतरनाक बीमारी उत्पन्न होता हैं , कैंसर , अल्सर, हार्ट अटेक , लोकवा , आदि बीमारी रासायनिक खेती के परिणाम हैं |
सोसायटी फॉर पेस्टिसाइड , साइंसेस ने ठीक ही कहा हैं , "न केवल हम अपने आप को जहर खिला रहे हैं , बल्कि आने वाले पीढ़ी का भविष्य भी खतरे में डाल रहे हैं | "
एक समय था जब रासायनिक खाद कीटनाशक का प्रयोग नही होता था ,तब अनाज ,दाल , वा अन्य सभी फसलो में एक शानदार खुशबू के साथ लाजवाब स्वाद होता था , जिससे लोग काफी अच्छा जीवन जीते थे , किन्तु तेज गति से जनसंख्या बढ़ने के कारण हरित क्रांति की शुरुवात हुवा जिसका मुख्य लक्षा किसी भी तरह से बढती हुई जनसंख्या के लिए भोजन की पूर्ति हो | और इसमें रासायनिक पदार्थो के उपयोग ने अपनी बड़ी भूमिका निभाया , और किसानो ने अपनी खेती में जल्द ही बड़ी मात्र में रसायन का प्रयोग किये , जिससे शुरुवात में किसानो को अच्छा लाभ हवा ,किन्तु समय के साथ-साथ , मिट्टी की भौतिक , जैविक दशा खराब वा फसलो को नुकसान पहुचाने वाले कीटो में रासायनिक दवाओ के प्रति सहनशील उत्पन्न होने लगा हैं , जबकि इन कीटो को खाने वाले मित्रा जीव नस्ट हो गए , जिससे कृषि में अधिक लगत लगाने के बावजूद भी उत्पादन कम हो रहा हैं जो किसानो के लिए बड़ी मुश्किल का विषय रह गया हैं |
उपरोक्त समस्या को देखते हुए रसायन मुक्त , जैविक खेती को अपनाना जरुरी हो गया हैं , और यह तभी संभव हैं जब किसान अपने आसपास मित्र जीवो का सरंक्षण , वा खेती में जैविक खाद का प्रयोग करेंगे |
वे जीव जो फसलो में लगने वाले रोग वा कीट को खाकर नस्ट करते हैं जैसे की मेढक , केकड़ा ,साप , गिरगिट , चिडया आदि हैं, जो कीट पतंगों के अड़े, लार्वा, एडल्ट को खा कर नस्ट कर देते हैं , जबकि केचुवा सुत्रक्रिमी की अंडे लार्वा को खाकर नस्ट कर देता हैं |
ऐसा खाद जो जीवो के अवशेषो को सड़ाकर बनाया जाता हैं जैविक खाद कहलाता हैं , जैसे की गोबर की खाद , कम्पोस्ट की खाद, केचुए की खाद , वा हरी खाद प्रमुख हैं इसके अलावा आज जैविक पदार्थो को संश्लेषित करके जैव उर्वरक भी बनाया जा रहा हैं जो फसलो के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो रहा हैं |
वर्तमान में बहुत सारे किसान पशुपालन नही करते हैं जिससे उनके लिए जैविक खेती करना मुश्किल लग सकता हैं लेकिन इसका भी समाधान हैं , यदि किसानो के पास पशु नही हैं और वो जैविक खेती करना चाहते हैं तो वो लोग कम्पोस्ट खाद, केचुए की खाद , या फिर हरी खाद का इस्तेमाल कर सकते हैं .
* कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए किसान अपने फसल अवशेष वा खेत में उगे खरपतवार का उपयोग कर सकता हैं , इससे किसान को अपने घरो का कचरा या फसल अवशेष को बेहतर खाद के रूप में इस्तेमाल कर सकता हैं , खाद बनाने के लिए आवश्कता अनुसार लबाई चौड़ाई और गहराई कम से कम 1 मीटर और अधिकतम 2 मीटर खेत के एक कोने में गढ़ा खोद ले अब इसमें जितने भी फसल अवशेष वा खरपतवार हैं उसे डाल दे, यदि हो सके तो ट्राईकोडारमा पावडर का छिड़कर भी कर दे , और फिर पानी का छिडकाव करके मिट्टी से ढक दे , 60-90 दिन में खाद प्रयोग के लिए तैयार हो जाता हैं .
* केचुए की खाद बनाने के लिए किसान अपने फसल अवशेष के साथ गोबर का प्रयोग कर सकता हैं का प्रयोग कर सकता हैं , केचुए की खाद बनाने के लिए , टैंक का निर्माण किया जाता हैं जिसमे गोबर और अन्य जैविक पदार्थो को मिक्स करके भरा जाता हैं तथा इसमें आइसीनिया फेटिडा नामक केचुवा को छोड़ देते हैं जो टैंक में भरे सभी जैविक पदार्थो को खाकर खाद में बादल देता हैं , इसका व्यावसायिक उत्पादन भी किया जा सकता हैं जो मार्केट में 10-20 रूपए प्रति किलो बिकता हैं .
* हरी खाद इसमें किसान अपने खेत में ढेचा , ज्वार , बाजरा , मुंग ,उड़द, मक्का , सन जुट आदि की बीज को खेत में छिड़ककर बो दिया जाता हैं तथा पौधों में अच्छी मात्रा में पत्ती हो जाने के बाद खेत को जोत कर सभी फसल को मिट्टी में दबा दिया जाता हैं तथा पानी का छिडकाव कर दिया जाता हैं जिससे 30-45 दिन में खाद बनकर मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाता हैं , यह विधि उस स्थान पर करना चाहिये जहा पर पानी की अच्छी व्यवस्था होना चाहिए |
* इसके अलावा तिलहन फसलो के खली , वा हड्डी का चुरा भी खाद के रूप में प्रयोग किया जाता हैं, जिससे फसल को सभी प्रकार की पोषक तत्व आसानी से मिल जाता हैं , खली के प्रयोग से फसलो में कीट वा बीमारी का प्रकोप बहुत कम हो जाता हैं |
* धान की फसल के लिए एजोला , हरी काई , बहुत अच्छा खाद का काम करता हैं , खास करके उस स्थान में जंहा , लाइन में रोपाई या बोवाई की जाती हैं तथा धान की फसल में ब्याशी किया जाता हैं , पानी भरे खेत में खेत की एक चौथाई हिस्से में एजोला या हरी काई को छिडक दिया जाता हैं जो 15 दिनों में पुरे खेत में फ़ैल जाता हैं , इसके बाद इसे पैडी विडर या हल चला कर मिट्टी में दबा दे , इसमें बड़ी मात्रा में नाइट्रोजन , फास्फोरस , वा अन्य पोषक तत्वा पौधों को मिल जाता हैं ,
* सूखे खेत या दलहनी,तिलहनी फसल के लिए राइजोबियम , वा फास्फोरस घोलक जीवाणु का उपयोग किया जा सकता हैं राइजोबियम जीवाणु वायुमंडल की नत्रोजन को मिट्टी में मिक्स करता हैं जिससे पौधों का विकास अच्छा होता हैं जबकि फास्फोरस घोलक जीवाणु मिट्टी से दूर पड़े फास्फोरस को घोलकर पौधों को उपलब्ध कराता हैं .
* खाड़ी फसल में छिडकाव के लिए जैव अमृत का भी प्रयोग किया जाता हैं , जैव अमृत बनाने के लिए 10 लीटर गो मूत्र ,10 किलो ग्राम गोबर, 5 किलोग्राम बड़ी झाड़ के नीचे की मिट्टी , 2 किलोग्राम गुड ,2 किलोग्राम बेसन , इन सभी चीजो को एक मटके में मिक्स करके भर दे और मटके के मुह को पत्ते से ढक कर बांध दे , इसे 7 दिन तक सड़ने से , ध्यान रहे हर 1 दिन बाद सुबह शाम मिक्स को लकड़ी के डंडे से उल्टे व सीधे दिशे में मिक्स करते रहे , जब सात दिन पूरा हो जाये उसके बाद इस मिक्स को जाली से छान ले और 1 किलो ग्राम मात्रा को 10 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करे , इससे फसल का विकास बहुत अच्छे से होता हैं साथ में कीटो का प्रकोप को नियंत्रित करता हैं |
इस प्रकार से किसान भाई अपने खेतो में Chemical Free Farming कर सकते हैं और फिजूल की खर्च को बचाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं .
टमाटर की जैविक उन्नत खेती || तीखुर की खेती से कमाए लाखो रूपए प्रति एकड़ || जीरा की जैविक खेती || मेथी की जैविक खेती || धनिया की जैविक खेती || जैविक खेती कैसे करे || जैविक कीटनाशक || Bio Nutrient || किसान क्रेडिट कार्ड कैसे बनाये || किसान सम्मान का लाभ किसान कैसे ले




















